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भुक्ति -मुक्ति दाता है पारद शिवलिंग
श्रावण में विभिन्न प्रकार के शिवलिंगों का पूजन और जलाभिषेक किया जाता है। माना जाता है कि विशेष प्रकार के इन शिवलिंगों का अलग-अलग माहात्म्य और प्रभाव होता है। शिव साधकों द्वारा विशेष प्रयोजन को सिद्ध करने के लिए भी विभिन्न शिवलिंग बनाए और पूजे जाते हैं। लेकिन इसमें पारद शिवलिंग का विशेष महत्त्व बताया गया है। पारद शिवलिंग का पूजन सर्व कामप्रद, मोक्षप्रद, शिवस्वरूप बनाने वाला होता है। इसके पूजा गृह में रहने मात्र से ही सुयश, आजीविका में सफलता, सम्मान, पद -प्रतिष्ठा एवं लक्ष्मी का सतत आगमन होता है। रुद्रसंहिता के अनुसार बाणासुर एवं रावण जैसे शिवभक्तों ने अपनी वांछित अभिलाषाओं को पारद शिवलिंग (रसलिंग) के पूजन के द्वारा ही प्राप्त किया एवं लंका को स्वर्णमयी बनाकर विश्व को चकित कर दिया। अध्यात्म में ऐसी अनेक अन्य क्रियाएं भी हैं किंतु उनका अब हमें ज्ञान नहीं। पारद पूर्ण जीवित धातु है इसके साथ सोना रख देने पर सोने को खा जाता है। सनातन धर्म के कितने ही महत्वपूर्ण ग्रंथों में इस पारद शिवलिंग की महत्ता को पढ़ा जा सकता है।
शिवपुराण-
गोध्नाश्चैव कृतघ्नाश्चैव वीरहा भ्रूणहापि वा
शरणागतघातीच मित्रविश्रम्भघातकः
दुष्टपापसमाचारी मातृपितृप्रहापिवा
अर्चनात रसलिङ्गेन् तक्तत्पापात प्रमुच्यते।
अर्थात् गौ का हत्यारा , कृतघ्न , वीरघाती, गर्भस्थ शिशु का हत्यारा, शरणागत का हत्यारा, मित्रघाती, विश्वासघाती, दुष्ट, पापी अथवा माता-पिता को मारने वाला भी यदि पारद शिवलिंग की पूजन करता है तो वह भी तुरंत सभी पापों से मुक्त हो जाता है।
रसर्णवतन्त्र -
धर्मार्थकाममोक्षाख्या पुरुषार्थश्चतुर्विधाः।
सिद्ध्यन्ति नात्र सन्देहो रसराजप्रसादतः।।
अर्थात जो मनुष्य पारद शिवलिंग की एक बार भी पूजन कर लेता है। उसे इस जीवन में ही धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष इन चारों प्रकार के पुरुषार्थो की प्राप्ति हो जाती है। इसमें संदेह करने का लेशमात्र भी कारण नहीं है।
सर्वदर्शन संग्रह-
अभ्रकं तव बीजं तु मम बीजं तु पारदः।
बद्धो पारद्लिङ्गोयं मृत्युदारिद्रयनाशनम्।।
स्वयं भगवान शिवशंकर भगवती पार्वती से कहते हैं कि अभ्रक आपका का स्वरूप है और पारद मेरा स्वरूप है। पारद को ठोस करके तथा लिंगाकार स्वरुप देकर जो पूजन करता है उसे जीवन में मृत्यु भय व्याप्त नहीं होता और किसी भी हालत में उसके घर दरिद्रता नहीं रहती।
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