Him sanskriti
आनंददाता हैं नंदी
नंदी शिव के वाहन हैं और शिव के पार्षदों में उनका प्रमुख स्थान है। प्रत्येक शिव मंदिर में उनकी उपस्थिति होती है। उनका मुख सदैव भगवान शिव की ओर होता है। वह अगाध श्रद्धा और निश्छल भक्ति के प्रतीक हैं। माना जाता है कि शिव तक प्रार्थनाएं और याचनाएं नंदी के जरिए ही पहुंचती हैं। नंदी का मानवीय रूप में भी पूजन किया जाता है। वह नंदिकेश्वर के रूप में भी पूजे जाते हैं। नंदी का मतलब ही आनंददाता होता है। शिव की कृपा नंदीकेश्वर के अनुग्रह के बिना नहीं मिलती…
शिव-तत्व को नंदी की कृपा के बिना नहीं समझा जा सकता। वह शिवमंडली के प्रमुख पार्षद हैं और सदैव शिव की सेवा में तत्पर रहते हैं। संभवतः इसी कारण वह शिव के सबसे बड़े कृपापात्र भी हैं। पुराणों की एक कथा के अनुसार शिलाद मुनि के ब्रह्मचारी हो जाने के कारण वंश समाप्त होता देख उनके पितरों ने अपनी चिंता उनसे व्यक्त की। शिलाद निरंतर योग तप आदि में व्यस्त रहने के कारण गृहस्थाश्रम नहीं अपनाना चाहते थे, अतः उन्होंने संतान की कामना से इंद्र देव को तप से प्रसन्न कर जन्म और मृत्यु से हीन पुत्र का वरदान मांगा। इंद्र ने इसमें असर्मथता प्रकट की तथा भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए कहा। तब शिलाद ने कठोर तपस्या कर शिव को प्रसन्न किया और उनके ही समान मृत्युहीन तथा दिव्य पुत्र की मांग की। भगवान शंकर ने स्वयं शिलाद के पुत्र के रूप में प्रकट होने का वरदान दिया। कुछ समय बाद भूमि जोतते समय शिलाद को एक बालक मिला। शिलाद ने उसका नाम नंदी रखा। उसको बड़ा होते देख भगवान शंकर ने मित्र और वरुण नाम के दो मुनि शिलाद के आश्रम में भेजे जिन्होंने नंदी को देखकर भविष्यवाणी की कि नंदी अल्पायु है। नंदी को जब यह ज्ञात हुआ तो वह महादेव की आराधना से मृत्यु को जीतने के लिए वन में चले गए और घोर-तपस्या करने लगे। वन में उन्होंने शिव का ध्यान आरंभ किया। भगवान शिव नंदी के तप से प्रसन्न हुए व दर्शन वरदान दिया- ‘वत्स नंदी! तुम मृत्यु से भय से मुक्त, अजर-अमर और हो। मेरे अनुग्रह से तुम्हे जरा, जन्म और मृत्यु किसी से भी भय नहीं होगा।’भगवान शंकर ने उमा की सम्मति से संपूर्ण गणों, गणेशों व वेदों के समक्ष गणों के अधिपति के रूप में नंदी का अभिषेक करवाया। इस तरह नंदी नंदीश्वर हो गए। मरुतों की पुत्री सुयशा के साथ नंदी का विवाह हुआ। भगवान शंकर का वरदान है कि जहां पर नंदी का निवास होगा वहां उनका भी निवास होगा। तभी से हर शिव मंदिर में शिवजी के सामने नंदी की स्थापना की जाती है। शिवजी का वाहन नंदी पुरुषार्थ अर्थात परिश्रम का प्रतीक है। नंदी का एक संदेश यह भी है कि जिस तरह वह भगवान शिव का वाहन हैं। ठीक उसी तरह हमारा शरीर आत्मा का वाहन है। जैसे नंदी की दृष्टि शिव की ओर होती है, उसी तरह हमारी दृष्टि भी आत्मा की ओर होनी चाहिए। हर व्यक्ति को अपने दोषों को देखना चाहिए। हमेशा दूसरों के लिए अच्छी भावना रखना चाहिए। नंदी यह संकेत देते हैं कि शरीर का ध्यान आत्मा की ओर होने पर ही हर व्यक्ति चरित्र, आचरण और व्यवहार से पवित्र हो सकता है। इसे ही सामान्य भाषा में मन का स्वच्छ होना कहते हैं। जिससे शरीर भी स्वस्थ होता है और शरीर के निरोग रहने पर ही मन भी शांत, स्थिर और दृढ़ संकल्प से भरा होता है। इस प्रकार संतुलित शरीर और मन ही हर कार्य और लक्ष्य में सफलता के करीब ले जाते हुए मनुष्य अंत में मोक्ष को प्राप्त करता है। धर्म शास्त्रों में उल्लेख है कि जब शिव अवतार नंदी का रावण ने अपमान किया तो नंदी ने उसके सर्वनाश को घोषणा कर दी थी। रावण संहिता के अनुसार कुबेर पर विजय प्राप्त कर जब रावण लौट रहा था तो वह थोड़ी देर कैलाश पर्वत पर रुका था। वहां शिव के पार्षद नंदी के कुरूप स्वरूप को देखकर रावण ने उसका उपहास किया। नंदी ने क्रोध में आकर रावण को यह श्राप दिया कि मेरे जिस पशु स्वरूप को देखकर तू इतना हंस रहा है। उसी पशु स्वरूप के जीव तेरे विनाश का कारण बनेंगे। नंदी का एक रूप सबको आनंदित करने वाला भी है। सबको आनंदित करने के कारण ही भगवान शिव के इस अवतार का नाम नंदी पड़ा। शास्त्रों में इसका उल्लेख इस प्रकार है-
त्वायाहं नंदितो यस्मान्नदीनान्म सुरेश्वर।
तस्मात् त्वां देवमानन्दं नमामि जगदीश्वरम।।
-शिवपुराण शतरुद्रसंहिता 6/45
अर्थात नंदी के दिव्य स्वरूप को देख शिलाद मुनि ने कहा तुमने प्रगट होकर मुझे आनंदित किया है। अतःमैं आनंदमय जगदीश्वर को प्रणाम करता हूं। सभी शिव मंदिरों में नंदी उपस्थित रहते हैं और उनका मुख सदैव भगवान शिव की तरफ होता है। हां, नासिक शहर में इसका एक अपवाद मिलता है। नासिक शहर के प्रसिद्ध पंचवटी स्थल में गोदावरी तट के पास एक ऐसा शिवमंदिर है जिसमें नंदी नहीं है। अपनी तरह का यह एक अकेला शिवमंदिर है। पुराणों में कहा गया है कि कपालेश्वर महादेव मंदिर नामक इस स्थल पर किसी समय में भगवान शिवजी ने निवास किया था। यहां नंदी के अभाव की कहानी भी बड़ी रोचक है। यह उस समय की बात है जब ब्रह्मदेव के पांच मुख थे। चार मुख वेदोच्चारण करते थे, और पांचवां निंदा करता था। उस निंदा से संतप्त शिवजी ने उस मुख को काट डाला। इस घटना के कारण शिव जी को ब्रह्महत्या का पाप लग गया। उस पाप से मुक्ति पाने के लिए शिवजी ब्रह्मांड में हर जगह घूमे लेकिन उन्हें मुक्ति का उपाय नहीं मिला। एक दिन जब वे सोमेश्वर में बैठे थे, तब एक बछड़े द्वारा उन्हें इस पाप से मुक्ति का उपाय बताया गया। कथा में बताया गया है कि यह बछड़ा नंदी था। वह शिव जी के साथ गोदावरी के रामकुंड तक गया और कुंड में स्नान करने को कहा। स्नान के बाद शिव जी ब्रह्महत्या के पाप से मुक्त हो सके। नंदी के कारण ही शिवजी की ब्रह्म हत्या से मुक्ति हुई थी। इसलिए उन्होंने नंदी को गुरु माना और अपने सामने बैठने को मना किया। शिव इस सकल सृष्टि के लिए कल्याणकारी तत्व हैं और नंदी उस कल्याणकारी स्रोत को भक्तों के द्वार तक पहुंचाते हैं।
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