खेल के क्षेत्र में यह बात कोई मायने नहीं रखती है कि खेल का मैदान छोटा या है बड़ा। एक खिलाड़ी का लक्ष्य केवल उसका टारगेट हासिल करना होना चाहिए। मेहनत ही सफलता का दूसरा नाम है। मेहनत के बिना किसी भी हालत मंे लक्ष्य पाना संभव नहीं है। यह बात भारत की शान तथा हिमाचल की बेटी अर्जुन अवार्ड विजेता सीता गोसाई मेहता ने कही है। उनका कहना है कि ग्राउंड किसी भी तरह का हो, एक खिलाड़ी के दिल मंे जीत की बात हमेशा होनी चाहिए तथा लक्ष्य हमेशा ऊंचा होना चाहिए। सीता गोसाई कहती हैं कि वह केवल मेहनत पर ही विश्वास करती हैं। केवल 13 वर्ष की आयु मंे हाकी के राष्ट्रीय कैंप में पहली बार दस्तक देने वाली सीता गोसाई आज भारतवर्ष ही नहीं, परंतु विदेश में भी किसी परिचय की मोहताज नहीं हैं। नाहन शहर के एक साधारण परिवार में जन्मी सीता गोसाई ने दसवीं तक की पढ़ाई नाहन स्थित कन्या वरिष्ठ माध्यमिक पाठशाला मंे पूरी की। इस दौरान सीता गोसाई ने यह बात कहकर भी चौंका दिया कि आरंभ में उसका मुख्य खेल हाकी नहीं बल्कि खो-खो था। छठी-सातवीं मंे सीता गोसाई खो-खो में स्टेट व नेशनल खेल चुकी थीं, परंतु अपनी बड़ी बहनों सुदेश शर्मा व गीता ठाकुर को देखते हुए सीता गोसाई भी हाकी खेलने लगीं। स्कूल के दिनों में स्कूल की अध्यापिका शशि दुग्गल व अध्यापक आरके दुग्गल का सीता को हाकी के क्षेत्र में आगे बढ़ाने मंे मुख्य योगदान रहा। दसवीं की कक्षा नाहन से उत्तीर्ण करने के बाद सीता गोसाई ने चंडीगढ़ स्थित एमसीएम डीएवी कालेज मंे प्रवेश लिया। करीब एक वर्ष तक कालेज में शिक्षा ग्रहण करने के बाद सीता की हाकी में रुचि व खेल को देखते हुए साई सेक्टर-18 में प्रवेश हुआ। उसके बाद सीता गोसाई ने पीछे मुड़कर नहीं देखा। सीता गोसाई ने पंजाब यूनिवर्सिटी से कई बार राष्ट्रीय स्तर पर इंटर यूनिवर्सिटी में हाकी मंे बेहतर प्रदर्शन किया, जिसके पश्चात 1991 मंे सीता को भारतीय महिला हाकी टीम में प्रवेश मिला। 1991 के बाद सीता गोसाई ने पीछे मुड़कर नहीं देखा तथा लगातार वर्ष 2004 तक करीब दस वर्षों तक भारतीय महिला हाकी टीम मंे अहम सदस्य के रूप में भारत का नाम रोशन किया। यही नहीं सीता गोसाई वर्ष 1996, 1999 व 2001 में भारतीय महिला हाकी टीम की कप्तान भी रहीं। सीता गोसाई के नेतृत्त्व में भारतीय महिला हाकी टीम ने 1998 में एशियन हाकी टीम में सिल्वर मेडल, 1999 में सीनियर एशिया कप में सिल्वर मेडल तथा मैनचेस्टर में कॉमनवैल्थ गेम्स में गोल्ड मेडल जीता था। सीता गोसाई एशिया की पहली महिला हाकी खिलाड़ी हंै, जिनका चयन विश्व एकादश की टीम में हुआ था। सीता गोसाई दो वर्ष तक भारतीय महिला व पुरुष हाकी टीम की मुख्य चयनकर्ता के रूप में काम कर चुकी हैं। यही नहीं दिल्ली मंे संपन्न हुई कॉमनवैल्थ गेम्स में भी सीता गोसाई आयोजक टीम में शामिल थीं। भारतीय रेलवे मंे कार्यालय अधीक्षक के रूप में तैनात सीता गोसाई का मानना है कि खेल के क्षेत्र में मेहनत ही सफलता की कुंजी है। उनका कहना है कि हिमाचल जैसे पहाड़ी राज्य में हाकी के क्षेत्र मंे कम संभावनाएं हैं, परंतु फिर भी जो खिलाड़ी हाकी के क्षेत्र में अपना भविष्य बनाना चाहते हैं, वे इस बात को भूल जाएं कि खेल का मैदान छोटा है या बड़ा। मेहनत से ही खिलाड़ी कदम-दर- कदम आगे बढ़ सकता है।
जिला सिरमौर के मुख्यालय नाहन के रहने वाले स्व. उमराव सिंह व बचनी देवी के घर सुदेश शर्मा, गीता ठाकुर व सीता गोसाई तीन बेटियां हैं। सीता गोसाई की दोनों बड़ी बहनें सुदेश शर्मा व गीता ठाकुर भी हाकी की राष्ट्रीय खिलाड़ी हैं। सुदेश शर्मा वर्तमान में नाहन में साई की वरिष्ठ हाकी कोच हैं। सीता गोसाई की दूसरी बड़ी बहन गीता ठाकुर भी भारतीय हाकी टीम की सदस्य रह चुकी हैं। गीता ठाकुर भी वर्तमान मंे भारतीय रेलवे में ही सेवाएं दे रही हंै। तीनों बहनें बिलकुल ही साधारण परिवार में पैदा हुईं तथा आरंभ में तीनों बहनों ने नंगे पांव स्कूल मैदान व नाहन के ऐतिहासिक चौगान मैदान में हाकी की स्टिक थामी है। यही नहीं, चौकाने वाली बात तो यह है कि सुदेश शर्मा, गीता ठाकुर व सीता गोसाई तीनों बहनें एक साथ भारतीय हाकी कैंप भी लगा चुकी हैं।
No comments:
Post a Comment