epaper annithisweek.in
रोमांच और खूबसूरती का संगम है लद्दाख
बर्फीला रेगिस्तान लद्दाख उन सभी के लिए रोमांचकारी पर्यटन स्थल के रूप में उभरा हैं। जो जीवन में रोमांच पाने के साथ ही पर्यटन का आनंद लेने की इच्छा रखते छह सालों के भीतर 3 लाख से अधिक पर्यटकों ने बर्फीले रेगिस्तान की रोमांचकारी पर्वतमालाओं आदि का आनंद उठाया है…
बर्फीला रेगिस्तान लद्दाख उन सभी के लिए रोमांचकारी पर्यटन स्थल के रूप में उभरा है। जो जीवन में रोमांच पाने के साथ ही पर्यटन का आनंद लेने की इच्छा रखते हैं छह सालों के भीतर 3 लाख से अधिक पर्यटकों ने बर्फीले रेगिस्तान की रोमांचकारी पर्वतमालाओं आदि का आनंद उठाया है। इनमें डेढ़ लाख विदेशी थे, जिन्हें कश्मीर में फैले आतंकवाद के कारण नए पर्यटन स्थल की तलाश थी तो उन्होंने लद्दाख को अपना नया लक्ष्य बना डाला। असल में लद्दाख के पश्चिम में स्थित हिमालय पर्वतमालाओं की सुरम्य घाटियां और पर्वत ही विदेशियों के आकर्षण का केंद्र बने हुए हैं। लद्दाख के पूर्व में स्थित विश्व की सबसे बड़ी दो झीलें पेंगांग व सो-मोरारी भी इन विदेशियों के आकर्षण का केंद्र बनी हुई हैं जो कुछ वर्ष पूर्व तक प्रतिबंधित क्षेत्र में आती थीं, लेकिन आज उनकी सैर करना लद्दाख के दौरे के दौरान एक अहम अंग बन जाती है। असल में लद्दाख के पश्चिम में स्थित हिमालय पर्वतमालाओं की सुरम्य घाटियां और पर्वत ही विदेशियों के आकर्षण का केंद्र बने हुए हैं। इस बर्फीले रेगिस्तान के एक नए पर्यटन स्थल के रूप में उभरने के बावजूद एक पर्यटन स्थल के लिए जिस ढांचे और व्यवस्थाओं की आवश्यकता होती है उसकी आज भी लद्दाख में कमी है। नियमित व अतिरिक्त उड़ानों की कमी इसमें सबसे बड़ी है। जहां तक पहुंचने के लिए सड़क मार्ग भी है जिसकी यात्रा अत्यधिक रोमांचकारी है। लद्दाख आज विदेशियों के लिए एक रोमांचकारी पर्यटन स्थल बना है, लेकिन इससे इनकार नहीं किया जा सकता कि लद्दाख की कला और संस्कृति का दोहन और बलात्कार आज इन्हीं विदेशियों द्वारा किया जा रहा है जिनकी संस्कृति को अपनाने वाले आम लद्दाखी अपनी सभ्यता और संस्कृति को भुलाते जा रहे हैं। 38 वर्ष पूर्व जब लद्दाख को विदेशियों के आवागमन के लिए खोला गया था तो कोई भी लद्दाखी बाहरी दुनिया के प्रति जानकारी नहीं रखता था और आज विदेशी संस्कृति का इतना गहन प्रभाव है कि लद्दाख को एक नए रोमांचकारी पर्यटन स्थल के रूप में ही नहीं बल्कि पारिस्थितिकी पर्यटन के रूप में भी पेश किया जा रहा है। ऐसा इसलिए है क्योंकि पेड़-पौधों के अतिरिक्त कई कीमती व दुर्लभ जीवों के साथ-साथ कई दुर्लभ पेड़-पौधे आज तस्करी के माध्यम बने हुए हैं। सारे संदर्भ में एक गंभीर तथ्य यह है कि सरकार इस क्षेत्र को पर्यटन स्थल के रूप में उभारने में तो जुटी हुई है, लेकिन उसने उन सुविधाओं को उपलब्ध करवाने की ओर कभी ध्यान ही नहीं दिया जिनकी एक पर्यटक को आवश्यकता होती हैं, यही नहीं, ऐतिहासिक धरोहरों आदि को बचाने का प्रयास भी नहीं किया जा रहा है जो आने वाले हजारों पर्यटकों के कारण खतरे में पड़ती जा रही हैं।
No comments:
Post a Comment