भारतीय संस्कृति वैराग्य को ऊंचा सिंहासन देती है लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि इसमें समृद्धि के लिए कोई स्थान नहीं है। हमारी संस्कृति में समद्धि को भी एक मूल्य माना गया है। दीपावली का पर्व इसी बात को रेखांकित करता है। इसके अतिरिक्त दीपावली समृद्धि के एकांगी द्वीपों को महत्व नहीं देती। इसमें दीपपंक्तियों को आदरणीय माना जाता है। इसका आशय यही है कि समृद्धि तभी पूज्य होती है जब वह सामूहिक हो…
दीपावली श्री अर्थात लक्ष्मी का प्रतीक है। कहते हैं लक्ष्मी के सहस्र चरण हैं पर वह अंधेरे में नहीं आ पाती। वह केवल प्रकाश में अपना रास्ता तय करती है। इसी लिए इस महानिशा में असंख्य दीप जला कर लक्ष्मी का आह्वान किया जाता है। ऐसे में लक्ष्मी अंधकार के प्रतीक उल्लू को अपनी सवारी बनाकर आलोक रश्मियों के रथ पर सवार हो कर आती है। यह पंचदिवसीय पर्व अपने साथ ढेरों खुशियां लेकर आता है। कार्तिक कृष्ण त्रयोदशी से आरंभ हो कर कार्तिक शुक्ल द्वितीया तक चलने वाला दीपावली का पर्व इहलोक के साथ पारलौकिक सुखों को भी प्रदान करता है।
धनत्रयोदशी- इसे धनतेरस भी कहते हैं। यह कार्तिक कृष्णपक्ष त्रयोदशी के दिन मनाई जाती है। कहते हैं इस दिन समुद्र मंथन के समय आयुर्वेद के महान ज्ञाता भगवान धनवंतरि का प्राकट्य हुआ था। धनतेरस के दिन धनाध्यक्ष भगवान कुबेर जी की भी पूजा की जाती है। धनतेरस के दिन किसी को भी उधार न दें। संध्या के समय घर के बाहरी दरवाजे पर दोनों तरफ अन्न की ढेरी लगाएं और उस पर दीपक जला कर रखें। दीपक रखते समय दक्षिण दिशा की ओर मुंह करके निम्न मंत्र पाठ करें-मृत्युना दंडपाशाभ्यां कालेन श्यामया सह त्रयोदश्यां दीपनादात् सूर्यज प्रीयतां मम। ऐसा करने से यमराज प्रसन्न होते हैं और घर में अकाल मृत्यु असाध्य बीमारियां और दुर्घटना का भय नहीं रहता।
नरक चतुर्दशी- दीपावली से एक दिन यह पर्व छोटी दिवाली के रूप में मनाया जाता है। यमराज की घोर यातना से बचने के लिए इस दिन एक दीपक जला कर उसके तेल में तांबे का पैसा और कौड़ी रखें तथा इसे घर के बाहर दक्षिण दिशा में रख दें। सुबह कौड़ी और तांबे का पैसा संभाल कर रख लें।
दीपावली- दीपावली प्रकाशपर्व है । जहां प्रकाश आता है अंधकार वहां से चला जाता है। तब वहां मांगल्य है,आरोग्य है, धन-संपदा है और सर्वत्र शुभ ही शुभ है तथा शत्रुओं का विनाश तो निश्चित ही है। कहा भी गया है
शुभं करोतु कल्याणमारोग्य धनसंपदा शत्रु बुद्धिविनाशाय दीपज्योर्तिनमोस्तुते।
हमारे पूर्वजों ने दीपदर्शन को प्राधान्य दिया था। शुद्ध घी का जलता हुआ दीपक अंधकार के आसपास तीव्र प्रकाश के घेरे का निर्माण करता है और मानव के मन में आत्मज्योति का मार्ग दर्शन भी करता है। एक दीपक सहस्रों दीपकों को जला सकता है। और इसी तरह के असंख्य दीपों से जगमगाते पर्व का नाम दीपावली है।
गोवर्धन पूजा- यह एक तरह से भगवान श्री कृष्ण की पूजा का दिवस है। इसलिए, इस दिन अन्नकूट महोत्सव संपन्न किया जाता है। इस दिन छप्पन भोग बनाकर उसे पहाड़ की आकृति में सजा कर भगवान श्रीकृष्ण को अर्पित किया जाता है।
भाईदूज-कार्तिक शुक्लपक्ष द्वितीया को भाईदूज का पर्व होता है। इस दिन भाई बहन के घर जा कर उसकी शुभकामनाएं और आशीर्वाद प्राप्त करता है। तांत्रोक्त साधनाओं में यह दिन दश महाविद्या साधनाओं के लिए श्रेष्ठ माना गया है। इस पूरे महापर्व का एक ही संदेश है ,अंधकार पर प्रकाश की विजय। यही संदेश ले कर ये पांच पर्व सम्मिलित रूप से आते हैं।
पूजन मुहूर्त
धनतेरस पूजन
धनतेरस पूजा मुहूर्त : सायं 7 बजकर 4 मिनट से 8 बजकर 15 मिनट तक
पूजा-अवधि : 1 घंटा 10 मिनट
प्रदोष काल : सायं 5 बजकर 41 मिनट से 8 बजकर 15 मिनट तक
वृषभ काल : सायं 7 बजकर 4 मिनट से 9.00 बजे तक
दीपावली पूजन
लक्ष्मीपूजा मुहूर्त : सायं 6 बजकर 56 मिनट से 8 बजकर 14 मिनट तक
पूजा-अवधि : 1 घंटा 17 मिनट
प्रदोष काल : सायं 5 बजकर 39 मिनट से लेकर 8 बजकर 14 मिनट तक
वृषभ काल : सायं 6 बजकर 56 से 8 बजकर 52 मिनट तक
लक्ष्मी पूजन का विधान
दीपावली लक्ष्मी उपासना का पर्व है तथा इसे धन-धान्य सुख-संपदा के लिए सर्वोत्तम माना गया है। जरूरी यह भी है कि लक्ष्मी गणेश जी की प्रतिमाओं के साथ कुबेर प्रतिमा या चित्र की भी स्थापना करें। कुबेर देवताओं के कोषाध्यक्ष हैं ,वे आपके भी धन की रक्षा करेंगे और इस तरह अनायास होने वाला धन का खर्च बचा रहेगा। भगवती लक्ष्मी साक्षात नारायणी हैं और सभी चल व अचल में सामान्य रूप से निवास करती हैं। भगवान गणेश शुभ और लाभ के नियामक तथा सभी अमंगलों और विघ्नों के नाशक हैं। अतः इनके एक साथ पूजन से मनुष्य मात्र का कल्याण होता है। इनका विधि विधान से पूजन करें और सामग्री पहले ही एकत्र कर लें।
सामग्री- लक्ष्मी व गणेश जी तथा कुबेर की मूर्तियां,सोने अथवा चांदी का सिक्का, कलश,स्वच्छ कपड़ा, चौकी, धूप-अगरबत्ती, मिट्टी के छोटे- बड़े दीपक,सरसों का तेल ,शुद्ध घी,दूध -दही ,शुद्धजल और गंगा जल। हल्दी , रोली, चंदन ,कलावा, लाल कपड़ा, कपूर, नारियल, पान के पत्ते ,चीनी के खिलौने, खील, सूखे मेवे, मिठाई ,छोटी इलायची ,कुंकुम, वंदनवार और फूल।
विधि- दीपावली के दिन सुंदर सा वंदनवार अपने मुख्य द्वार पर लगाएं। चौकी धो कर साफ करें , उस पर लाल कपड़ा बिछा कर लक्ष्मी व गणेश तथा कुबेर की मूर्तियां इस प्रकार रखें कि उनका मुख पूर्व या पश्चिम में हो। लक्ष्मी जी की मूर्ति गणेश जी की दाहिनी ओर रखें। कलश को जल से भरें, उसमें सिक्का डाल कर मौली बांधें और लक्ष्मी जी के सामने चावलों की ढेरी पर स्थापित करें। नारियल को लाल कपड़े में लपेट कर कलश पर स्थापित करें। कलश वरुण का प्रतीक है इस लिए मन ही मन वरुण का आवाहन करें। अब दो बड़े दीपक रखें ,एक में तेल और एक में घी भरें। एक दीपक चौकी के दाईं ओर रखें और दूसरा घी वाला दीपक मूर्तियों के चरणों में रखें। एक और दीपक गणेश जी के सामने रखें।
प्रतिमाओं तथा चांदी के सिक्कों की विधिवत पूजा कर सिंदूर ,कुंकुम एवं अक्षत से चर्चित करें। पुष्पों और पुष्प मालाओं से अलंकृत करें। हो सके तो इस पूजा में कमल पुष्पों का प्रयोग करें । नैवेद्य में लाल मिठाई तथा मेवे चढ़ाएं। इसके बाद दीपमालिका का पूजन करें। किसी पात्र में 11,21 या इससे अधिक दीपक जला कर लक्ष्मी के सामने रखें और उनका पूजन करें। इसके बाद सभी दीपकों को जला कर घर के हर स्थान पर रखें। ध्यान रखें लक्ष्मी पूजन करते समय हाथ नहीं जोड़ना चाहिए यह विदा देने की रस्म है। इसलिए मन में ही नमन करें और कहें कि आपका तथा कुबेर जी का हमेशा हमारे घर में स्थिर निवास बना रहे। लक्ष्मी पूजा के समय घरके हर सदस्य को पूजा स्थल पर मौजूद होना चाहिए। और हर व्यक्ति लक्ष्मी जी की आरती करे व गाए। यदि इस प्रकार पूजा संपन्न करेंगे तो निश्चय ही लक्ष्मी का आपके घर में स्थायी निवास होगा।