अटल को भारत रत्न की तैयारी से चहका कुल्लू
कुल्लू — सच्चाई यह है कि केवल ऊंचाई ही काफी नहीं होती, सबसे अलग-थलग, परिवेश से पृथक, अपनों से कटा-बंटा, खड़ा होना पहाड़ की महानता नहीं, मजबूरी है। कवि ह्दय अटल बिहारी वाजपेयी ने काफी साल पहले यह कविता मनाली के प्रीणी घर में ही रची और उस दौरान पीएम रहते हुए यहीं पर यह कविता सबको सुनाई। इसे काफी पसंद किया गया और पर्वतारोहण संस्थान में सजे कवि दरबार में इसके लिए उन्हें खूब वाहवाही भी मिली। विडंबना यह है कि पैरालाइज की वजह से पिछले तीन सालों से वाजपेयी बोल नहीं पा रहे हैं, सबसे अलग-थलग, अपनों से कटे हुए। वह और कविताएं रचना चाहते हैं, मगर सेहत साथ न देने में बेबस है। वहीं प्रीणी गांव में पड़ोसियों की मजबूरी है कि एक अरसे से वे अटल जी की झलक पाने के लिए तरस गए हैं। अब अटल के ही शागिर्द प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी इस रूप में एक उम्मीद जगा रहे हैं। स्वतंत्रता दिवस के खास मौके पर दिल्ली में अटल जी को भारत रत्न देने की तैयारी चल रही है। इस बार भारत रत्न के पांच दावेदारों में वाजपेयी का नाम सबसे ऊपर है। ऐसे में प्रीणी गांव में वाजपेयी साहब की कोठी की कई सालों से देखभाल कर रहे सुखराम से लेकर पंचायत प्रधान ठाकुर दास और अन्य पड़ोसी उम्मीद कर रहे हैं कि अटल जी को भारत रत्न से नवाजा जाता है तो केंद्र सरकार उनकी भावनाओं का भी ख्याल रखते हुए सम्मान समारोह में शरीक होने के लिए जरूर बुलावा भेजेगी। सुखराम तो मानों खुशी से फूले नहीं समा पा रहे हैं। वह कहते हैं कि मेरे साहब जी वाकई में भारत रत्न के सही हक दार हैं, उन्हें यह सम्मान काफी पहले ही मिल जाना चाहिए था। वहीं प्रीणी पंचायत के प्रधान ठाकुर दास के मुताबिक वे लोग उम्मीद कर रहे हैं कि अटल जी के पड़ोसी होने के नाते भारत
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