Monday, 11 August 2014

भुट्टिको में नवाजी गईं विभूति


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newsकुल्लू —  रविवार को भुट्टी कलोनी में ठाकुर वेद राम राष्ट्रीय पुरस्कार कार्यक्रम का आयोजन किया गया।  इस मौके पर उपायुक्त कुल्लू राकेश कंवर ने बतौर मुख्यातिथि शिरकत की। वहीं कार्यक्रम की अध्यक्षता पूर्व बागबानी मंत्री एवं भुट्टिको के चेयरमैन सत्य प्रकाश ठाकुर द्वारा की गई। इस मौके पर सत्य प्रकाश ठाकुर ने भुट्टिको संस्था की विभिन्न उपलब्धियों को भी गिनवाया। कार्यक्रम में आए हुए हजारों लोगों को उपायुक्त कुल्लू राकेश कंवर ने संबोधित करते हुए कहा कि सहकारी सभाओं को बाजार की मौजूदा परिस्थितियों एवं मांग के अनुसार अपनी कार्यशैली व उत्पादों में आवश्यक परिवर्तन करने चाहिएं।  रविवार को सहकारी सभा भुट्टिको के परिसर में ठाकुर वेदराम राष्ट्रीय पुरस्कार वितरण समारोह में मुख्य अतिथि के रूप में शिरकत करते हुए उपायुक्त ने यह अपील की। इससे पहले उपायुक्त ने विभिन्न क्षेत्रों में सराहनीय कार्य करने वाले गणमान्य लोगों को ठाकुर वेदराम राष्ट्रीय पुरस्कार वितरित किए। इनमें साहित्य के लिए नई दिल्ली के डा. ललित किशोर मंडोरा, प्रिंट मीडिया के लिए प्रवीण राय, इलेक्ट्रानिक मीडिया स्वर्गीय प्रेम सिंह ठाकुर, सहकारिता में उल्लेखनीय योगदान के लिए बिलासपुर के शंकर सिंह चंदेल, नई दिल्ली की वीना नावर व भुट्टिको की प्रेम लता ठाकुर को सम्मानित किया गया। वाराणसी के बुनकर जगरनाथ बनारसी, लाहुल के सुखदयाल व भुट्टिको की इंद्रा देवी को भी सम्मानित किया गया। लोक साहित्य का पुरस्कार डा. विद्यासागर नेगी, पहाड़ी कला-संस्कृति ईश्वरी दास शर्मा और पहाड़ी भाषा साहित्य पुरस्कार ऊधमपुर के शिव निर्मोही को मिला। कुल्लू  के राम कुमार कपूर को  लाइफ  टाइम अचीवमेंट पुरस्कार दिया गया। भुट्टिको की कुसुम को उद्यमी बुनकर, शारदा देवी विशिष्ट शिल्पी, सफल सहकार राजकुमार और जाली गंठाई में पारंगत शकुंतला देवी को भी पुरस्कृत किया गया। इस अवसर पर उपायुक्त का स्वागत करते हुए भुट्टिको के अध्यक्ष एवं पूर्व बागबानी मंत्री सत्य प्रकाश ठाकुर ने बताया कि कुल्लू जिला की प्रसिद्ध सहकारी सभा भुट्टिको डेढ़ दशक से अधिक समय से ये पुरस्कार प्रदान कर रही है। समारोह में कर्नल प्रेम चंद, सिमर सदोश, वयोवृद्ध लोक साहित्यकार डा. एमआर ठाकुर, भुट्टिको के सभी पदाधिकारी और अन्य गणमान्य लोग भी उपस्थित रहे

august 15


अटल को भारत रत्न की तैयारी से चहका कुल्लू

newsकुल्लू —  सच्चाई यह है कि केवल ऊंचाई ही काफी नहीं होती, सबसे अलग-थलग, परिवेश से पृथक, अपनों से कटा-बंटा, खड़ा होना पहाड़ की महानता नहीं, मजबूरी है। कवि ह्दय अटल बिहारी वाजपेयी ने काफी साल पहले यह कविता मनाली के प्रीणी घर में ही रची और उस दौरान पीएम रहते हुए यहीं पर यह कविता सबको सुनाई। इसे काफी पसंद किया गया और पर्वतारोहण संस्थान में सजे कवि दरबार में इसके लिए उन्हें खूब वाहवाही भी मिली। विडंबना यह है कि पैरालाइज की वजह से पिछले तीन सालों से वाजपेयी बोल नहीं पा रहे हैं, सबसे अलग-थलग, अपनों से कटे हुए। वह और कविताएं रचना चाहते हैं, मगर सेहत साथ न देने में बेबस है। वहीं प्रीणी गांव में पड़ोसियों की मजबूरी है कि एक अरसे से वे अटल जी की झलक पाने के लिए तरस गए हैं। अब अटल के ही शागिर्द प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी इस रूप में एक उम्मीद जगा रहे हैं। स्वतंत्रता दिवस के खास मौके  पर दिल्ली में अटल जी को भारत रत्न देने की तैयारी चल रही है। इस बार भारत रत्न के पांच दावेदारों में वाजपेयी का नाम सबसे ऊपर है। ऐसे में प्रीणी गांव में वाजपेयी साहब की कोठी की कई सालों से देखभाल कर रहे सुखराम से लेकर पंचायत प्रधान ठाकुर दास और अन्य पड़ोसी उम्मीद कर रहे हैं कि अटल जी को भारत रत्न से नवाजा जाता है तो केंद्र सरकार उनकी भावनाओं का भी ख्याल रखते हुए सम्मान समारोह में शरीक होने के लिए जरूर बुलावा भेजेगी। सुखराम तो मानों खुशी से फूले नहीं समा पा रहे हैं। वह कहते हैं कि मेरे साहब जी वाकई में भारत रत्न के सही हक दार हैं, उन्हें यह सम्मान काफी पहले ही मिल जाना चाहिए था। वहीं प्रीणी पंचायत के प्रधान ठाकुर दास के मुताबिक वे लोग उम्मीद कर रहे हैं कि अटल जी के पड़ोसी होने के नाते भारत 

हिंदी की उपेक्षा क्यों


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हिंदी की उपेक्षा क्यों?

केंद्र सरकार ने यूपीएससी की सिविल परीक्षा से सी-सैट को न हटाने तथा पूर्ण निर्धारित समय के अनुसार प्रारंभिक परीक्षा 24 अगस्त को ही करवाने का ऐलान कर हिंदी भाषी छात्रों की उम्मीदों पर कुठाराघात किया है। एक फर्क केवल यह पड़ा है कि अब सी-सैट 2 पेपर में अंग्रेजी के 20 अंक मैरिट में नहीं जोड़े जाएंगे। इसी क्रम में 2011 में परीक्षा देने वाले छात्रों को 2015 में एक मौका देने का फैसला किया गया है। इसका अर्थ यह भी हुआ कि सरकार का निर्णय देर से आने और परीक्षा की तिथि आगे बढ़ाने का नुकसान उन छात्रों को झेलना होगा, जो सी-सैट के विरोध में चलाए जा रहे आंदोलन के कारण तैयारी नहीं कर पाए थे। यहां मौजूदा सरकार के इस तर्क से सहमत हुआ जा सकता है कि उसे यह स्थिति यूपीए सरकार से विरासत में मिली है, लेकिन वह चाहती तो हिंदी भाषी छात्रों की भावनाओं की कद्र करते हुए इस पर सकारात्मक फैसला कर सकती थी। उसने ऐसा नहीं किया, जिसकी खिलाफत होना स्वाभाविक है। आंदोलनकारी छात्र आज भी मांग कर रहे हैं कि सी-सैट को समाप्त कर पुराने पैटर्न को लागू किया जाए, जिससे हिंदी भाषी छात्रों को बराबरी का मौका मिल सके। इस प्रश्न पर संसद के दोनों सदनों में हंगामे के अलावा सभी प्रमुख विपक्षी दल सरकार के विरोध में सामने आए हैं। सरकार के अडि़यल रवैये के कारण जिस तरह यह मुद्दा हिंदी बनाम अंग्रेजी बनाया गया है और उसे लेकर जिस तरीके से अन्य क्षेत्रीय भाषाओं का प्रश्न भी उठा है, उसे दुर्भाग्यपूर्ण ही कहा जाएगा। पहले तो यही स्पष्ट नहीं है कि जो फार्मूला 2011 तक चलता आ रहा था और जिसका लाभ हिंदी भाषी छात्र ले पा रहे थे, उसे अचानक क्यों बदला गया? क्या यह सब कुछ उन अंग्रेजीदां अफसरशाही के इशारे पर तो नहीं हुआ जो सिविल सेवा में हिंदी भाषी छात्रों के प्रवेश से खार खाए हुए थे। यही कारण है कि 2011 के बाद सिविल सेवा में हिंदी भाषी प्रतियोगियों की आवक न केवल कम हुई, आगे के लिए भी उनका मार्ग अवरुद्ध हो गया। आखिर सरकार यह क्यों नहीं देख पाई कि हिंदी भाषी प्रतियोगियों को सी-सैट के साथ परोसा जाने वाला हिंदी अनुवाद इतना भ्रष्ट था कि वह छात्रों के पल्ले नहीं पड़ा। अब सरकार ने हिंदी में अनुवाद को सुधारने का वादा कर उचित किया है, लेकिन सी-सैट पर उस अनावश्यक विवाद के कारण छात्रों को हुए नुकसान की भरपाई कौन करेगा? प्रश्न यूपीएससी की प्रवेश परीक्षा में हिंदी माध्यम का हो या सरकार के प्रशासनिक कार्यों में हिंदी के अधिकाधिक इस्तेमाल का, उसे लेकर हिंदी की उपेक्षा करना संविधान की भावनाओं का अनादर करना नहीं तो क्या है? हिंदी जिसे अपने ही देश में सिर-आंखों पर बिठाया जाना चाहिए, उसकी इस कद्र दुर्दशा निंदनीय है। अपने ही देश में हिंदी इतनी पराई क्यों है? वैसे तो संविधान द्वारा हिंदी को राष्ट्रभाषा व राजकाज की भाषा का दर्जा दिए जाने के संकल्प के बावजूद हिंदी को आज तक उसका उचित स्थान नहीं मिल पाया है, उस पर हिंदी को भीतर खाते पीछे धकेलने की कोशिश उससे जुड़े संकल्प से मेल नहीं खाती। यूपीएससी परीक्षा से सी-सैट को खत्म न करने का फैसला सरकार ने किसी भी सोच के तहत क्यों न किया हो, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और भाजपा सरकार की हिंदी के प्रति निष्ठा को देखते हुए उसे इस पर सहानुभूति से पुनर्विचार करना चाहिए

Friday, 8 August 2014

Forthcoming Manimahesh Yatra

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Forthcoming Manimahesh Yatra

Anni This Week Team
Himachal This Week The religious Manimahesh Yatra will begin on August 17 this year. The state government as usual has made various safety and security arrangements for tourists and devotees thronging the place during the holy yatra. The state government has made some mandatory safety and security arrangements for all devotees’ including compulsory registration for those who are taking part in the pilgrimage visit to Shri Manimahesh Kailash Yatra. The registration can be done at Kalsuine (15 km from Chamba enroute to Bharmour) or Hadsar (14 km from Bharmour enroute to manimahesh) and the passanger traveling by Helicopter should enroll at Bharmour. All pilgrims will receive a registration slip which should be submitted at above said stations before and after the yatra. The holy Yatra will begin from 17th August 2014 on the occasion of Krishna Janma-Astami. And the Yatra will end on 2nd September 2014 on the occasion of Radha Asthami.
700 Cops to Ensure Safety
The state government has deployed seven reserve battalions of police and home guard for the safety and security of devotees besides tackling the natural disasters during the holy pilgrimage. About 700 cops of police and home guard will ensure safety, maintain smooth traffic flow and at the same time will act as guide to facilitate tourists during the yatra. The police will be deployed soon at the various points of the yatra. District Superintendent of Police Chamba Jitender Choudhary confirmed the news.   Notably, maintaining law and order, smooth flow of traffic and ensuring safety and security of lakhs of tourists visiting the area to have a dip in the holy lake during Manimahesh yatra is no less than a challenge for state police. Apart from that they have also to remain alert for rescue work in case of any natural disaster.
56 Organisation Applied to Run Langar Facility
Additional District Magistrate Bharmour Lakshmikant Sharma told that this year 56 applications have been received from self help organizations to provide langar facility to devotees during the Manimahesh Yatra. A meeting of representatives of self help organizations that applied for the langar facility was presided by ADM Lakshmikant Sharma recently. Entire terms and conditions for langar facility were provided to the organizations that applied for it. The organization will have to deposit a security fee of about Rs. 5000 to runa langar, which will be refundable. Apart from that the organisation will have to maintain the cleanliness and hygiene in the area apart from constructing a toilet near the facility. The security of those organization will be forfeited that are found guilty of violating these terms and conditions. Sharma said that no organization was allowed to run langar near the lake this year.
Shed Facility for Devotees in Chaugan Ground
The district administration Chamba too has taken necessary steps for the facility of pilgrims thronging the area. Additional District Magistrate Chamba Shubhkaran Singh told that the administration has taken a decision to establish shed in one part of the Chaugan for stay facility of the pilgrims. Apart from that Red Cross will provide free medical caps facility in the same ground. Temporary toilets will also be constructed to facilitate tourists during the yatra, he added.
Schedule of Manimahesh Yatra 2014
August 17, 2014
Yatra and ‘Chota Snan’ (little holy dip) will start on the holy occasion of Janam-astami.
September 2, 2014
‘Bada Snan’ (big holy bath) will start on 2nd September 2014 on the holy occasion of Radha-astami. The holy yatra will also end on the same da

A Non-governmental Organization (NGO)

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Koshish An NGO with Humanitarian Role

Chaman Dohru
HTWA Non-governmental Organization (NGO) is any non-profit, voluntary citizens’ group which is organized on a local, national or international level to plug in the gaps left by the government. Task-oriented and driven by people with a common interest, NGOs perform a variety of service and humanitarian functions, bring citizen concerns to Governments, advocate and monitor policies and encourage political participation through provision of information. Some are organized around specific issues, such as human rights, environment or health. India as a nation still has a large population that is vulnerable in terms of health, education, jobs and opportunities in general. This has also seen a large proliferation of NGOs. By some estimates, India has 3.3 million NGOs or one NGO for every 400 individuals. Out of it, 312 NGOs operate in Himachal alone. Himachal This Week has tried to bring to fore the working of genuine NGOs who work for the welfare of masses. This week will find the mention of the appreciable efforts of Koshish, Paprola which is working for the welfare of people in Paprola and Baijnath.
Ankit SoodThe NGO acts on social welfare projects as soon as it collects sufficient funds for the activity from its members and public. The NGO will continue the good work in future too.
-Ankit Sood, President, Koshish, Paprola
Stress on Basic Issues
Koshish came into being in 2006 when 19 people from the area decided to take a step forward for the welfare of the society. The NGO initiated its welfare activities from its head office in Paprola. “The founder members of the organization decided to run the welfare activities without any government help and the NGO started its social welfare activities with each member of the organisation contributing Rs. 200 per month to the welfare fund of NGO,” told Ankit Sood, Founder and present President of the NGO to Himachal This Week. The first welfare step of NGO was to ensure filling of vacant posts of doctors in the government hospital in Baijnath. The organization launched a drive for the same and posted about 5000 post cards to the state health minister with the help from local people. Efforts of the NGO materialised and the vacant posts were filled by the state government providing relief to the local people. The NGO also improved the deteriorating condition of ‘shamshaan ghat’ (cremation ground) on the bank of Binwa River damaged due to heavy rains. The NGO spent about five lakh rupees, with help and contribution from people, to improve the situation of ‘shamshaan ghat’. The work to construct roof over the ‘shamshaan ghat’ with an expenditure of about one lakh is still going on. Apart from this, the NGO also carried out a plantation drive and planted 250 saplings in Shiva temple surroundings established in the middle of Binwa River to beautify the surroundings of temple. The organization spends two to three thousand rupees at a regular interval of two to three months to beautify the Shiva temple surroundings. It is the same temple where old shiva linga is established. The plantation of trees in the area also helped to stop soil erosion in the area. The organization is planning to create a beautiful location here soon. The NGO also organized numerous blood donation camps in the area and an eye check up camp in Chhota Bhangal. The NGO also extended helping hand to the victims of two fire incidents occurred in Paprola. The members of the organization also organize cleanliness drives and have undertaken the job of maintenance and cleaning of an ancient well near Baba Gian Dass Temple in Paprola. The NGO also created job opportunity for ten unemployed in the Ayurvedic Hospital in Paprola. The organization is continuing its good work in the area through the fund collected by the members.
Performance Meter of NGO
* Organised numerous blood donation and eye check up camps in the area.
* Helped in resolving the problem of health services by ensuring filling of vacant posts of doctors in the Government Hospital, Baijnath. The NGO posted about 5000 post cards to the health minister on the issue.
* Repaired and renovated the ‘shamshaan ghat’ on the bank of Binwa River with an expenditure of about six lakh rupees.
* Planted about 250 saplings in the Shiva temple surroundings established in the middle of Binwa river to stop soil erosion and beautify the surroundings of temple.
*   Helped the victims of fire incidents affected in two fire incidents in Paprola

Temples Lack Basic Facilities

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Temple Tourism in Tatters

        Cover Story
Himachal This WeekSuccessive state governments have been promising to promote religious tourism in Himachal but standards are falling in this sector over the years. Though number of tourists is increasing gradually but devotees visiting famous temples of Himachal rue lack of facilities with majority of temple earnings spent on salaries of employees and maintenance leaving very little funds for developmental schemes to create more facilities. Devotees, espacilly those traveling on motorcycles and bicycles, visiting temples in Shravan navratras also flout all norms of motor vehicle act and traffic and goods transport vehicles can be seen devotees thus putting their lives in danger. Knowledgeable persons feel that there is need to put a system in place on the pattern of Mata Vaishno Devi Shrine Board to regulate, improve and promote religious tourism in Himachal
Temples Lack Basic Facilities
Kiran Sharma
The standard of religious tourism is falling in Himachal every year as offerings of crores of rupee are only filling state exchequer thus halting developmental works around famous temples located in the state. Known as land of gods and goddesses, this hilly state is famous for many ancient and established temples attracting devotees from across the country. Devotees are not getting enough facilities and the state government’s attitude is also apathetic to promote religious tourism. Land around these temples has not been utilized properly. Availability of rest houses and toilets around temples is insufficient. Though Himachal had also envisaged a master plan with regard to offering, including conversion of gold silver and ornaments into coins, on the pattern of Vaishno Devi but it has remained only in papers. Temple committees are reportedly extravagant in spending besides using temple vehicles to please VIPs. Recommendations of high powered committee regarding improvement of temples have not been implemented as 374 page report is confined to files of Language, Art and Culture Department.  The government has acquired 28 temples whereas there are 25,000 small and big temples in Himachal, most of which are in a state of neglect. The government is yet to evolve a policy to free temple lands from encroachments.
* Special emphasis is being given to promote religious tourism in Himachal. There is a plan to construct sarais around temples and installation of CCTV cameras for security purpose
-Arun Sharma Director, Language, Art and Culture Department
Two Decade Old Master Plan at Kangra
The master plan envisaged by Brajeshwari Temple Trust included establishing a Vedic institute, ghat, bathrooms, museum and other schemes at Mata ka Naag land on Jamanabad Road proposed two decades ago is still incomplete. Under construction bathrooms at Ban Ganga have not been completed for the last three years besides others as majority of the earnings is spent on employees leaving nothing for the developmental schemes.
-By Rakesh Kathuria/Kangra
 Annual Income      Rs.4.5 Crore
Share of Priests     Rs. 90 Lakh
Salaries               Rs 84 Lakh
Pawan Badiyal* There is no plan to complete the pending schemes and a decision will be taken in temple trust meeting
-Pawan Badiyal Temple Officer, Brajeshwari Temple
Master Plan for Naina Devi
Naina DeviTemple Trust has prepared a master plan for Naina Devi temple to boost religious tourism. It plans to seek financial help from Asian Development Bank for construction of multi-story parking and high tech circle road to streamline devotees. The temple is running a Plus Two school and a college offering courses of Acharya and Shastri. In addition the temple administration has planned various schemes to provide more facilities to devotees.
-By Vijay Thakur/ Bilaspur
Madan Sharma * Temple administration is committed to promote religious tourism and develop Naina Devi as biggest religious tourist place in North India
-Madan Sharma Temple Officer, Naina Devi jurisd
Developmental Projects
* Rs. 35 lakh for construction of Sanskrit College
* Rs. 3 lakh for construction of rain shelter
* Rs. 10 lakh for rest house for devotees
* Rs. 5 lakh for rain shelter from Goofa to temple
* Rs. 9 lakh for expansion of langar building
* Annual Income                             Rs. 18.62 crore
* No. of temple Employees                145
* Salary of temple employees             Rs. 1.41 Crore
* Salary of college employees            Rs. 64 Lakh
* Salary of school employees             Rs. 94.81 Lakh
* Share of Priests                           Rs. 3.17 Crore
Incomplete Projects at Chamunda
ChamundaThough various schemes are being implemented to provide more facilities at Chamunda Temple, yet there are projects that have been lingering on for many years. Only one floor of proposed shopping complex has been constructed in four years. New shops have been constructed in place of old shops but controversy shrouds about their allotment thus posing inconvenience to the displaced businessmen. Priests get 40 percent share from Shiv temple earnings. Temple Officer Pawan Kumar says that priority would be given to completion of pending development works to provide more facilities to devotees.
-By Pawan Sharma/Dharamshala
Annual Income   Rs. 6 crore
No of temple Employees     40
Annual Salary of Employees    Rs. 1.32 crore
Schemes for Trilokpur Temple
Trilokpur TempleThe temple trust has envisaged many schemes including construction of canopy from main gate to temple and parking, by-pass road, old age home, modern toilets, sewerage line, overhead tank for drinking water supply and digging three borewells in mela ground besides promoting charitable activities. The temple trust has initiated various schemes to provide facilities to devotees who visit Balasundri Temple at Trilokpur
-By Surat Pundir/Nahan
Annual income        Rs. 6 Crore
Employees              100
Salaries                 Rs. 2 Crore
 Salaries Equal Earnings in Deot Sidh
Despite huge earning in the form of offerings by the devotees, there is hardly any amount left to carry out developmental activities in Babab Balak Nath temple in Deotsidh. The trust has to pay a heavy sum to its huge workforce in the form of salary and wages, thereby equaling the earning and spending, and leaving no scope and funds for development. There are various projects proposed like go sadan, new langar bhavan, sarai etc. which is still hanging due to lack of funds.
  -By Ravinder Chandel, Hamirpur
Annual Income   Rs. 19.32 Crore
Salaries            Rs. 19 Crore (approx.)
Number of Employees         262
Priest Share       20% of profit
* Developmental works are going on in the temple, but still there is plenty of scope for development
-Akshay Sood Chairman, Baba Balak Nath Trust
Jwalamukhi Temple seeks Attention
Jwalamukhi TempleA master plan was envisaged many years ago to develop temple premises and adjoining areas to provide facilities to devotees. However, it has not been translated into realty as yet. The temple trust has not constructed even one charitable sarai for night stay of devotees who also face difficulties in reaching temple through parikrama marg. There are 150 families of priests who take turns in performing aarti and they are paid thirty percent share from offerings. The temple admistration is also running a college, a Sanskrit college, dispensary, langar besides helping poor and needy girls
 -By Shailesh Sharma, Jwalamukhi
Annual Income       Rs. 8.5 Crore
Annual Expense      Rs. 7.5 Crore
Number of Employees            102
Priest Families        150
Devi Verma* All facilities are being provided to devotees and many other schemes are in the pipeline to promote religious tourism here
-Devi Verma Temple Officer, Jwalamukhi
Chintpurni Still waits for Master Plan
ChintpurniFamous shaktipeeth Chintpurni Temple is still waiting for a master plan that can boost religious tourism in a big way.  Temple administration had agreed to construct a gate after the name of martyr Amol Kalia but this project has not been completed even after many years. The administration has started construction of a multipurpose building having facilities like toilets, waiting room, langar hall and others. This 46 crore project will be completed with assistance of Tourism Department and Asian Development Bank.
-By Jatinder Kanwar/Una
Annual Income        Rs. 29.15 crore
Total Expenses  Rs. 22 Crore
*  Rs. 3 Crore for salaries of 58 employees, 70 home guards and ex-servicemen deployed to look after security arrangements
*    Nearly Rs. 10 crore annual share of priests
*    Rs. 25 lakh on cleanliness
*   Rs. 60 lakh assistance to needy persons
*  Rs. 5 crore for maintenance of temple premises
* Temple administration has undertaken various development schemes, including Rs, 8 crore sewerage scheme, to provide more facilities to devotees
-Subhash Chauhan Temple Officer, Chintpurni




सेब एक फायदे अनेक

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सेब एक फायदे अनेक

सेब के गुण- यह कहा जाता है कि हर रोज एक सेब खाने से डॉक्टर की जरूरत नहीं पड़ती। सेब बहुत ही स्वास्थ्यवर्धक फल है। इसे खाने से शरीर स्वस्थ रहता है और बीमारियां नही होती हैं। सेब के कुछ फायदों यह भी हैं।
पार्किंसन्स रोग से बचाता है- ज्यादा फाइबरयुक्त फल खाने से दिमाग स्वस्थ रहता है और जो लोग फाइबरयुक्त फल खाते हैं उनमें पार्किंसन्स रोग होने की संभावना कम होती है। पार्किंसन्स दिमाग की बीमारी है। सेब खाने से इस बीमारी के होने की संभावना कम होती है।
दांत स्वस्थ होते हैं-यदि आप अपने दांतों में पड़े धब्बों के कारण मुस्कुराना भूल गए हैं तो हर रोज सेब खाइए। अगर आपके दांतों में दाग हैं तो सेब खाने से ठीक हो सकते हैं। सेब खाने से मुंह में ज्यादा मात्रा में लार का निर्माण होता है, जिससे दांत मजबूत होते हैं और दांतों में कीड़े नहीं लगते।
कैंसर नहीं होता-सेब कैंसर जैसी जानलेवा बीमारी से बचाता है।  जिन फलों में  एंटीआक्सीडेंट्स होता है उनके सेवन से कैंसर का जोखिम कम होता है। सेब खाने से पैंक्रियाज, ब्रेस्ट लीवर जैसे कैंसर के होने की संभावना कम होती है।
डायबिटीज नहीं होता- हर रोज एक सेब खाने से टाइप 2 डायबिटीज के बढ़ने की संभावना 28 प्रतिशत तक कम हो जाती है। सेब में पाया जाने घुलनशील फाइबर खून में शुगर की मात्रा को नियंत्रित करता है
अल्जाइमर से बचाए-रोजाना सेब का जूस पीने से आपको अल्जाइमर से बचने में मदद मिलती है। इसके साथ ही यह मस्तिष्क पर उम्र के पड़ने वाले असर को भी कम करता है।
कोलेस्ट्रोल का स्तर घटाए-सेब में घुलनशील फाइबर बड़ी मात्रा में होता है। जो वसा को आंत में बांधता है जिसका परिणाम यह होता है कि रक्त में कोलेस्ट्रॉल का स्तर कम हो जाता है, जिससे आप अधिक स्वस्थ रहते हैं।
दिल को बनाए सेहतमंद- सेब खाने से आपकी धमनियों में प्लार्क जमा नहीं होता। इससे आपके हृदय पर अतिरिक्त दबाव नहीं पड़ता और रक्त प्रवाह सुचारू रूप से होता रहता है। अगर धमनियों में प्लार्क जमा हो जाए, तो इसका बुरा असर आपके दिल पर पड़ता है जिसके कारण आपको हृदय रोग भी हो सकता है।
पित्त की पथरी-पित्त में पथरी की बड़ी वजह पित्त में तरल रूप में कोलेस्ट्रॉल का जमा होना होता है। पित्त की पथरी से बचने के लिए डॉक्टर ऐसा आहार खाने की सलाह देते हैं, जिसमें फाइबर अधिक मात्रा में हो। इससे आपका वजन भी काबू में रहता है साथ ही कोलेस्ट्रॉल का स्तर भी सामान्य बना रहता है।
डायरिया और कब्ज से बचाए-अगर आपको डायरिया अथवा कब्ज की शिकायत हो, तो दोनों से ही निपटने के लिए सेब में पाया जाने वाला फाइबर आपके लिए मददगार हो सकता है। फाइबर बड़ी आंत में पानी का प्रवाह बढ़ाकर आपको कब्ज से निजात दिलाता है वहीं अगर आप डायरिया से परेशान हैं तो यह स्थूल में मौजूद अतिरिक्त पानी को सोखकर आपको राहत दिलाता है।

सर्पदंश के भय से मुक्त कराती हैं नागनी माता


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बताया जाता है कि इस जंगल में कोढ़ से ग्रसित एक वृद्ध रहा करता था और कुष्ठ रोग से मुक्ति के लिए भगवान से निरंतर प्रार्थना करता था। उसकी साधना सफल होने पर उसे नागनी माता के दर्शन हुए तथा उसे नाले में दूध की धारा बहती दिखाई दी। स्वप्न टूटने पर उसने दूध की धारा वास्तविक रूप में बहती देखी जोकि वर्तमान में मंदिर के साथ बहते नाले के रूप में है। माता के निर्देशानुसार उसने अपने शरीर पर मिट्टी सहित दूध का लेप किया और वह कोढ़ मुक्त हो गया…
कांगड़ा जिला की देव भूमि, वीर भूमि एवं ऋषि-मुनियों की तपोस्थली पर वर्ष भर मनाए जाने वाले असंख्य मेलों की श्रृंखला में सबसे लंबे समय अर्थात दो मास तक मनाए जाने वाला प्रदेश का एक मात्र मेला नागनी माता है। यह हर वर्ष श्रावण एवं भाद्रपद मास के प्रत्येक शनिवार को नागनी माता के मंदिर कोढ़ी-टीका में परंपरागत ढंग एवं हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है। मान्यता है कि मेले में नागनी माता का आशीर्वाद प्राप्त करने से सांप इत्यादि विषैले कीड़ों के दंश का भय नहीं रहता है। नागनी माता का प्राचीन एवं ऐतिहासिक मंदिर नूरपुर से लगभग 10 किलोमीटर दूर मंडी-पठानकोट राष्ट्रीय राजमार्ग पर गांव भडवार के समीप कोढ़ी-टीका गांव में स्थित है। नागनी माता जो कि मनसा माता का रूप माना जाता है, के नाम पर हर वर्ष श्रावण एवं भाद्रपद मास में मेले लगते हैं। इस मंदिर के इतिहास बारे कई जनश्रुतियां प्रचलित हैं। इस मंदिर की विशेषता है कि इसके पुजारी राजपूत घराने से संबंध रखते हैं। इस मंदिर को लेकर जो भी दंत कथाएं हो, सत्यता जो भी हो, परंतु लोग श्रद्धाभाव से जहरीले जीवों, कीटों तथा सर्पदंश के इलाज के लिए आज भी बड़ी संख्या में इस मंदिर में पहुंचते हैं। मंदिर की स्थापना को लेकर प्रचलित एक दंतकथा के अनुसार वर्तमान में कोढ़ी टीका में स्थित माता नागनी मंदिर, जोकि कालांतर में घने जंगलों से घिरा हुआ स्थान हुआ करता था। बताया जाता है कि इस जंगल में कोढ़ से ग्रसित एक वृद्ध रहा करता था और कुष्ठ रोग से मुक्ति के लिए भगवान से निरंतर प्रार्थना करता था। उसकी साधना सफल होने पर उसे नागनी माता के दर्शन हुए तथा उसे नाले में दूध की धारा बहती दिखाई दी। स्वप्न टूटने पर उसने दूध की धारा वास्तविक रूप में बहती देखी जोकि वर्तमान में मंदिर के साथ बहते नाले के रूप में है। माता के निर्देशानुसार उसने अपने शरीर पर मिट्टी सहित दूध का लेप किया और वह कोढ़ मुक्त हो गया। आज भी यह परिवार माता की सेवा करता है और माना जाता है कि उसके परिवार को माता की दिव्य शक्तियां प्राप्त हैं। वहीं एक सपेरे से राजा को मुक्त करने का इतिहास भी जुड़ा हुआ है। मंदिर के पुजारी के अनुसार माता कई बार सुनहरी रंग के सर्परूप में मंदिर परिसर में दर्शन देती है, जिसे देखकर बड़े आनंद की अनुभूति महसूस होती है और वह क्षण वर्षों तक चिरस्मरणीय रहते हैं।

संबंधों को सहेजने का त्योहार रक्षा बंधन

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संबंधों को सहेजने का त्योहार रक्षा बंधन

भारतीय परंपरा में विश्वास को संबंधों का आधार माना जाता है।रक्षा बंधन विश्वास को सहेजकर अपनत्व बोध पैदा करने वाला पर्व है। कहने को तो यह भाई-बहन का त्योहार है लेकिन इसके जरिए पूरा परिवार ही एकसूत्र में गूंथ जाता है। पहले रक्षा बंधन बहन-भाई तक ही सीमित नहीं था। आपत्ति आने पर अपनी रक्षा अथवा किसी के आरोग्य के लिए भी रक्षा सूत्र बांधने अथवा भेजने का प्रचलन रहा है…
रक्षा बंधन कोमल धागे का मजबूत रक्षा कवच है।   आज के दिन बहन अपने भाई के हाथ में राखी अपनी रक्षा की अपेक्षा के साथ बांधती है। भारतीय परंपरा में विश्वास को संबंधों का आधार माना जाता है। रक्षा बंधन विश्वास को सहेजकर अपनत्व बोध पैदा करने वाला पर्व है। कहने को तो यह भाई-बहन का त्योहार है लेकिन इसके जरिए पूरा परिवार एकसूत्र में गूंथ जाता है। पहले रक्षाबंधन बहन-भाई तक ही सीमित नहीं था, अपितु आपत्ति आने पर अपनी रक्षा अथवा किसी की आरोग्य के लिए भी रक्षा सूत्र बांधने अथवा भेजन का प्रचलन रहा है। भगवान कृष्ण ने गीता में कहा है कि- ‘सूत्रे मणिगणा इव’- अर्थात ‘सूत्र’ अविच्छिन्नता का प्रतीक है, क्योंकि सूत्र (धागा) बिखरे हुए मोतियों को अपने में पिरोकर एक माला के रूप में एकाकार बनाता है। माला के सूत्र की तरह रक्षा-सूत्र (राखी) भी लोगों को जोड़ता है। एक पौराणिक कथा के अनुसार जब संसार में नैतिक मूल्यों में कमी आने लगती है, तब  भगवान शिव प्रजापति ब्रह्मा द्वारा धरती पर पवित्र धागे भेजते हैं, जिन्हें बहनें मंगलकामना करते हुए भाइयों को बांधती हैं और भगवान शिव उन्हें नकारात्मक विचारों से दूर रखते हुए दुःख और पीड़ा से निजात दिलाते हैं।  हर त्योहार के साथ धार्मिक मान्यताओं, मिथकों, सामाजिक व ऐतिहासिक घटनाओं और परंपरागत विश्वासों का अद्भुत संयोग प्रदर्शित होता है। त्यौहार सिर्फ एक अनुष्ठान मात्र नहीं हैं, वरन् इनके साथ सामाजिक समरसता, सांस्कृतिक तारतम्य, सभ्यताओं की खोज एवं अपने अतीत से जुड़े रहने का सुखद अहसास भी जुड़ा होता है। राखी का सर्वप्रथम उल्लेख पुराणों में प्राप्त होता है जिसके अनुसार असुरों के हाथों देवताओं को पराजित होने के पश्चात अपनी रक्षा के निमित्त सभी देवता इंद्र के नेतृत्व में गुरु बृहस्पति के पास पहुंचे तो इंद्र ने दुखी होकर कहा- ‘‘अच्छा होगा कि अब मैं अपना जीवन समाप्त कर दूं।’’ इंद्र के इस नैराश्य भाव को सुनकर गुरु बृहस्पति के दिशा-निर्देश पर रक्षा-विधान हेतु इंद्राणी ने श्रावण पूर्णिमा के दिन इंद्र सहित समस्त देवताओं की कलाई पर रक्षा-सूत्र बांधा और अंततः इंद्र ने युद्ध में विजय पाई। एक अन्य कथा के अनुसार राजा बलि को दिए गए वचनानुसार भगवान विष्णु बैकुंठ छोड़कर बलि के राज्य की रक्षा के लिए चले गए। तब देवी लक्ष्मी ने ब्राह्मणी का रूप धर श्रावण पूर्णिमा के दिन राजा बलि की कलाई पर पवित्र धागा बांधा और उसके लिए मंगलकामना की। इससे प्रभावित हो बलि ने देवी को अपनी बहन मानते हुए उसकी रक्षा की कसम खाई। तत्पश्चात देवी लक्ष्मी अपने असली रूप में प्रकट हो गईं और उनके कहने से बलि ने भगवान विष्णु से बैकुंठ वापस लौटने की विनती की।  राखी से जुड़ी एक मार्मिक घटना क्रांतिकारी चंद्रशेखर आजाद के जीवन की है। आजाद एक बार तूफानी रात में शरण लेने हेतु एक विधवा के घर पहुंचे। पहले तो उसने उन्हें डाकू समझकर शरण देने से मना कर दिया पर यह पता चलने पर कि वहक्रांतिकारी आजाद है, ससम्मान उन्हें घर के अंदर ले गई। बातचीत के दौरान आजाद को पता चला कि उस विधवा को गरीबी के कारण जवान बेटी की शादी हेतु काफी परेशानियां उठानी पड़ रही हैं तो उन्होंने द्रवित होकर उससे कहा- ‘मेरी गिरफ्तारी पर 5000 रुपए का इनाम है, तुम मुझे अंग्रेजों को पकड़वा दो और उस इनाम से बेटी की शादी कर लो। यह सुन विधवा रो पड़ी व कहा-  तुम देश की आजादी हेतु अपनी जान हथेली पर रखकर चल रहे हो और न जाने कितनी बहू-बेटियों की इज्जत तुम्हारे भरोसे है। अतः मै ऐसा हरगिज नहीं कर सकती। यह कहते हुए उसने एक रक्षा-सूत्र आजाद के हाथों में बांधकर देश-सेवा का वचन लिया। सुबह जब विधवा की आंखें खुली तो आजाद जा चुके थे और तकिए के नीचे 5000 रुपए पड़े थे। उसके साथ एक पर्ची पर लिखा था- अपनी प्यारी बहन हेतु एक छोटी सी भेंट- आजाद। संवेदनाओं और संबंधों के इस पर्व पर आज बाजार हावी हो रहा है। ऐसे में जरूरत इसकी मासूमियत को बचाने की है।
रक्षा बंधन के लिए शुभ मुहूर्त
इस वर्ष रक्षा बंधन का पर्व रविवार, 10 अगस्त 2014 को मनाया जाएगा। रक्षा बंधन के दिन भ्रदाकाल पर विशेष रूप से विचार किया जाता है। भद्राकाल में राखी बांधना अशुभ माना जाता है। इस दिन भद्रा 10.08 से 11.08, भद्रा मुख- 11.08 से 12.48 तथा भद्रा मोक्ष- 1.38 तक रहेगा। अत र् रक्षाबंधन का उचित समय दिन में  दोपहर 1.38 बजे से लेकर रात 9.11 बजे तक होगा। इसमें भी दिन में 1.45 से लेकर शाम 4.23 बजे तक का समय विशेष शुभ है।

Tuesday, 5 August 2014

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डा. परमार ने दिलाई हिमाचल को पहचान

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डा. परमार ने दिलाई हिमाचल को पहचान

आनी— प्रदेश के प्रथम मुख्यमंत्री डा.वाईएस परमार की जयंति पर उपमंडल मुख्यालय आनी में सोमवार को हिमालयन मॉडल स्कूल में एक कार्यक्रम आयोजित किया गया, जिसकी अध्यक्षता पतंजलि योग समिति आनी के प्रभारी बीडी शर्मा ने की । इस मौके पर स्व.परमार की प्रतिमा पर श्रद्धासुमन अर्पित किए गए। इस अवसर पर मुख्यातिथि बीडी शर्मा ने डा.परमार के जीवन पर प्रकाश डालते हुए कहा कि यशवंत सिंह परमार प्रदेश के एक ऐसे महान नेता रहे जिन्होंने अपनी सादी जीवन शैली को अपनाते हुए प्रदेश को पूर्ण राज्यत्व का दर्जा दिलाया और प्रदेश में विकास के नए आयाम स्थापित कर इसे उन्नति और खुशहाली के पथ पर अग्रसर किया । उन्होंने बताया कि प्रदेश को ऐसे महान पुरुष पर गर्व है। इस मौके पर बीडी शर्मा ने पतंजलि योग समिति के आयुर्वेद आचार्य बालकृष्ण योगी की जीवनी पर भी प्रकाश डाला और कहा कि बालकृष्ण योगी जी द्वारा सैकड़ों जड़ी बुटियों की खोज किए जाने से मनुष्य के कई असाध्य रोगों का इलाज संभव हो पाया है और योग गुरु बाबा रामदेव के पावन सान्निध्य में पतंजलि चिकित्सालय आयुर्वेद चिकित्सा पद्धति में कारगर कदम उठा रहा है। उन्होंने कहा कि योग एवं आयुर्वेदिक जड़ी-बुटियों से सैकडों लोगों व रोगियों को लाभ पहुंचा है। कार्यक्रम में हिम संस्कृति सांस्कृतिक एवं साहित्यिक संस्था आनी के अध्यक्ष शिवराज शर्मा ने बच्चों से डा.परमार की जीवनी से शिक्षा लेकर इसे अपने जीवन में अपनाने और उनके पदचिन्हों पर चलने का आह्वान किया। इस मौके पर हिमालयन ह्यूमन परिषद के अध्यक्ष यश पाल, नेहरू युवा केंद्र के प्रभारी टिंकु  शर्मा ,प्रधानाचार्य प्रताप ठाकुर तथा समन्वयक नीता शर्मा ने भी अपने विचार प्रस्तुत किए। कार्यक्रम में हिमसंस्कृति मंच के उपाध्यक्ष छविंद्र शर्मा,सचिव यश पाल,चमन शर्मा, दिवान राजा, टिकम राम शर्मा,रविंद्र शर्मा सहित स्कूल शिक्षक एवं स्कूली छात्र उपस्थित थे।