Sunday, 15 June 2014

सरकारी विद्यालयों के प्रति भरोसा बढ़ाए सरकार

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सरकारी विद्यालयों के प्रति भरोसा बढ़ाए सरकार

(नरेश सहोड लेखक,  रावमापा गालियां, बिलासपुर के प्रधानाचार्य हैं)
सरकारी विद्यालयों में समस्त सुविधाओं के बावजूद बच्चों की संख्या में कमी आ रही है। वर्ष 2003-04 में प्रदेश के प्राथमिक विद्यालयों में विद्यार्थियों की संख्या पांच लाख 89 हजार 741 थी, जो 2012-13 में घटकर तीन लाख 80 हजार 699 रह गई…
15 अप्रैल, 1948 को जब हमारा प्रदेश अस्तित्व में आया उस समय प्रदेश स्कूलों का घनत्व बहुत कम था। हालांकि उस समय प्रदेश के लोगों में शिक्षा के प्रति कोई खास अभिरुचि नहीं थी, लेकिन इसके बावजूद विद्यालयों में बच्चों की संख्या पर्याप्त थी। जैसे-जैसे समय बीतता गया सरकार की कोशिशों और लोगों की शिक्षा में बढ़ी दिलचस्पी के कारण यह संख्या और भी बढ़ने लगी, लेकिन साथ ही निजी विद्यालयों का खुलना भी शुरू हो गया। लोगों का रुझान निजी विद्यालयों की तरफ  बढ़ना शुरू हो गया। नतीजतन सरकारी विद्यालयों में बच्चों की संख्या घटनी शुरू हो गई। लोगों की औसत आय बढ़ने के कारण भी उनका अपने बच्चों को पढ़ाने का रुझान सरकारी विद्यालयों से हटकर निजी विद्यालयों की तरफ  बढ़ना शुरू हो गया। शुरू में निजी विद्यालयों में बच्चों की तरफ  विशेष ध्यान देना शुरू किया गया, जिससे लोगों में इन निजी विद्यालयों के प्रति विश्वास बढ़ना शुरू हो गया। परिणाम यह निकला कि लोगों में अपनें बच्चों को सरकारी विद्यालयों में पढ़ाने की बजाय निजी विद्यालयों में पढ़ाने की होड़ सी लग गई और बाद में इसने भेड़चाल का रूप धारण कर लिया, जिसके कारण सरकारी विद्यालयों में समस्त सुविधाओं के बावजूद बच्चों की संख्या में कमी आनी शुरू हो गई है। वर्ष 2003-04 में प्रदेश के प्राथमिक विद्यालयों में विद्यार्थियों की संख्या पांच लाख, 89 हजार, 741 थी, जो 2012-13 में घटकर तीन लाख, 80 हजार, 699 रह गई। इसी प्रकार अपर प्राथमिक विद्यालयों में विद्यार्थियों की संख्या तीन लाख, 81 हजार, 582 थी, जो 2012-13 में घटकर दो लाख, 62 हजार, 778 रह गई। इस प्रकार प्राथमिक विद्यालयों में 35.45 फीसदी और अपर प्राथमिक विद्यालयों में 31.13 फीसदी की गिरावट दर्ज की गई। हालांकि पहली कक्षा से लेकर आठवीं कक्षा तक सभी बच्चों को मुफ्त दोपहर का भोजन मुहैया करवाया जा रहा है। पहली से दसवीं तक के बच्चों को मुफ्त किताबें तथा मुफ्त वर्दी दी जा रही है और साथ ही में सरकारी विद्यालयों में जितने भी अध्यापक कार्यरत हैं, वे सभी प्रशिक्षित और अनुभवी होते हैं और उनको अच्छा वेतन भी प्राप्त होता है। निजी विद्यालयों में इस प्रकार की कोई भी सुविधा प्राप्त नहीं है। इसके बावजूद इनमें बच्चों की संख्या बढ़ रही है, ऐसा क्यों? यह एक आज का सोचनीय एवं ज्वलंत मुद्दा बन चुका है। शुरू में प्रदेश में विद्यालयों की संख्या बहुत कम थी, लेकिन अब विद्यालयों की संख्या इतनी बढ़ चुकी है कि प्रत्येक दो या तीन किलोमीटर पर सरकारी विद्यालय स्थित है। प्रदेश में प्राथमिक विद्यालयों की संख्या तो बढ़ी है, लेकिन इसके अनुरूप इन विद्यालयों में स्टाफ  की बढ़ोतरी नहीं हुई है। हमेशा सरकारी विद्यालयों में स्टाफ  की भी कमी रहती है। दूसरे प्रदेश में एक स्थायी स्थानांतरण नीति न होने के कारण अध्यापकों में हमेशा डर सा बना रहता है कि पता नहीं कब स्थानांतरण हो जाए और कहां जाना पडे़। अध्यापकों को अध्यापन के अलावा और भी कई प्रकार के कार्य करने पड़ते हैं। प्रदेश में हर वर्ष कोई न कोई चुनावी गतिविधि होती रहती है, जिसमें अध्यापकों की सेवाएं ली जाती हैं, जिससे अध्यापन कार्य प्रभावित होता है। हालांकि सर्वोच्च न्यायालय के निर्णय के अनुसार अध्यापकों से पढ़ाई के अलावा कोई अन्य कार्य नहीं लिया जा सकता, लेकिन इसके बावजूद सरकार के द्वारा अध्यापकों से कई प्रकार की अन्य सेवाएं ली जा रही हैं, जिससे विद्यार्थियों की पढ़ाई बाधित हो रही है। इसी वजह से बच्चे सरकारी विद्यालयों को छोड़कर भारी भरकम फीस होने के बावजूद निजी विद्यालयों की तरफ  पलायन कर रहे हैं। आज कोई भी साधन संपन्न व्यक्ति अपने बच्चों को सरकारी विद्यालयों में नहीं पढ़ा रहा है। इन विद्यालयों में तो केवल गरीब व प्रवासी मजदूरों के बच्चे ही पढ़ना पसंद कर रहे हैं। यदि समय रहते इस तरफ  ध्यान न दिया गया, तो वह दिन दूर नहीं, जब इन विद्यालयों में केवल अध्यापक ही रह जाएंगे। सरकार को चाहिए कि कुकरमुतों की तरह बढ़ती हुई निजी विद्यालयों व सरकारी विद्यालयों की संख्या पर रोक लगाए और प्रदेश में ऐसा माहौल बनाए, जिससे लोगों का भरोसा सरकारी विद्यालयों में बढे़ और सरकारी विद्यालयों में बच्चों की संख्या में बढ़ोतरी हो।

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