Friday, 8 August 2014

संबंधों को सहेजने का त्योहार रक्षा बंधन

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shivraj sharma chavinder sharma

संबंधों को सहेजने का त्योहार रक्षा बंधन

भारतीय परंपरा में विश्वास को संबंधों का आधार माना जाता है।रक्षा बंधन विश्वास को सहेजकर अपनत्व बोध पैदा करने वाला पर्व है। कहने को तो यह भाई-बहन का त्योहार है लेकिन इसके जरिए पूरा परिवार ही एकसूत्र में गूंथ जाता है। पहले रक्षा बंधन बहन-भाई तक ही सीमित नहीं था। आपत्ति आने पर अपनी रक्षा अथवा किसी के आरोग्य के लिए भी रक्षा सूत्र बांधने अथवा भेजने का प्रचलन रहा है…
रक्षा बंधन कोमल धागे का मजबूत रक्षा कवच है।   आज के दिन बहन अपने भाई के हाथ में राखी अपनी रक्षा की अपेक्षा के साथ बांधती है। भारतीय परंपरा में विश्वास को संबंधों का आधार माना जाता है। रक्षा बंधन विश्वास को सहेजकर अपनत्व बोध पैदा करने वाला पर्व है। कहने को तो यह भाई-बहन का त्योहार है लेकिन इसके जरिए पूरा परिवार एकसूत्र में गूंथ जाता है। पहले रक्षाबंधन बहन-भाई तक ही सीमित नहीं था, अपितु आपत्ति आने पर अपनी रक्षा अथवा किसी की आरोग्य के लिए भी रक्षा सूत्र बांधने अथवा भेजन का प्रचलन रहा है। भगवान कृष्ण ने गीता में कहा है कि- ‘सूत्रे मणिगणा इव’- अर्थात ‘सूत्र’ अविच्छिन्नता का प्रतीक है, क्योंकि सूत्र (धागा) बिखरे हुए मोतियों को अपने में पिरोकर एक माला के रूप में एकाकार बनाता है। माला के सूत्र की तरह रक्षा-सूत्र (राखी) भी लोगों को जोड़ता है। एक पौराणिक कथा के अनुसार जब संसार में नैतिक मूल्यों में कमी आने लगती है, तब  भगवान शिव प्रजापति ब्रह्मा द्वारा धरती पर पवित्र धागे भेजते हैं, जिन्हें बहनें मंगलकामना करते हुए भाइयों को बांधती हैं और भगवान शिव उन्हें नकारात्मक विचारों से दूर रखते हुए दुःख और पीड़ा से निजात दिलाते हैं।  हर त्योहार के साथ धार्मिक मान्यताओं, मिथकों, सामाजिक व ऐतिहासिक घटनाओं और परंपरागत विश्वासों का अद्भुत संयोग प्रदर्शित होता है। त्यौहार सिर्फ एक अनुष्ठान मात्र नहीं हैं, वरन् इनके साथ सामाजिक समरसता, सांस्कृतिक तारतम्य, सभ्यताओं की खोज एवं अपने अतीत से जुड़े रहने का सुखद अहसास भी जुड़ा होता है। राखी का सर्वप्रथम उल्लेख पुराणों में प्राप्त होता है जिसके अनुसार असुरों के हाथों देवताओं को पराजित होने के पश्चात अपनी रक्षा के निमित्त सभी देवता इंद्र के नेतृत्व में गुरु बृहस्पति के पास पहुंचे तो इंद्र ने दुखी होकर कहा- ‘‘अच्छा होगा कि अब मैं अपना जीवन समाप्त कर दूं।’’ इंद्र के इस नैराश्य भाव को सुनकर गुरु बृहस्पति के दिशा-निर्देश पर रक्षा-विधान हेतु इंद्राणी ने श्रावण पूर्णिमा के दिन इंद्र सहित समस्त देवताओं की कलाई पर रक्षा-सूत्र बांधा और अंततः इंद्र ने युद्ध में विजय पाई। एक अन्य कथा के अनुसार राजा बलि को दिए गए वचनानुसार भगवान विष्णु बैकुंठ छोड़कर बलि के राज्य की रक्षा के लिए चले गए। तब देवी लक्ष्मी ने ब्राह्मणी का रूप धर श्रावण पूर्णिमा के दिन राजा बलि की कलाई पर पवित्र धागा बांधा और उसके लिए मंगलकामना की। इससे प्रभावित हो बलि ने देवी को अपनी बहन मानते हुए उसकी रक्षा की कसम खाई। तत्पश्चात देवी लक्ष्मी अपने असली रूप में प्रकट हो गईं और उनके कहने से बलि ने भगवान विष्णु से बैकुंठ वापस लौटने की विनती की।  राखी से जुड़ी एक मार्मिक घटना क्रांतिकारी चंद्रशेखर आजाद के जीवन की है। आजाद एक बार तूफानी रात में शरण लेने हेतु एक विधवा के घर पहुंचे। पहले तो उसने उन्हें डाकू समझकर शरण देने से मना कर दिया पर यह पता चलने पर कि वहक्रांतिकारी आजाद है, ससम्मान उन्हें घर के अंदर ले गई। बातचीत के दौरान आजाद को पता चला कि उस विधवा को गरीबी के कारण जवान बेटी की शादी हेतु काफी परेशानियां उठानी पड़ रही हैं तो उन्होंने द्रवित होकर उससे कहा- ‘मेरी गिरफ्तारी पर 5000 रुपए का इनाम है, तुम मुझे अंग्रेजों को पकड़वा दो और उस इनाम से बेटी की शादी कर लो। यह सुन विधवा रो पड़ी व कहा-  तुम देश की आजादी हेतु अपनी जान हथेली पर रखकर चल रहे हो और न जाने कितनी बहू-बेटियों की इज्जत तुम्हारे भरोसे है। अतः मै ऐसा हरगिज नहीं कर सकती। यह कहते हुए उसने एक रक्षा-सूत्र आजाद के हाथों में बांधकर देश-सेवा का वचन लिया। सुबह जब विधवा की आंखें खुली तो आजाद जा चुके थे और तकिए के नीचे 5000 रुपए पड़े थे। उसके साथ एक पर्ची पर लिखा था- अपनी प्यारी बहन हेतु एक छोटी सी भेंट- आजाद। संवेदनाओं और संबंधों के इस पर्व पर आज बाजार हावी हो रहा है। ऐसे में जरूरत इसकी मासूमियत को बचाने की है।
रक्षा बंधन के लिए शुभ मुहूर्त
इस वर्ष रक्षा बंधन का पर्व रविवार, 10 अगस्त 2014 को मनाया जाएगा। रक्षा बंधन के दिन भ्रदाकाल पर विशेष रूप से विचार किया जाता है। भद्राकाल में राखी बांधना अशुभ माना जाता है। इस दिन भद्रा 10.08 से 11.08, भद्रा मुख- 11.08 से 12.48 तथा भद्रा मोक्ष- 1.38 तक रहेगा। अत र् रक्षाबंधन का उचित समय दिन में  दोपहर 1.38 बजे से लेकर रात 9.11 बजे तक होगा। इसमें भी दिन में 1.45 से लेकर शाम 4.23 बजे तक का समय विशेष शुभ है।

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