शिवायै सततम् नमः
नवरात्र शक्ति उपासना का पावन अवसर है। नौ दिनों तक संयमित जीवनशैली और उदात्त विचारों के जरिए शरीर और मन को इस योग्य बनाने की कोशिश की जाती है कि वह ब्रह्मांडीय शक्तियोंं को धारण कर सके। मंत्र जाप भी तभी सफल होता है जब शरीर और मन पवित्र हों। अन्यथा मंत्र के जरिए जिन शक्तियों का आह्वान किया जाता है, वे आती तो हैं, लेकिन साधक शरीर को स्वयं के धारण योग्य न पाकर वापस लौट जाती हैं…
मां दुर्गा का पूजन उनके भक्त नियमित ही करते हैं,परंतु नवरात्र में मां के नौ रूपों की विधिवत पूजा-उपासना अधिक फलदायी होती है और इससे धर्म,अर्थ, काम, मोक्ष, सभी प्राप्त होते हैं। कलश आदि स्थापित करने के बाद सबसे पहले आदि दुर्गा का ध्यान किया जाता है। मां सिंह पर आरूढ़ हैं ,मस्तक पर चंद्रमा का मुकुट है। मणि के समान कांति वाली भुजाओं में खड्ग,चक्र, धनुष और बाण धारण करती हैं। सुंदर रत्नजडि़त आभूषणों से सज्जित मां दुर्गा त्रिनेत्रा हैं। कानों में रत्नजडि़त कुंडल और पैरों में नूपुर सुशोभित हैं। वह सबकी रक्षा करती हैं।
मां शैलपुत्री
ध्यान- वंदे वांछित लाभाय चंद्रार्धकृत शेखराम्।
वृषारूढ़ा पद्म शूलधरां शैलपुत्री यशस्वनीम्।।
नवदुर्गा का प्रथम स्वरूप शैलपुत्री का है। इस लिए प्रथम दिन इन्हीं की पूजा की जाती है। यह प्रथम दुर्गा हैं ,भवसागर से तारने वाली हैं। सुख-सौभाग्य तथा धन ऐश्वर्य देने वाली त्रिलोक जननी, जो परमानंद देती हैं। यह यश और कीर्ति को बढ़ाती हैं।
मां ब्रह्मचारिणी
ध्यान- दधाना कर पद्मभ्यामक्षमाला कमंडल।
देवि प्रसीदतु मयि ब्रह्मचारिण्यनुन्रमा।।
मां दुर्गा का द्वितीय स्वरूप ब्रह्मचारिणी का है। इनका स्वरूप ज्योतिर्मय और भव्य है। नवरात्र के दूसरे दिन इनकी आराधना की जाती है। इनकी आराधना से साधक का स्वाधिष्ठान चक्र जागृत हो जाता है और अनेकानेक सिद्धियां स्वयं प्राप्त हो जाती हैं। दोनों हाथों में अक्षमाला और कमंडल धारण करने वाली देवी ब्रह्मचारिणी के आशीर्वाद से योग और अन्य साधनाएं सफल होती हैं।
मां चंद्रघंटा
ध्यान- पिंडज प्रवरारूढ़ा चंडकोपास्त्रकैर्युता।
प्रसीदं तनुते महां चंद्रघंटेति विश्रुता।।
मां चंद्रघंटा तीसरे स्वरूप के नाम से विख्यात हैं। इनके मस्तक पर घंटे की तरह पूर्णचंद्र स्थापित होने के कारण इन्हें चंद्रघंटा कहा जाता है। भुजाओं में अभयमुद्रा, धनुष,बाण तथा कमल सुशोभित हैं। कानों में स्वर्ण कुंडल तथा मस्तक पर स्वर्ण मुकुट है। तृतीय नवरात्र को मां चंद्रघंटा की आराधना की जाती है। इनका ध्यान हमारे इहलोक और परलोक दोनों के लिए कल्याणकारी है।
मां कूष्मांडा
ध्यान- सुरा संपूर्ण कलशं रुधिरा लुप्तमेव च।
दधानां हस्त पद्माभ्याम् कूष्मांडा शुभदास्तुमे।।
आदिशक्ति मां दुर्गा का चौथा रूप कूष्मांडा का है। अपने मंद हास्य से अंड-ब्रह्मांड को उत्पन्न करने के कारण इन्हें कूष्मांडा कहा जाता है। इनकी आराधना से परमपद की प्राप्ति होती है। इनके शरीर की कांति सूर्य के समान दैदीप्यमान है। आठ भुजाओं में कमंडल,धनुष,बाण तथा कमल,अमृत कलश ,जप माला,गदा और चक्र सुशोभित हैं। इनकी उपासना से रोग,शोक का नाश होता है और आयुबल में वृद्धिहोती है।
मां स्कंद माता
ध्यान-सिंहासनगता नित्यं,पद्माश्रित करद्वया।
शुभदास्तु सदा देवी स्कंदमाता यशस्विनी।।
नवरात्र के पांचवें दिन मां स्कंदमाता की आराधना की जाती है। इनके दो हाथों में कमल हैं,एक हाथ वरमुद्रा में है तथा दूसरे से इन्होंने कार्तिकेय को गोद में संभाल रखा है। इनकी उपासना से स्कंद देव की स्वतः उपासना हो जाती है।
मां कात्यायिनी
ध्यान- चंद्रहासोज्ज्वलकरा शार्दुवरवाहना।
कात्ययिनी शुभम् दद्याद्देवी दानव घातिनी।।
इनकी उपासना नवरात्र के छठे दिन होती है। इन्होंने महर्षि कात्यायन की तपस्या से प्रसन्न हो कर उनके यहां पुत्री रूप में जन्म लिया और उनके द्वारा पूजा ग्रहण की थी। इनकी उपासना से समस्त सिद्धियां स्वतः प्राप्त हो जाती हैं।
मां कालरात्रि
ध्यान- एक वेणी जपकर्णपूरा नग्ना खरास्थित।
लंबोष्ठी कर्णिकाकर्णी तैसाभ्यक्त शरीरिणी।
वामपादोलन सल्लोहता कंटकभूषजा वर्धन्मूर्धध्वजा कृष्णा कालरात्रिर्भयंकरी।।
मां का सप्तम स्वरूप कालरात्रि का है। यह काल का नाश करने वाली हैं। इनके शरीर का रंग अंधकार की तरह काला ,बाल बिखरे हुए हैं और गले में विद्युत की तरह चमकती माला है। ये तीन नेत्रों वाली हैं,वाहन गर्दभ है। स्वरूप से भयानक होने पर भी सदैव शुभ फल देती हैं। इसीलिए इन्हें शुभंगरीक भी कहा जाता है।
मां महागौरी
ध्यान- श्वेते वृषे समारूढ़ा शेवेतांबरधरा शुचिः
महा गौरी शुभं दधान्महादेव प्रमोददा
महागौरी आदि दुर्गा के अष्टम स्वरूप का नाम है। नवरात्र के आठवें दिन इनकी उपासना की जाती है। इनका वाहन वृषभ है और इनकी आयु आठ वर्ष की मानी जाती है। इनकी दो भुजाओं में वर मुद्रा तथा त्रिशूल और दो में अभय मुद्रा व कमंडल सुशोभित हैं। सर्व सिद्धियां प्राप्त करने के लिए इनकी उपासना फलदायक है।
मां सिद्धिदात्री
ध्यान- सिद्धिगंधर्व यक्षाधैरसुरैमरैरपि।
सेव्यमाना सदाभयात् सिद्धिदा सिद्धिदायिनी।।
मां दुर्गा का नवम् रूप सिद्धिदात्री के रूप में प्रसिद्ध है। इन्होंने अपनी चारों भुजाओं में पद्म,शंख,गदा और चक्र धारण कर रखा है। सिर पर स्वर्ण मुकुट और गले में श्वेत पुष्पों की माला है। यह माता कमल पर आसीन हैं। नवरात्रों में मां के इन्हीं रूपों का ध्यान कर पूजन करने से अभीष्ट की प्राप्ति होती है।
कैसे करें देवी उपासना
सबसे पहले घर के किसी एकांत कक्ष को अच्छी तरह साफ कर स्वच्छता से देवी के लिए मंडप बनाएं। उसे केले के पत्तों तथा पुष्पों से सजाएं। इस कक्ष में शोर नहीं आना चाहिए। यदि सप्तशती का पाठ करना है तो अपने आसन के आगे लकड़ी का आसन पुस्तक के लिए भी रखें। स्वयं बैठने के लिए लाल रंग का ऊनी आसन प्रयोग करें। उपासना में पुष्प और फल लाल रंग के ही हों तो उत्तम रहता है। पूजन सामग्री- कलश,लाल कपड़ा,मौली, देवी के लिए वस्त्र आभूषण, शृंगार की सभी वस्तुएं रुईबत्ती,धूप ,अक्षत,कपूर इलायची ,लौंग अगरबत्ती,पंचमेवा, हवन सामग्री, आम्र पल्लव, फल ,रोली, सिंदूर, फूल तथा गंगा जल।
विधि- प्रातः स्नान करके स्वच्छ वस्त्र पहनें। पूजा कक्ष में चौकी पर लाल वस्त्र बिछा कर उस पर भगवती दुर्गा का चित्र या मूर्ति स्थापित करें।
कलश स्थापना
शुभ मुहूर्त में चावलों की ढेरी पर कलश स्थापित करें। इसमें सिक्का रख कर जल तथा गंगाजल भरें। ऊपर पांच पत्तियों वाला आम्र पल्लव रखें तथा कलश की गर्दन पर कलावा बांधें। अब हाथ में पुष्प ले कर कलश में देवी का आवाहन करें।
ऊँ आगच्छ वर दे देवि दैत्यदर्प निषुदिनी
पूजां ग्रहाण सुमुखि नमस्ते शंकर प्रिये
सर्व तीर्थ मयं वारि सर्वदेव समन्वितं
इमं घटं समागच्छ सान्निध्यमिह कल्पय
बलि पूजा ग्रहणात्व मष्टाभि शक्तिभिः सह
इसके बाद देवी की षोडशोपचार पूजा कर देवी का कोई भी मंत्र पांच माला नित्य जप करें। जो सप्तशती पाठ करते हैं, वे नियमित रूप से पाठ करने के बाद सिद्ध कुंजिका स्तोत्र का पाठ अवश्य करें। पूजा समाप्ति के बाद क्षमा प्रार्थना करना न भूलें। प्रति दिन हवन नहीं कर सकते तो अष्टमी और नवमी को हवन करके विसर्जन करें। संभव हो तो पूरे नवरात्र अखंड दीप जलाएं।
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