Friday, 8 August 2014

सर्पदंश के भय से मुक्त कराती हैं नागनी माता


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बताया जाता है कि इस जंगल में कोढ़ से ग्रसित एक वृद्ध रहा करता था और कुष्ठ रोग से मुक्ति के लिए भगवान से निरंतर प्रार्थना करता था। उसकी साधना सफल होने पर उसे नागनी माता के दर्शन हुए तथा उसे नाले में दूध की धारा बहती दिखाई दी। स्वप्न टूटने पर उसने दूध की धारा वास्तविक रूप में बहती देखी जोकि वर्तमान में मंदिर के साथ बहते नाले के रूप में है। माता के निर्देशानुसार उसने अपने शरीर पर मिट्टी सहित दूध का लेप किया और वह कोढ़ मुक्त हो गया…
कांगड़ा जिला की देव भूमि, वीर भूमि एवं ऋषि-मुनियों की तपोस्थली पर वर्ष भर मनाए जाने वाले असंख्य मेलों की श्रृंखला में सबसे लंबे समय अर्थात दो मास तक मनाए जाने वाला प्रदेश का एक मात्र मेला नागनी माता है। यह हर वर्ष श्रावण एवं भाद्रपद मास के प्रत्येक शनिवार को नागनी माता के मंदिर कोढ़ी-टीका में परंपरागत ढंग एवं हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है। मान्यता है कि मेले में नागनी माता का आशीर्वाद प्राप्त करने से सांप इत्यादि विषैले कीड़ों के दंश का भय नहीं रहता है। नागनी माता का प्राचीन एवं ऐतिहासिक मंदिर नूरपुर से लगभग 10 किलोमीटर दूर मंडी-पठानकोट राष्ट्रीय राजमार्ग पर गांव भडवार के समीप कोढ़ी-टीका गांव में स्थित है। नागनी माता जो कि मनसा माता का रूप माना जाता है, के नाम पर हर वर्ष श्रावण एवं भाद्रपद मास में मेले लगते हैं। इस मंदिर के इतिहास बारे कई जनश्रुतियां प्रचलित हैं। इस मंदिर की विशेषता है कि इसके पुजारी राजपूत घराने से संबंध रखते हैं। इस मंदिर को लेकर जो भी दंत कथाएं हो, सत्यता जो भी हो, परंतु लोग श्रद्धाभाव से जहरीले जीवों, कीटों तथा सर्पदंश के इलाज के लिए आज भी बड़ी संख्या में इस मंदिर में पहुंचते हैं। मंदिर की स्थापना को लेकर प्रचलित एक दंतकथा के अनुसार वर्तमान में कोढ़ी टीका में स्थित माता नागनी मंदिर, जोकि कालांतर में घने जंगलों से घिरा हुआ स्थान हुआ करता था। बताया जाता है कि इस जंगल में कोढ़ से ग्रसित एक वृद्ध रहा करता था और कुष्ठ रोग से मुक्ति के लिए भगवान से निरंतर प्रार्थना करता था। उसकी साधना सफल होने पर उसे नागनी माता के दर्शन हुए तथा उसे नाले में दूध की धारा बहती दिखाई दी। स्वप्न टूटने पर उसने दूध की धारा वास्तविक रूप में बहती देखी जोकि वर्तमान में मंदिर के साथ बहते नाले के रूप में है। माता के निर्देशानुसार उसने अपने शरीर पर मिट्टी सहित दूध का लेप किया और वह कोढ़ मुक्त हो गया। आज भी यह परिवार माता की सेवा करता है और माना जाता है कि उसके परिवार को माता की दिव्य शक्तियां प्राप्त हैं। वहीं एक सपेरे से राजा को मुक्त करने का इतिहास भी जुड़ा हुआ है। मंदिर के पुजारी के अनुसार माता कई बार सुनहरी रंग के सर्परूप में मंदिर परिसर में दर्शन देती है, जिसे देखकर बड़े आनंद की अनुभूति महसूस होती है और वह क्षण वर्षों तक चिरस्मरणीय रहते हैं।

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