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आंखों में उजाला भरतीं शालिनी
शॉलिनी ने समाज सेवा के क्षेत्र में अपनी एक अलग सी पहचान बनाई है। वर्ष 1999 से शॉलिनी कुल्लू में एक ब्लाइंड स्कूल को चला रही हैं। आज उनके ब्लाइंड स्कूल में करीब 37 बच्चे शिक्षा ग्रहण कर अपने अंधकार मय भविष्य को उजाले की ओर ले जाने का प्रयास कर रहे हैं…
पायल की छनछनाहट, चूड़ी की खनखनाहट, तितली सी बनकर उड़ना…..कुछ इसी अंदाज में कुल्लू की महिलाएं आज हर क्षेत्र में आगे बढ़ रही हैं। देवभूमि कुल्लू की महिलाओं में हुनर की कोई कमी नहीं है तथा हर कसौटी पर खरा उतरकर कुल्लू की महिलाओं ने इसे साबित करके भी दिखाया है। कुल्लू के सेऊबाग की शालिनी भी कुछ इसी दिशा में आगे बढ़ रही हैं। शालिनी ने समाज सेवा के क्षेत्र में अपनी एक अलग सी पहचान बनाई है। वर्ष 1999 से शालिनी कुल्लू में एक ब्लाइंड स्कूल को चला रही हैं। आज उनके ब्लाइंड स्कूल में करीब 37 बच्चे शिक्षा ग्रहण कर अपने अंधकार मय भविष्य को उजाले की ओर ले जाने का प्रयास कर रहे हैं। प्रदेश भर के ब्लाइंड बच्चे उनकी इस संस्था में आकर शिक्षा ग्रहण कर अपने जीवन को संवार रहे हैं। बच्चों के ठहरने के लिए भी उन्होंने अपने परिवार व राष्ट्रीय ब्लाइंड संस्था के माध्यम से होस्टल का निर्माण कर रखा है, ताकि बच्चों का संस्था के द्वारा सही ख्याल रखा जाए। प्रदेश के अग्रणी मीडिया ग्रुप ‘दिव्य हिमाचल’ से बातचीत करते हुए उन्होंने बताया कि अपने लिए तो सब जीते हैं, सब कमाते हैं, लेकिन दूसरों के लिए जीना व कमाना ही असली जीवन है। अब तो एक ऐसा समय आ गया है कि वह एक दिन स्कूल न जाएं तो फिर उनका मन नहीं लगता है। स्कूल में जाते ही सब बच्चे उन्हें शालिनी दीदी, शालिनी दीदी कहकर पुकारते हैं। उन्होंने बताया कि उनसे पहले उनकी बुआ ने इस संस्था को शुरू किया था तथा उन्होंने उन्हें भी समाज के प्रति बेहतर कार्य करने के लिए प्रेरित किया था। उन्होंने कहा कि समाज सेवा की भावना से ही उन्होंने इस प्रोफेशन को चुना तथा वह बिना किसी पगार या किसी भत्ते से इस स्कूल को चला रही हैं। जरूरत पड़ने पर वह अपने परिवार की सहायता से स्कूल में विद्यार्थियों के उत्थान के लिए पैसे भी खर्च करती हैं। उन्होंने कहा कि महिलाओं का घर के चूल्हे-चौके के बाहर भी एक जीवन होता है जोकि एक बेहतर समाज निर्माण का। महिलाओं को आगे आकर इस क्षेत्र में अपनी अहम भूमिका को निभाना चाहिए। उन्होंने कहा कि उनका एक सपना है जिसे वह हर कीमत पर पूरा करना चाहती हैं, उनके स्कूल में पढ़ रहे विद्यार्थी इस दुनिया के असली मुखौटे से पूरी तरह से अंजान हैं तथा उनकी यह कोशिश है कि जो उनका यह अंधकार भरा जीवन है इसमें उजाले की कुछ किरणों को बिखेर सकें।
छोटी सी मुलाकात
आपने समाज सेवा को ही क्यों चुना ?
समाज सेवा की भावना से मैं इस क्षेत्र में आई तथा अब अगर एक दिन भी स्कूल न जाऊं, तो फिर मेरा कहीं पर भी मन नहीं लगता है।
आपको अपने कार्य में किन दिक्कतों का सामना करना पड़ता है?
नहीं, इस क्षेत्र में मेरे सामने कोई समस्या नहीं आई। हां, मगर स्कूल में कभी कभार बच्चों के साथ इतना ज्यादा व्यस्त हो जाती हूं कि अपने परिवार के लिए समय निकालना काफी मुश्किल हो जाता है।
इस क्षेत्र में आप अपने प्ररेणा स्रोत किसे मानती हैं ?
कुल्लू की प्रसिद्ध समाज सेवी चंद्रआभा को मैं अपना प्ररेणा स्रोत मानती हूं। चंद्रआभा मुझे हमेशा समाज सेवा करने के लिए प्रोत्साहित करती रहती थीं।
प्रदेश की महिलाओं को कौन सा संदेश देना चाहेंगी?
प्रदेश की महिलाओं से मैं बस इतना कहना चाहती हूं कि वे अपनी ड्यूटी के प्रति हमेशा निष्ठावान रहें तथा अपने हकों के प्रति भी हमेशा जागरूक रहें। महिलाओं का एक जीवन घर की चार दीवारी के बाहर भी है तथा उन्हें आगे आकर एक बेहतर समाज के निर्माण के लिए अपनी अहम भूमिका को निभाना चाहिए। महिलाओं के बिना समाज अपंग और असंतुलित हो जाता है।
— संदीप शर्मा कुल्लू
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