Saturday, 22 February 2014

HIMACHALI SHAAN SANTOSH KHATRI

साहस की नई सीमाओं को गढ़तीं संतोष खत्री

हिमालय की ऊंची चोटियों को कई बार अपने पैरों तले रौंद चुकीं संतोष खत्री महिलाओं के लिए एक प्रेरणा स्रोत बन कर उभरी हैं। बचपन से ही साहसिक खेलों में रुचि रखने वाली खत्री ने राष्ट्रीय स्तर पर सेना से तीन अवार्ड जीते हैं। वर्ष 2004 में जब खत्री को एवरेस्ट पर चढ़ाई करने तथा कमीशन में एंट्री करने का विकल्प दिया गया, तो खत्री ने एनसीसी में कमीशन को प्राथमिकता दी। एनसीसी(1)एचपी गर्ल्स बटालियन सोलन में बतौर प्रशासनिक अधिकारी तैनात कैप्टन संतोष खत्री ने भारतीय पैरा ट्रूपर में शामिल होकर हिमालय की तीन-तीन बार चढ़ाई की है।  इसके अलावा हिमाचल, तमिलनाडु, सिक्किम तथा गढ़वाल की कई दुर्गम चोटियों पर चढ़ चुकी हैं। पिछले 26 वर्षाें से एनसीसी में अपनी सेवाएं दे रही हैं। इस दौरान उनकी तैनाती महाराष्ट्र सहित देश के अन्य राज्यों में भी हुई है। लोक निर्माण विभाग से बतौर अधिकारी सेवानिवृत्त खत्री के पिता ने अपने बच्चों को उनकी रुचि के अनुसार कार्य करने की अनुमति दे रखी थी। इसी का नतीजा है कि वर्तमान समय में चारों भाई बहन अपने-अपने क्षेत्र में माहिर हैं। खत्री की छोटी बहन भी एनसीसी कैडेट रही हैं तथा राष्ट्रीय गणतंत्र दिवस परेड का हिस्सा बन चुकी हैं। राजकीय वरिष्ठ माध्यमिक पाठशाला छात्रा सोलन में वर्ष 1981 एनसीसी कैडेट रहीं खत्री को जूनियर वर्ग के ऑल इंडिया बेसिक लीडरशिप कैंप में बेस्ट कैडेट चुना गया। इसके बाद राजकीय महाविद्यालय में एनसीसी करके उन्होंने सी सर्टिफिकेट हासिल किया तथा सीनियर वर्ग में भी वर्ष 1984 में सीनियर वर्ग के आल इंडिया बेसिक लीडरशिप कैंप में खत्री को बेस्ट कैडेट चुना गया।  इसके बाद उन्होंने हिमाचल प्रदेश विश्विद्यालय से समाजशास्त्र में स्नातकोत्तर की पढ़ाई पूरी की। खत्री के पति दिल्ली में निजी कंपनी में बतौर अधिकारी तैनात हैं तथा बेटी पूना में नौकरी करती हैं। घर में कैप्टन खत्री अकेली हैं, जिन्हें साहसिक खेलों में रुचि है । इसी का नतीजा है कि कैप्टन खत्री ने  दो बार डायरेक्टर जनरल एनसीसी कमांडेशन कार्ड तथा एक बार डिफेंस सेक्रेटरी कमांडेशन कार्ड हासिल किया है। उन्होंने वर्ष 1999 से लेकर 2006 तक लगातार पर्वातारोहण कर देश भर की कैडेट्स को भी पर्वतों की चोटियों पर चढ़ना सिखाया है। वर्ष 2004 में उनका नाम एवरेस्ट की चढ़ाई चढ़ने के लिए चयनित हुआ था। उस समय उन्होंने एनसीसी में कमीशन को प्राथमिकता दी। बाद में उनके शरीर में इंजरी आने के बाद उन्हें एवरेस्ट पर जाने का मौका तो नहीं मिला, लेकिन कैप्टन खत्री के हौसले आज भी बुलंद हैं तथा वह एनसीसी गर्ल्स बटालियन सोलन में प्रशासनिक अधिकारी के तौर पर तैनात हैं।
 छोटी सी मुलाकात
साहसिक खेलों की ओर रुझान कैसे हुआ?
बचपन से ही मन में कुछ अलग करने की तमन्ना थी। स्कूल में जहां एनसीसी का प्रशिक्षण हासिल किया, वहीं पर्वतारोहण का प्रशिक्षण भी हासिल किया।
पर्वतारोण का प्रशिक्षण कहां से हासिल किया?
मनाली के माउंटेनियरिंग इंस्टीच्यूट से एक माह का बेसिक कोर्स किया है। इसमें पहाड़ों पर चढ़ना, नदी पार करना तथा अन्य कार्य सीखे।
पहाडों पर चढ़ाई करने के अलावा खेलों में और क्या-क्या किया है?
सॉफ्ट बॉल की राष्ट्रीय स्तरीय खिलाड़ी रही हूँ। इसके अलावा एथलेटिक्स के क्षेत्र में क्रॉस कंट्री दौड़ में प्रदेश स्तरीय प्रतियोगिताओं में भाग लिया है।
पहाड़ों पर चढाई के समय का कोई यादगार किस्सा?
एनसीसी गर्ल्स कैडेट्स को लेकर पर्वत पर चढ़ाई कर रहे थे गकि रास्ते में एक कैडेट की तबीयत बिगड़ी। दुर्भाग्यवश ऑक्सीजन भी समाप्त हो गई। उस दौरान कैडेट को बेस कैंप तक पहुंचाकर हेलिकाप्टर के माध्यम से वापस भेज पुनः पर्वत चढ़ना शुरू किया।
महिला होने के चलते क्या चुनौतियां पेश आइर्ं?
मेरे मायके व ससुराल में मेरे कार्य को सराहा है तथा उनके होते हुए मुझे आज दिन तक कोई भी कार्य चुनौती नहीं लगा।
आज की युवा पीढ़ी को क्या संदेश देना चाहेंगी?
वर्तमान पीढ़ी गलत दिशा की ओर अग्रसर है। युवाओं को पढ़ाई के साथ विभिन्न प्रकार की गतिविधियों में शामिल होना चाहिए। जिससे कि उनका ध्यान गलत दिशा की ओर न जाए तथा विपरीत परिस्थितियों में अपना धैर्य बनाए रखना चाहिए।

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