epaper annithisweek.in
चुराह घाटी की पहली सियासी महिला कृष्णा महाजन
कृष्णा महाजन ने सरकारी नौकरी की बजाय विरासत में मिली राजनीति को अपनी कर्मक्षेत्र चुना। पिता के पदचिन्हों पर चलते कृष्णा महाजन आज जनहित के मुद्दों को सुलझाने को लेकर प्रयासरत रहती हैं…
अनपढ़ता व पिछड़ेपन का दंश झेल रही चुराह घाटी की भंजराडू पंचायत में पिछले पच्चीस वर्षो से बतौर प्रधान तैनात सुश्री कृष्णा महाजन ने खुद को पूरी तरह समाजसेवा को समर्पित कर दिया है। चुराह की पहली ग्रेजुएट होने के बावजूद कृष्णा महाजन ने सरकारी नौकरी की बजाय विरासत में मिली राजनीति को अपनी कर्मभूमि चुना। पिता के पदचिन्हों पर चलते कृष्णा महाजन आज जनहित के मुददों को सुलझाने को लेकर प्रयासरत रहती हैं। कृष्णा महाजन की इस बेबाक शैली के चलते ही जनता ने उन्हें अढ़ाई दशकों से प्रधान की कमांड सौंपी रखी है। सुश्री कृष्णा महाजन का जन्म 31 अगस्त, 1953 को स्व. देवीदास महाजन के घर में हुआ था। कृष्णा महाजन के वर्ष 1972-73 में ग्रेजुएशन की पढ़ाई पूरी करने के साथ ही माता का निधन हो जाने से पारिवारिक जिम्मेदारियों का बोझ आन पड़ा। कृष्णा महाजन ने पारिवारिक जिम्मेदारियों के निर्वाह को तवज्जो देते हुए वैवाहिक जीवन अपनाने को भी तिजांजलि दे डाली। दलगत राजनीति में कृष्णा महाजन भाजपा की विचारधारा से संबंध रखती हैं। सुश्री कृष्णा महाजन बताती हैं कि पिछले पांच दशकों से भंजराडू पंचायत के प्रधान पर काबिज हैं। इससे पहले उनके पिता स्व. देवीदास महाजन ने पांच मर्तबा जीत दर्ज कर प्रधान पद का निर्वाह किया। पिता के निधन के उपरांत उन्होंने चुनाव लड़ा और जीत हासिल की। उन्होंने बताया कि वह भी पांचवीं मर्तबा प्रधान बनी हैं। उन्होंने बताया कि उनके कार्यकाल में पंचायत को अटल आदर्श पंचायत और वाल्मीकि योजना के तहत पुरस्कार हासिल हुआ है। निर्मल पंचायत हेतु भी चयन हो चुका है, लेकिन पुरस्कार की आधिकारिक घोषणा नहीं हो पाई है।
छोटी सी मुलाकात
शादी न करने का कारण क्या है?
मैंने सत्तर के दशक में ग्रेजुएशन की थी। उस समय यह बहुत बड़ी उपलब्धि थी। छोटे भाई की देखरेख में कब वक्त निकल गया पता नहीं लग पाया। जब ख्याल आया तो उम्र निकल चुकी थी। सार्वजनिक सक्रियता के कारण भी वैवाहिक जीवन के बारे में सोचने का वक्त ही नहीं मिला।
कर्मभूमि में महिलाओं के लिए सबसे जरूरी चीज क्या है?
आज के दौर में महिलाएं किसी भी क्षेत्र में पुरूषों से पीछे नहीं हैं। लेकिन बाहर जाकर काम करने वाली महिलाओं को इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि चरित्र ही महिला का सबसे बड़ा गहना है। इसलिए कर्मभूमि कोई भी हो, लेकिन चरित्र पर आंच नहीं आनी चाहिए। हौसले बुलंद हों तो कोई भी मंजिल पाना मुश्किल नहीं है।
चुराह क्षेत्र की लड़कियों को कैसे प्रेरित किया?
1972- 73 के दौर में जब मैंने चुराह की पहली ग्रेजुएट होने की उपलब्धि हासिल की तो उस वक्त लड़कियों को पढ़ाने का कोई खास रिवाज नहीं था। मगर मैंने ग्रेजुएट होकर चुराह में इस भ्रांति को तोड़ दिया और भावी पीढ़ी के लिए प्ररेणास्रोत बन गई। आज चुराह की लड़कियां पढ़ाई के साथ अन्य क्षेत्रों में पुरुषों के समकक्ष खड़ी हुई हैं।
दीपक, चंबा
No comments:
Post a Comment