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सावन महीने का शिवकर्म है जलाभिषेक
एक लोटे जल से प्रसन्न होने की घटना शिव के संदर्भों में ही संभव है। शिव को प्रसन्न करने के लिए न तो किसी महाआयोजन की जरूरत होती है और न ही बहुमूल्य पदार्थों की। यदि भक्त का हृदय रससिक्त है तो भोलभंडारी जल-धार और बिल्वपत्र से ही प्रसन्न हो जाते हैं…
सावन के महीने में प्रकृति, पृथ्वी का जलाभिषेक करती है और उसे हरियाली की चादर में लपेट देती है। यह महीना देवादिदेव महादेव के जलाभिषेक का भी है। भोलेनाथ को प्रसन्न करने के लिए भक्तों द्वारा उनका जलाभिषेक किया जाता है। एक लोटे जल से प्रसन्न होने की घटना केवल शिव के संदर्भों में ही संभव है। शिव को प्रसन्न करने के लिए न तो किसी महाआयोजन की जरूरत होती है और न ही बहुमूल्य पदार्थाें की। यदि भक्त का हृदय रससिक्त है तो भोलेभंडारी जल-धार और बिल्वपत्र से ही प्रसन्न हो जाते हैं। वेद मंत्रों के साथ भगवान शिव को जलधारा अर्पित करने से साधक स्वयं का कल्याण तो करता ही है, इसके साथ, वह पूरे संसार का भी कल्याण करता है। पांच तत्वों में जल तत्व बहुत महत्वपूर्ण है। पुराणों में शिव के जलाभिषेक का बहुत महत्व बताया गया है। एक धार्मिक कथा के अनुसार समुद्र मंथन से निकले ‘हलाहल’ विष को पीने से भगवान शिव का पूरा शरीर गर्म हो गया। उनके गर्म शरीर को ठंडक पहुंचाने के लिए देवताओं ने उनका जलाभिषेक किया और बिल्व के पत्र तथा फल का भोग लगाया। जल और बिल्व दोनों में दाहनाशक गुण होता है, यह दोनों शरीर की गर्मी को दूर करते हैं। तभी से शिव के जलाभिषेक और बिल्वपत्र के अर्पण की प्रथा शुरू हुई। जल से ही शिव का ताप दूर होता है और बदले में भगवान शिव अपने भक्त के ताप, संताप, रोग-शोक आदि को हर कर उसका कल्याण करते हैं। भगवान शिव की आराधना वैदिक आराधना है। भारत वर्ष में जितने भी शिवधाम हैं वहां वेद मंत्रों के साथ ही पूजा की जाती है। भगवान शिव को महादेव इसीलिए कहते हैं कि वह देव, दानव, यक्ष, किन्नर, नाग, मनुष्य, सभी द्वारा पूजित हैं। वस्तुतः भगवान शिव, कल्याण और समन्वय के देवता है।
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