Tuesday, 29 April 2014

चंबा में हैं कई खंडित मंदिर

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चंबा में हैं कई खंडित मंदिर

चंबा में चम्पावती श्री चामुंडा देवी और श्री बज्रेश्वरी देवी के मंदिर प्रमुख हैं। इन मंदिरों का निर्माण शिखर शैली में हुआ है। जबकि चामुंडा मंदिर इससे अलग है। चंबा शहर के मध्य कई खंडित मंदिर हैं…
इस मैदान के मध्य खड़े होकर चंबा शहर के पुराने महल, प्राचीन मंदिर और कई कला-स्तंभ दिखाई देते हैं जो पुराने शासन की यादें ताजा करते हैं। इस शहर ने अपने आंचल में मरू वर्मन से लेकर राजा लक्ष्मण सिंह तक का विशाल राज्य तथा कई उतार-चढ़ाव देखे हैं। चंबा अपने प्राकृतिक सौंदर्य, कलात्मक मंदिरों उत्कृष्ट विभूतियों, अनूठी संस्कृति, प्राचीन मेलों और  परंपराओं के कारण ख्याति प्राप्त कर चुका है। चंबा चौगान में मिंजर मेला विशेष रूप से प्रसिद्ध है। चौगान से ऊपर की ओर एक तरफ सूही देवी और दूसरी तरफ चामुंडा के मंदिर हैं। यहां पहुंच कर चंबा शहर और संपूर्ण  रावी नदी का परिदृश्य भाव विभोर कर देता है। माता सूही देवी का मंदिर एक पहाड़ी की गोद में चारों तरफ से खुला है। जिसके मध्य माता सूही देवी की प्राचीन मूर्ति विद्यमान है। रानी सूही राजा साहिल वर्मा की रानी थी, जिसने चंबा शहर के लिए पेयजल लाने के लिए अपना बलिदान दे दिया। स्मृतियों को ताजा करने की दृष्टि से सूही मेला हर वर्ष 15 चैत्र से मनाया जाता है। चंबा के प्राचीन मंदिरों में चंबा का प्रसिद्ध कलात्मक शिखर शैली में निर्मित लक्ष्मी नारायण मंदिर दर्शनीय है। इसमें छः मंदिरों का समूह है। जिस कारण इसे लक्ष्मी नारायण मंदिर समूह कहा जाता है। इस परिसर का निर्माण दसवीं शताब्दी में राजा साहिब वर्मन ने करवाया। चंबा चम्पावती श्री चामुंडा देवी और श्री बज्रेश्वरी देवी के मंदिर प्रमुख हैं। इन मंदिरों का निर्माण शिखर शैली में हुआ है। जबकि चामुंडा मंदिर इससे अलग है। चंबा शहर के मध्य कई खंडित मंदिर हैं। 

बेरोजगारों को डाटा एंट्री का प्रशिक्षण

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बेरोजगारों को डाटा एंट्री का प्रशिक्षण

आनी — आनी मुख्यालय में 29 अप्रैल को बेरोजगारों के लिए भारत सरकार द्वारा संचालित डोमेस्टिक डाटा एंट्री आपरेटर प्रशिक्षण की शुरुआत खंड आनी में स्थित अलमा कम्प्यूटर अकादमी में की गई। इस योजना के तहत प्रदेश में 10 लाख युवाओं को प्रशिक्षित किया जा रहा है। अल्मा कम्प्यूटर अकादमी निदेशक सुधीर कुमार ने बताया कि यहां के युवाओं के लिए यह एक सुनहरा मौका है। भारत सरकार द्वारा संचालित इस प्रशिक्षण योजना के तहत एक महीने में युवाओं को डाटा एंट्री से संबंधित विभिन्न पहलुओं से प्रशिक्षित करवाया जाएगा। इस प्रशिक्षण शिविर में प्रशिक्षणार्थी 15 मई तक प्रवेश ले सकेंगे, जिसके लिए आधार कार्ड का होना अनिवार्य है और 17 से 35 वर्ष के सभी युवा इसमें प्रशिक्षण प्राप्त कर सकेंगे।

आनी में पंचायती कार्यों पर मंथन

आनी — खंड की 32 ग्राम पंचायतों की प्रतिनिधियों की एक विशेष बैठक का आयोजन खंड विकास कार्यालय आनी में किया गया। बैठक की अध्यक्षता सहायक आयुक्त एवं खंड विकास अधिकारी  सुरजीत सिंह राठौर ने की, जिसमें पंचायतीराज संस्थाओं को कार्य निर्माण क्रियावयन से संबंधित सरकार द्वारा जारी दिशा-निर्देशों तथा पंचायती राज अधिनियम के तहत नियमों के बारे में जानकारी दी गई। बैठक में सहायक आयुक्त द्वारा बताया गया कि सचिव ग्रामीण विकास द्वारा जारी दिशा-निर्देशों के अनुसार ग्रामीण विकास के जो कार्य क्रियान्वयन के लिए खंड विकास अधिकारी को सौंपे जाते हैं, उन्हें निष्पादित करने की प्रथम प्राथमिकता ग्राम पंचायतों को ही दिए जाएंगे।










आई पी एल 7 में हिमाचल का खिलाडी ऋषी धवन

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ऋषि के आगे पानी भरते नजर आए युवी-डिविलियर्स

डैहर —  प्रदेश के दैनिक अग्रणी समाचार पत्र ‘दिव्य हिमाचल’ द्वारा स्पोर्ट्सपर्सन ऑफ दि ईयर अवार्ड विजेता ऋषि धवन को वैसे तो सभी लोग भली-भांति परिचित हैं, लेकिन मंडी जिला का यह सपूत इन यूएई में खेले जा रहे आईपीएल टी-20 सीजन-सात में हिमाचल प्रदेश के साथ-साथ मंडीवासियों का भी नाम रोशन कर रहा है। मंडी जिला से ताल्लुक रखने वाले ऋषि धवन आईपीएल के छठे संस्करण में भी अपना जलवा दिखा चुके हैं, लेकिन सीजन-सात के सोमवार को हुए बंगलूर बनाम किंग्स इलेवन पंजाब के मैच में पंजाब की ओर से गेंदबाजी करते हुए युवा क्रिकेटर ऋषि धवन ने चार ओवरों में 14 रन देकर दो दिग्गज बल्लेबाज एबी डिविलियर्स और सिक्सर किंग युवराज सिंह को आउट कर पंजाब के लिए बड़ी सफलताएं हासिल कीं। मंडी जिला के डैहर कस्बे में क्रिकेट प्रेमियों ने ऋषि धवन की हर गेंद पर चक दे हिमाचल का नारा लगाकर खुशी जाहिर की। डैहर के क्रिकेटर प्रेमी संजू, शंकर, जितेंद्र, संजय, राजू, रमेश, राजीव मौदगिल आदि ने बताया कि मंडी के सपूत ने समूचे मंडी के साथ-साथ हिमाचलवासियों का सिर गर्व से ऊंचा किया व आगामी टूर्नामेंट के मैचों में शानदार प्रदर्शन कर हिमाचल को गौरवान्वित करेंगे। डैहर के युवा स्पोर्ट्सपर्सन एवं डीपी विवेकानंद स्कूल राजीव मौदगिल ने बताया कि कई मर्तबा युवा क्रिकेटर ऋषि धवन के साथ खेल चुके हैं और वे शुरू से ही बड़े आक्रामक व मेहनती खिलाड़ी थे।

Monday, 28 April 2014

जनकल्याण संस्था की प्रदेश अध्यक्ष अंजना ठाकुर

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दो हजार महिलाओं को मिला रोजगार

आनी — दुर्गा माता मंदिर आनी में राज्य स्तरीय महिला सम्मेलन का आयोजन किया गया, जिसमें हिमालयन महिला एवं जनकल्याण संस्था की प्रदेश अध्यक्ष अंजना ठाकुर शामिल हुईं। इस विशेष बैठक में आनी, कुल्लू, शिमला, मंडी, बिलासपुर, रोहड़ू, सोलन की संस्था की सदस्य शामिल हुईं। प्रदेश संस्था अध्यक्ष अंजु ठाकुर ने महिलाऔं को संबोधित करते हुए कहा कि प्रदेश की दो हजार महिलाओं को रोजगार दिया गया है। पूरे प्रदेश में कौशल विकास भत्ता येजना 2013 शुरू होने के बाद प्रदेश की महिलाओं को ग्रामीण स्तर पर रोजगार मिला है, क्योंकि प्रदेश में ग्रामीण महिलाओं का कौशल विकास करवाने के लिए ग्रामीण स्तर पर संस्था ऐसी गरीब ग्रामीण महिलाओं को रोजगार मुहैया करवा रही है, जो महिलाएं स्वयं तकनीकी सकिल में विकसित हैं या ऐसी महिलाओं का चयन कर रही है, जो महिलाएं डिप्लोमा, आईटीआई होल्डर हैं, जो कई सालों से घर में बेरोजगार बैठी हैं। संस्था की अध्यक्ष ने कहा कि इस योजना से ग्रामीण महिलाओं में खुशी की लहर है और ज्यादा से ज्यादा महिलाएं कौशल विकास भत्ता योजना के साथ जुड़कर रोजगार कार्यालय में अपना नाम पंजीकरण करवा रही हैं। सकिल केंद्रों में तैनात महिला अध्यापिकाओं से आह्वान किया है कि वे समय पर अपने सकिल केंद्र खोलें व ठीक ढंग से महिलाओं का कौशल विकास करवाएं, क्योंकि आनी, बंजार, कुल्लू खंडों में विभागीय सर्वेक्षण श्ुरू हो चुका है। इस पूरी योजना के लिए संस्था ने उड़नदस्ते की टीम तैयार कर ली है। इस विशेष सम्मेलन में मुख्यमंत्री से मांग की गई कि सरकार शीघ्र संस्था केंद्रों का निरीक्षण करे और अभ्यर्थियों का भत्ता नियमित किया जाए। इस बैठक में एमडी अनिल शर्मा,राज्य प्रतिनिधि सुनील कुमार, क्षेत्रीय समन्वयक कृष्ण सिस्टा, सतपाल ठाकुर, संतोष ठाकुर ने भी अपने-अपने विचार रखे। इसके अलावा बैठक में प्रधान देवराज, प्रताप सिंह,संस्था कुल्लू के प्रभारी सोमलता, बिलासपुर से रवि, आनी खंड की 32 पंचायतों की सिलाई अध्यापिकाएं उपस्थित थीं।

Manuscript of Bhagavata Purana

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the Sarada script

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Sarada
Quick Facts
TypeSyllabic Alphabetic
GenealogyBrahmi
LocationSouth Asia
Time8th century CE to 14th century CE
DirectionLeft to Right
Between the 8th and 10th century CE, a Western variant of the Gupta script evolved into the Sarada script. Sarada is used mainly in Kashmir from the 8th century CE onwards, and evolved into several variants in a few centuries. By the 10th century, the first variant, the Landa script, has appeared in Punjab, and would eventually transform into the Gurmukhi script. And by the 14th century CE, other variants such as Kashmiriand Takri also appeared in the Kashmir region.
The following is the basic Sarada alphabet from the 9th century CE.

Note: Sarada is also alternatively known as Sharada, Sarda, and Sharda

The Brahmi script

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The Brahmi script is one of the most important writing systems in the world by virtue of its time depth and influence. It represents the earliest post-Indus corpus of texts, and some of the earliest historical inscriptions found in India. Most importantly, it is the ancestor to hundreds of scripts found in South, Southeast, and East Asia.
This elegant script appeared in India most certainly by the 5th century BCE, but the fact that it had many local variants even in the early texts suggests that its origin lies further back in time. There are several theories on to the origin of the Brahmi script. The first theory is that Brahmi has a West Semitic origin. For instance, the symbol for a resembles Semitic letter 'alif. Similarly, dhathala, and ra all appear quite close to their Semitic counterparts. Another theory, from a slightly different school of thought, proposes aSouthern Semitic origin. Finally, the third theory holds that the Brahmi script came from Indus Script. However, at least in my personal opinion, the lack of any textual evidence between the end of the Harappan period at around 1900 BC and the first Brahmi and Kharoshthi inscriptions at roughly 500 BC makes the Indus origin of Brahmi highly unlikely. Yet on the other hand, the way Brahmi, and its relative Kharosthi, works is quite different from Semitic scripts, and may point to either a stimulus-diffusion or even indigenous origin. The situation is complex and confusing, and more research should be conducted to either prove or disprove any of the theories.
Brahmi is a "syllabic alphabet", meaning that each sign can be either a simple consonant or a syllable with the consonant and the inherent vowel /a/. Other syllabic alphabets outside of South Asia include Old Persian and Meroïtic. However, unlike these two system, Brahmi (and all subsequent Brahmi-derived scripts) indicates the same consonant with a different vowel by drawing extra strokes, called matras, attached to the character. Ligatures are used to indicate consonant clusters.
The following chart is the basic Brahmi script. There are many variations to the basic letter form, but I have simplified it here so that the most canonical shape is presented.
And an example of strokes added to indicate different vowels following the consonants /k/ and /l/.
The Brahmi script was the ancestor of all South Asian Writing Systems. In addition, many East and Southeast Asian scripts, such as BurmeseThaiTibetan, and even Japanese to a very small extent (vowel order), were also ultimately derived from the Brahmi script. Thus the Brahmi script was the Indian equivalent of the Greek script that gave arise to a host of different systems. You can take a look at the evolution of Indian scripts, or the evolution of Southeast Asian scripts. Both of these pages are located at the very impressive site Languages and Scripts of India. You can also take a look at Asoka's edict at Girnar

basic Takri script

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he following is the basic Takri script.

Takri alphabet ....shivraj sharma 9418081247

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Takri alphabet   Takri alphabet (Ṭākarī)

The Takri alphabet is a Brahmic alphabet related to the Sharada, Landa and Gurmukhi alphabets, descended from the Devāśeṣa alphabet, which developed from the Sharada alphabet in the 14th century. The Takri alphabet emerged as a distinct script during the 16th century.
Takri was as an official script in parts of north and northwest India from the 17th century until the mid-20th century. A version of Takri was the official script of Chamba State, which is now part of Himachal Pradesh, and was used to write Chambeali. In Jammu and Kashmir a version of Takri known as Dogra Akkhar was used to write Dogri. It was offically adopted in the 1860s, and was replaced by Devanagari in 1944.
Takri was also used on postage stamps and postmarks; for translations of Sanskrit texts into Dogri; for official records, letters and decrees; in inscriptions; for translations of Christian religous texts into Chambeali; on Pahari paintings. It has also been used to write the Gaddi, Jaunsari, Kashtwari, Kulvi and Mandeali languages.
Other names for Takri include Takari, Takkari Tankri and Ṭākarī. The origins of the name are uncertain: one theory is that it is derived from ‘ṭaṅkā (coin). Another theory suggests that the name is connected to ṭakka, the old landed class of Punjab, or that it is the alphabet of theṬakkas.
Since Takri fell out of use, efforts have been made to revive it for Dogri Kishtwari and Kulvi in the states of Jammu, Kashmir and Himachal Pradesh, where the local government has set up a programme to train Takri specialists in association with the Indira Gandhi National Open University.
There is considerable regional variation in the Takri alphabet with each state or region have its own version. The version below is are mainly Chambeali versions.

Notable features

  • Type of writing system: syllabic alphabet / abugida
  • Direction of writing: left to right in horizontal lines
  • Used to write: Dogri, Chambeali, Gaddi, Jaunsari, Kashtwari, Kulvi, Mandeali and a number of other languages.

Takri alphabet

Consonants

Takri consonants

Vowels

Takri vowels

Numerals

Takri numerals

Saturday, 26 April 2014

1951 में हर प्रत्याशी की थी अलग मत पेटी

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1951 में हर प्रत्याशी की थी अलग मत पेटी

newsरिकांगपिओ — 1951 में जब पहली बार वोटिंग हुई थी तो उस समय हर प्रत्याशी की अलग-अलग मत पेटी हुआ करती थी। यानी कि जिस प्रत्याशी को वोट डालना होता था, वोटर उसी प्रत्याशी की मत पेटी में पर्ची डालता था। यही नहीं, चुनाव प्रक्रिया में लगे कर्मचारियों को लगभग उसी दिन पता चल जाता था कि किस प्रत्याशी को कितने अधिक मत पडे़ हैं। श्याम सरन नेगी ने जब 1951 में पहला मतदान कर देश का पहला वोटर बनने का गौरव हासिल किया था, तब वह किन्नौर के मूरंग में तैनात थे। इस दौरान उनकी ड्यूटी पोलिंग पार्टीज के साथ लगी। उन्होंने बताया कि जिस तरह मौजूदा समय में गांव-गांव में पोलिंग बूथ स्थपित कर अलग-अलग पोलिंग पार्टियां तैनात की जाती हैं, 1951 में ऐसा नहीं होता था। उस समय पोलिंग पार्टीज को मतदान पेटियां लेकर गांव-गांव जाना पड़ता था। 1951 में देश में पहली बार हुए चुनाव के दौरान उनकी ड्यूटी पोलिंग पार्टीज के साथ शौंगठोंग, पूर्वनी, रिब्बा, मूरंग व नेसंग में लगी थी। शौंगठंग में मतदान शुरू करने से पहले उन्होंने ड्यूटी से छुट्टी लेकर अपने गांव कल्पा आए और मतदान कर फिर शौंगठोंग ड्यूटी पर लौट गए। शौंगठोंग से नेसंग तक की यह चुनावी प्रक्रिया को पूरा करने में दस दिन का समय लगा था। श्री नेगी यह भी बताते हैं कि उस दौरान चुनाव में जितने प्रत्याशी मैदान में खडे़ होते थे, उतनी ही मत पेटियां हुआ करती थीं। यानी की प्रत्येक प्रत्याशी की अलग-अलग मत पेटी हुआ करती थी। जो मतदाता जिस प्रत्याशी को मत देता था, उसी प्रत्याशी के मत पेटी में मतदान की गई पर्ची डालता था। श्री नेगी आज के दौर में चुनाव आयोग द्वारा आधुनिक तरीके से की जा रही गुप्त मतदान प्रक्रिया को तब की अपेक्षा सही व बेहतर बता रहे हैं।

रोहतांग पार करने के चुकाने होंगे 20 रुपए

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रोहतांग पार करने के चुकाने होंगे 20 रुपए

newsकुल्लू  — कुल्लू से लाहुल अपने घर जाने के लिए कबायलियों को रोहतांग पार करने के लिए टैक्स चुकाना होगा। रोहतांग पास के लिए अब हर व्यक्ति पर ग्रीन ट्रिब्यूनल ने टैक्स लगा दिया है। इसके साथ ही घोड़े भी अब बिना परमिशन से रोहतांग पास नहीं जा पाएंगे। घोड़ों को ले जाने वाले व्यक्ति को पहले प्रशासन से इसकी परमिशन लेगी पड़ेगी तथा बाकायदा इसका परमिट भी बनेगा। इसके साथ घोड़ों को रोहतांग ले जाने पर संबंधित व्यक्तियों को वहां पर सफाई व्यवस्था का ध्यान रखना पड़ेगा। उल्लेखनीय है कि इससे पहले बाहरी राज्यों की गाडि़यों से ही ग्रीन टैक्स लिया जाता था, लेकिन अब प्रदेश की गाडि़यों के साथ-साथ हर व्यक्ति को रोहतांग जाने के लिए ग्रीन टैक्स चुकाना होगा। बस में अगर कोई व्यक्ति रोहतांग जाता है तो उसे 20 रुपए एक व्यक्ति के हिसाब से ग्रीन टैक्स देना होगा। जानकारी के अनुसार जो गाड़ी 15 वर्ष से सड़कों पर चल रही होगी, उस गाड़ी को रोहतांग जाने के लिए परमिशन भी नहीं मिलेगी।  वहीं कुछ दिनों तक रोहतांग दर्रे को पार करवाने वाले घोड़ों के मालिक भी इस फैसले से दुविधा में पड़ गए हैं। परमिट मिलने के बाद अगर उन्होंने रोहतांग में सफाई व्यवस्था का ध्यान नहीं रखा तो इस पर प्रशासन उन्हें जुर्माना भी लगा सकता है। उधर, पूर्व मंत्री डा. रामलाल मार्कंडेय का कहना है कि वह इस फैसले को ग्रीन ट्रिब्यूनल में चैलेंज करने जा रहे हैं। उन्होंने कहा कि लोकसभा चुनावों के तुरंत बाद वह इस प्रक्रिया को शुरू कर देंगे। उधर, उपायुक्त लाहुल-स्पीति वीर सिंह ठाकुर ने बताया कि ग्रीन ट्रिब्यूनल द्वारा लिए गए फैसले की कापी उन्हें मिल गई है। जिसमें हर गाड़ी संचालक से ग्रीन टैक्स लेने की बात कही गई है। इसके साथ ही बस में सफर कर रहे यात्रियों से भी हरेक यात्री से 20 रुपए के हिसाब से ग्रीन टैक्स की वसूली की जाएगी।

10 लाख पर्यटन व्यवसायी

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अपनी दौलत से बेखबर हिमाचल

अरबों का पर्यटन और करोड़ों रुपए की बागबानी हिमाचल की रीढ़ है। सकल घरेलू उत्पाद में इनका अहम रोल है, फिर भी सरकारें इस दौलत को समझ नहीं पा रहीं। किसान-बागबान औने-पौने दाम में फसल बेचने को मजबूर हैं। पर्यटन व्यवसायी रेल-एयर नेटवर्क की तरफ टकटकी लगाए बैठे हैं, पर मजाल है कि सरकार अपने आर्थिक क्षेत्र की अहमियत समझे…
पर्यटन में रेल-एयर नेटवर्क अडंगा
हिमाचली पर्यटन अरबों रुपए का है। पहाड़ी प्रदेश में सरकारी व निजी क्षेत्र में 2300 के करीब होटल पंजीकृत हो चुके हैं। इनमें स्तरीय होटल भी काफी संख्या में हैं। जरूरत है तो मात्र एयर व रेलवे कनेक्टिविटी की। सत्ता में रही प्रदेश सरकारों ने इन दिक्कतों के सुधार के लिए हरसंभव प्रयास किए, मगर बात नहीं बन पाई। हर बार केंद्र का रवैया हिमाचली हितों की अनदेखी करता रहा। केंद्र का सौतेला रवैया हिमाचल को पूर्वोत्तर राज्यों की तर्ज पर कोई ऐसा पैकेज भी नहीं दे पाया, जिसके बूते हेलिटैक्सी सेवा परवान चढ़ पाती। दरअसल, पर्यटन सीजन के दौरान तो हिमाचल में एयर सर्विसेज संचालित करने वाले आपरेटरों को सरलता रहती है, मगर बगैर सीजन के आक्यूपेेंसी की भी दिक्कतें पेश आती हैं। दूसरे हिमाचल में बड़े हवाई अड्डे नहीं बन सके हैं। गगल, भुंतर और जुब्बड़हट्टी हवाई अड्डे छोटे स्तर के हैं। इनके विस्तार की कई बार फाइलें घूमीं, मगर गंभीरता कभी भी नहीं दिखी। यहां तक कि मंडी, ऊना, कांगड़ा और सोलन में नए हवाई अड्डे तैयार करने की भी जद्दोजहद हुई, मगर सिरे कोई भी नहीं चढ़ पाया। हेलिटैक्सी का भी यही हश्र हुआ। कंपनियां तो पांच आईं, मगर खर्चीली सेवा के लिए न तो पर्यटक न ही स्थानीय लोग तैयार हुए। आर्थिक सहायता के लिए प्रोजेक्ट केंद्र को भेजा गया, ताकि पूर्वोत्तर राज्यों की तर्ज पर हिमाचल को भी लाभ मिल सके मगर इसे नामंजूर कर दिया गया। प्रदेश ने वाइबिलिटी गैप फडिंग के तहत सहायता मांगी थी। बहरहाल, प्रदेश में यदि रेलवे व एयर कनेक्टिविटी के लिए केंद्र उदार रुख दिखाए तो हिमाचल का पर्यटन पूरे देश में अलग शक्ल ले सकता है।
10 लाख पर्यटन व्यवसायी
एक अनुमान के मुताबिक प्रदेश में दस लाख से भी ज्यादा लोग पर्यटन व्यवसाय से जुड़े हैं। इनमें होम स्टे, पर्यटन व्यवसायी जिनमें ट्रैवल एजेंट, वाहन आपरेटर, होटल मालिक, फास्ट फूड व्यवसायी, गाइड्स व ऐसे ही व्यवसायों पर आधारित अन्य लोग शामिल हैं।
बेजोड़ सुंदरता और शांति
प्राकृतिक सुंदरता व अमन शांति के लिहाज से हिमाचल देश में अव्वल है। इसे पर्यटकों का स्वर्ग कहा जाता है। हर साल डेढ़ से पौने दो करोड़ की पर्यटक आमद इसी वजह से हो रही है। जानकारों की राय में यदि एयर व रेलवे कनेक्टिविटी की सुविधा मिल जाए तो हिमाचल विश्व का दूसरा स्विट्जरलैंड साबित होगा।
टूरिज्म का सकल घरेलू उत्पाद में 9.75 फीसदी की दर से योगदान
हिमाचल में पर्यटन साल दर साल किस तरह विकसित हो रहा है, इसकी मिसाल यहीं से ली जा सकती है कि पर्यटन से हिमाचल को 9.75 फीसदी की दर से सकल घरेलू उत्पाद में योगदान मिल रहा है।
खराब सड़कों ने सताए पर्यटक
अत्यधिक बरसात व बर्फबारी के कारण सड़कों की हालत बदतर हो जाती है। सड़क विशेषज्ञ हमेशा से सलाह देते रहे हैं कि हिमाचल में सड़कों की दशा सुधारने के लिए नए मापदंड निर्धारित होने चाहिएं। इसके लिए मुद्दा केंद्र से भी उठाया जा सकता है। वरना पर्यटन सीजन के दौरान सड़कें व पेयजल दिक्कतें हिमाचल की भद्दी तस्वीर पेश कर सकती हैं।

छात्रों ने जाना, क्या हैं पांडुलिपियां आनी के महाविद्यालय हरिपुर में एक दिवसीय शिविर

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छात्रों ने जाना, क्या हैं पांडुलिपियां
सैकड़ों वर्ष पुरानी हस्त लिखित किताबों में छिपी है कई विषयों की जानकारी

आनी(कुल्लू)। आनी कॉलेज में हिम संस्कृति संस्था की ओर से एक दिवसीय पांडुलिपि शिविर का आयोजन किया गया । शिविर में आनी कॉलेज के छात्रों ने सैकड़ों वर्ष पुरानी हस्त लिखित किताबों के बारे जानकारी प्राप्त की। संस्था के उपाध्यक्ष छविंद्र शर्मा ने बताया कि राष्ट्रीय पांडुलिपि मिशन के तहत पूरे भारत में 50 लाख दुर्लभ पांडुलिपियां खोजी गई हैं। इनमें भारत के हर गांव, हर प्रदेश के इतिहास, देवी देवताओं, मेलों, त्योहारों और कर्म कांडों सहित महत्वपूर्ण विषयों की जानकारी लिखी गई है। उन्होंने कहा कि कई ऐसी पांडुलिपियां भी यहां हुआ करती थी, जिनमें रसायन विद्या जैसी अनमोल जानकारियां मौजूद थी, लेकिन युग परिवर्तन के साथ-साथ आज के युग में इन्हें पढ़ने वाले लोग नहीं रहे। उन्होंने कहा कि दो सौ साल पुरानी हस्तलिखित पुस्तकों को दिल्ली और शिमला भाषा एवं संस्कृति विभाग अकादमी द्वारा पुस्तकालय में स्थापित किया गया है। इन सभी दुर्लभ पांडुलिपियों की जानकारी हर स्कूल और कॉलेज में दी जा रही है। इसी कार्यक्रम के तहत वीरवार को आनी के महाविद्यालय हरिपुर में एक दिवसीय शिविर का ओयाजन किया गया। शिविर में कॉलेज में शिक्षा ग्रहण कर रहे छात्र छात्राओं को 200 साल पुरानी हस्तलिखित पांडुलिपियां दिखाई गई और उनके विषयों में जानकारी दी गई। पांडुलिपि सर्वेक्षक एचके शर्मा ने बताया कि आनी के 20 गांवों और निरमंड के 12 गांवों में सर्वाधिक पांडुलिपियां खोजी गई थी। इन्हें अकादमी पुस्तकालय में शोधकर्ता एवं पाठकों के लिए रखा गया है। आनी क्षेत्र की सबसे अधिक पांडुलिपियां सर्वेक्षक फौजीलाल शर्मा ने खोजी हैं, जिन्हें विभाग ने साल 2010 में प्रशस्ति पत्र और पुरस्कार देकर सम्मानित किया है। इसके अलावा स्वरूप चंद शर्मा, दीवान चंद शर्मा, कपूर चंद शर्मा, हरिकृष्ण शर्मा, चंद्रप्रकाश, उमा शंकर दीक्षित, चमन शर्मा आदि लोग हिम संस्कृति संस्था द्वारा पांडुलिपि संरक्षण के लिए सम्मानित किए जा चुके हैं। हिम संस्कृति संस्था ने स्कूल और कॉलेज में पढ़ने वाले सभी छात्रों को पांडुलिपि मिशन से जोड़ने का विशेष अभियान चलाया है। ताकि टांकरी, आदि लिपियों से नई पीढ़ी को अवगत करवाया जा सके। शिविर में राष्ट्रीय पांडुलिपि मिशन के प्रचारक दीवान राजा, हिम संस्कृति के सचिव यशपाल ठाकुर, कालेज के प्रवक्ता एलडी ठाकुर, रविंद्र कुमार, रवि उपस्थित थे।

Galu Mela

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Hurling Lambs A tradition in Galufair

chavider sharma 9418131366
Himachal This WeekHimachal This WeekHimachal Pradesh is a land of numerous gods and deities. As a result people could be seen celebrating in fairs organized in one or the other part of the state every day. But the Galu Mela organized in Galu village of Haargunain panchayat in Jogindernagar is a unique confluence of faith and tradition. Commenced with the congregation of local deities and sacrifice of a lamb, the history of this fair is centuries old and according to locals the tradition initiated by their forefathers is still practiced radiantly by the people of the area. Situated at the border of Haargunain and Ropa Padhar panchayats on Mandi – Pathankot national Highway, the three day long Galu fair is celebrated every year on the eighth pravisthe of Baisakh month. The much celebrated deity of Chauhar Valley Dev Pashakot inaugurated the three day long Galu fair.  Local deities, Dev Gehri, deity of Harabag in Haargunain panchayat, and Dev Pashaakot, deity of Chauhar valley congregates at Galu before the commencement of the fair. Gurs of both the deities worships the deities and thereafter Dev Gehri offers a lamb to Dev Pashakot as an honour, which in return presents shawl to Dev Gehri after accepting the honour (lamb). Thereafter people whose wishes are fulfilled hurls lambs over deities, which are later distributed amongst devlus and other people as prasad. Dev Gehri’s Pujari (Priest) Hari Singh Narr told that Narr caste is considered paramount among devtas in Chauhar valley. And whereas Gur of Devtas changes with time, the priests are selected from the same dynasty.  “I am testimony to this fair since the time of my father and forefather and during that time women from surrounding families used to bring delicacies to the fair from their respective homes and distribute it among people waiting for devtas to arrive,” told Hari Singh. “The hospitality traditions are still followed as were practiced in past and even strangers are welcomes enthusiastically in various houses of the area. Changes have no doubt come with the passage of time but age old traditions are still intact in the area,” added Hari Singh.

Charas Cases Registered in 2014

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Himachal Police Tightens Noose on Drug Peddlers

Hira Lal Thakur
Himachal Pradesh is famous for its natural beauty, simple people, lifestyle and safe environment. Every native of the state has its invaluable contribution to achieve this status and same can be said about the administrative machinery. However, sometimes people of the state do not appreciate some efforts. Same happened with the police department which generally gets less appreciation for its efforts. In spite of that cops are busy in performing their tough duty and welcome changes are visible, thanks to their determination. Regions of Kullu and Mandi districts are ill-famous for the production and utilization of deadly drug charas for a long time but the situation is changing continuously with the passage of time. All credit goes to Himachal Police which has ensured that drug peddling to various parts of the country and even to abroad through the boundaries of Kullu and Manali district is no longer a safe affair. Official figures reveal that as many as 83 cases of charas smuggling have been registered in the first quarter of 2014. These 83 cases have been registered in Mandi and Kullu district only, which are 40% of total registered 209 incidents of Charas smuggling throughout the state during the same time period. Police record shows that a total of 151.3 kilogram of charas has been seized across Himachal in the aforesaid period. As for as Mandi district is concerned, 59 cases of charas has been registered in first three months of ongoing year while 24 cases of charas smuggling have been registered by able team of Kullu police. Other cases have been registered in other parts of the state. This welcome change is not a result of overnight efforts but department has worked hard for a long time to draw out nearly a fool proof plan to put noose on charas mafia in Kullu and Mandi region. Spokesman of Kullu district police and DSP Sanjay Sharma revealed to Himachal This Week that department has developed a plan under which cops nab charas smugglers at Bajaura station of Kullu district. Others who manage to escape from Bajaura are being nabbed at Mandi. Notably, few parts of the state are also famous for charas production. That is why state government, administration, police department and majority of general public want to get rid from this infamous identity attached with the name of Himachal Pradesh.
Charas Cases Registered in 2014
District    Cases
Mandi    59
Kullu    24
Chamba    33
Shimla    27
CID    10
BBN    9
Bilaspur    8
Hamirpur    6
Kangra    8
Kinnaur    1
Sirmaur    15
Solan     7
Una    2
Total    209
 Social Welfare Schemes of Police Gathering Dust
Devender Verma
Other than providing security and maintaining law and order, Himachal Police also takes various initiatives for social cause. However it is another story that some of these pledges do not become fruitful in true manner. One of these commitments was to provide education to those children whom civilized people called street children. These poor pour homeless souls have to work hard for petty living and can’t afford to go to school. The state police department had decided to provide education to such children to empower them so that their lives become easy. The policy was formulated during the tenure when Ashwani Kumar was DGP of the state police. It was decided then that better care of such children should be taken and model schools should be opened at every police station to make them better citizen of the future. It was planned that help of Education Department and Labour Department will also be taken to bring these poor children to such schools. It was decided that hostel facility should also be provided to these children at Rampur, Mandi and Dharamshala. No doubt, it was a revolutionary thought but things did not materializ after Ashwani Kumar was transferred to the CBI. In the present scenario only Shimla Sadar Police Station is providing education according to the plan and no step has been taken in rest of the state. Experts believe that only police department is not culprit in this regard, but labour and education departments also did not move their good step forward.
10,000 Children Out of Education Facility
Sources said that despite literacy revolution in the state still 10,000 children are there who do not go to schools. They want to have education but compulsion of earning livelihood compel them to work in dhabas, tea shops and hotels where they wash dish etc. or work as truck cleaner or coolies. Keeping this situation in view a Norway based organization had approved a project for the betterment of street children of Himachal but it never realized in actual practice. It was the same project under which hostel facility was scheduled to be provided at Rampur, Mandi and Dharamshala, but all in vain. However Sadar Police Station of Shimla deserves all compliments as about 30 street children are being educated there who believe that their life will change soon.
 The Scheme
According to the scheme it was decided that all street children who wonder here and there will be brought to a model school on every police station level. It was proposed that education department will provide a teacher to every such school who will educate these children for their better future.

Establish Old Age Homes in Every District of Himachal

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Establish Old Age Homes in Every District of Himachal

Hari Miatter Bhagi
 Himachal has rich culture and traditions and had a strong social fabric in which elderly people were looked after properly in joint family system. However families are disintegrating under changing circumstances thus leading to a situation in which there is no one to look after elders. It necessitates the need to establish more old age homes in every district of the state. Such homes should be located at places that offer natural and healthy environment besides having facilities to provide homely conditions and entertainment. They should also be engaged in useful activities like holding of meetings so that they can also share their experiences and problems with others. There could be many professionals living in such old age homes whose expertise could be used for social service also. In today’s scenario, children are serving at faraway places and even abroad form their native places thus leaving their parents alone back home. There is no one to look after them and take care of their small requirements. Such elders can spend good time in old age homes and share their happiness and sorrows with other inmates. It is a harsh reality that younger generation will have ample money but no time to look after their old parents. Keeping all such circumstances in view there is increasing need to open old age homes equipped with all facilities. The government should take initiative in this direction as it would ensure their proper functioning because there have been reports of irregularities committed in old age hoe being run by non-government organisations and other bodies. Such a facility will rejuvenate elders to live peaceful and tension free life

family member of political leader

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Dynasty Politics in Himachal


Dynasty Politics in HimachalPolitical leaders often raise the issue ofvanshvaad (Dynasty politics) whenever a family member of an established political leader enters electoral politics. It gives an opportunity to their political opponent to raise the issue. It is also a fact that members of established political families make their way to the active politics easier than a common party worker who toil for years together to get a nod from the party high command to contest any election. Entry of family members of politicians in active politics also leads to resentment among rank and file of party as committed workers aspiring to contest elections feel cheated. In such circumstances, they either leave the party or contest as independents. The practice of dynasty politics is adopted by both the main political parties in Himachal as many of their former and present leaders have established their children in Himachal politics. However, there are exceptions also in which no family member of established politicians has entered or intends to enter active politics. General masses also feel that political legacy should not be the sole criteria for allocating ticket for contesting elections. In stead, commitment and potential of workers should also be considered while taking such decisions. They add.
People’s Take…
 Ankit Bardhan Kullu  Politics is a field in which any one can go but dynasty politics should not be practiced in this field
-Ankit Bardhan Kullu  
 Raj Thakur ChambaPolitical legacy should not be criteria for entry into active politics as it sends a wrong signal
-Raj Thakur Chamba
 Tej Prakash Chopra HamirpurIt is a bad tradition being practiced by leaders as dynasty  politics causes resentment among party workers
-Tej Prakash Chopra Hamirpur
 Dr. C.S. Chauhan UnaDynasty politics weakens the democracy and it is like handing over political legacy on the pattern of principalities
-Dr. C.S. Chauhan Una
 Pankaj Sharma MandiDynasty  should not be considered as a merit as it deprives party workers to enter electoral politics
-Pankaj Sharma Mandi
 Sanjeev Sharma NahanPolitical parties should discourage dynasty politics and those willing to serve masses should be preferred
-Sanjeev Sharma Nahan
 Political Legacy in Himachal
Shimla
LeaderPositionLegacyRelationPosition
Virbhara SinghCM, FormerPratibha SinghWife2 time MP
(INC)Union ministerVikrmadityaSonYouth Congress
president
Ram Lal Thakur Former CMRohit ThakurGrandsonJubbal Kotkhai
(INC)MLA
Hamirpur
LeaderPositionLegacyRelationPosition
PK Dhumal(BJP)Former CM, MPAnurag ThakurSon2 time MP
Jagdev Chand(BJP)RemainedNarender ThakurSonContested
ministerassembly, LS
elections
Urmil ThakurDaughter2 time former
-in-lawBJP MLA
Ramesh Verma(INC)Remained MLAAnita VermaWifeFormer MLA
Rajinder Rana Former MLAAnita RanaWifeContesting
(Independentassembly
/ INC)election
Sirmaur
LeaderPositionLegacyRelationPosition
Dr. YS Parmar(INC)First CMKush ParmarSonRemained MLA five times
Guman Singh(INC)6 timeHarshvardhanSonRemained MLA
former MLAthrice
Dr. Prem Singh(INC)Former MLAVinay KumarSonMLA now
Una
LeaderPositionLegacyRelationPosition
Omkar Sharma(INC)ContestedMukeshSon3 time MLA,
assemblyAgnihotrinow minister
election
VS Joshi (INC)Former MLAVijay JoshiSon4 time former
MLA
KL Joshi (BJP)BrotherRemained MLA
Kullu/ Lahaul & Spiti
LeaderPositionLegacyRelationPosition
Kunj Lal Thakur (BJP)Former ministerGobind ThakurSonNow MLA
Raja Mahender SinghContestedMaheshwarSonFormer minister,
assemblySinghnow MLA
election(BJP/HLP)
Karan SinghSonNow MLA
(BJP/INC)
Lal Chand Prarthi (INC)Former ministerKamla PrarthiDaughterFormer Pradesh Congress Mahila President
Lata Thakur(INC)Former MLARavi ThakurSonNow MLA
RK Gaur (INC)Former ministerBhuvneshwarSonContested
Gaurassembly
election, Manali
BCC president
Karan Singh(INC)Now MLAAditya Vikram  SonMandi PC YC
Singhpresident
Mandi 
LeaderPositionLegacyRelationPosition
Sukh RamFormer unionAnil SharmaSonNow
(INC/HVC)ministerminister
Mahender ThakurFormerRajat ThakurSonBJYM district
(Now BJP)minister,president
now MLA
Parkash Chaudhary Now ministerRimpleSonNSUI state
(HVC/ INC)Chaudharypresident
Kaul Singh (INC)Now ministerChampa ThakurDaughterZP member
Kangra 
LeaderPositionLegacyRelationPosition
KBL Butail (INC)INC MLA, HPCCBBL ButailBrother5 times MLA,
President(Brother)Now VS Speaker
Sant Ram (INC)FormerSudhir SharmaSon3 times MLA,
ministerNow minister
MR Goma (INC)Former MLAYadvindra GomaSonNow MLA
Chander Kumar FormerNeeraj BhartiSonNow MLA/CPS
(INC)minister, MP
Rajan SushantFormerSudha SushantWifeContested
(BJP/AAP)minister,assembly
MPelection
Sat Mahajan(INC)FormerAjay MahajanSonNow MLA
minister/MP
Chandresh KumariFormerAishwarya KatochSonContested
(INC)minister/MPassembly
election
GS Bali (INC)Now MinisterRaghuvir BaliSonHPCC Secretary
Solan
LeaderPositionLegacyRelationPosition
Harinarayan SainiFormer ministerGuman KaurWifeContested
(BJP)assembly
election
KD SultanpuriFormer MPVinod SultanpuriSonContested
(INC)assembly
election
Lajja Ram Former MLARam Chaudhary SonNow MLA
(INC)
Vijeynder SinghFormer MLASukriti SinghWifeContested
(INC)assembly
election
Chamba
LeaderPositionLegacyRelationPosition
Vidya Dhar(INC)Former MLASurinder BhardwajSonNow MLA
Desh RajMahajan Former MLAHarsh MahajanSonRemained MLA
(INC)thrice
Thakur Singh Now ministerAmit BharmouriSonZP Chairman
Bharmouri
(INC

देवभूमि हिमाचल की बेटी वाद्य संगीत प्रवक्ता रेखा शर्मा

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स्‍वरों की सुरमयी रेखा

मंजिल पाने को सफर बहुत खूबसूरत है, मंजिल मिले इसकी इच्छा नहीं, क्योंकि अगर मंजिल मिल गई तो फिर पाने को क्या रहा…
UTSAVदेवभूमि हिमाचल की बेटी वाद्य संगीत प्रवक्ता रेखा शर्मा ने प्रदेश के चट्टानी पहाड़ों पर सुर-संगीत की धारा बहाई हैं। पिछले 16 वर्षों से हिमाचल की वादियों की सखा रहीं रेखा शर्मा ने संगीत को लेकर हिमाचल में एक नई जागरूकता पैदा की है। इतना ही नहीं रेखा शर्मा व उनके पति सुरेश शर्मा ने प्रदेश के हर बच्चे के हाथ में शिक्षा बोर्ड से मान्यता प्राप्त संगीत विषय की पहली पुस्तक सुर- संगीत थमाई। कन्या महाविद्यालय धर्मशाला की वाद्य संगीत प्रवक्ता रेखा शर्मा का जन्म पांच नवंबर 1967 को  बंशीधर शर्मा व माता निर्मला शर्मा गांव कल्याणा घुमारवीं बिलासपुर में हुआ। उनके पिता प्रदेश के पहले विधि सचिव थे। पिता की अचानक मृत्यु हो जाने से उनके परिवार के सामने मुसीबतों का पहाड़ खड़ा हो गया। रेखा शर्मा ने नौवीं कक्षा में अपनी बड़ी बहन से संगीत की प्रेरणा लेकर इसमें पढ़ाई करना शुरू किया। उन्होंने कठोर परिश्रम व दृढ़ निश्चय से अपने गुरु संगीत प्रवक्ता मंजुला शर्मा, नंद लाल गर्ग, डा. इंद्राणी चक्रवर्ती व पंडित भीमसेन से सुर-संगीत की शिक्षा ग्रहण की। रेखा ने संगीत विषय में एमफिल करके वर्ष 1998 से गर्ल्ज स्कूल धर्मशाला में बतौर संगीत प्रवक्ता के रूप कार्य करना शुरू किया। उनके स्कूल में पंहुचने के बाद लगातार 16 वर्षों से गर्ल्ज स्कूल संगीत विषय की सभी प्रतियोगिताओं में पहला स्थान प्राप्त कर रहा है। अपने दिन और रात के रियाज के बाद उन्होंने छात्राओं के हाथ पकड़कर उन्हें सुर-संगीत का जौहरी बना दिया है। यहां तक की स्लम एरिया में रहने वाली छात्राएं भी संगीत की धुनों में सबको मंत्रमुगध होने पर मजबूर कर देती हैं। उनकी मेहनत के रंग का अंदाजा उनके सितार और तबलों में खून के रंगों को देखकर ही लगाया जा सकता है। प्रदेश में संगीत विषय की किताब न होने के मलाल से रेखा व उनके पति संगीत प्राध्यापक बीएड कालेज धर्मशाला सुरेश शर्मा ने अपनी पांच सालों की तपस्या के बाद संगीत विषय की जमा एक व  जमा दो की पहली किताब हिमाचल के छात्रों के हाथ में थमाई है। देवभूमि के नंबर वन समाचार पत्र ‘दिव्य हिमाचल’ ने उनकी प्रतिभा को पहचानते हुए पांच सितंबर 2003 को कांगड़ा के सर्वश्रेष्ठ 10 अध्यापकों में स्थान दिया। जिला स्कूली खेलकूद परिषद से अवार्ड उन्हें दिया गया। प्रदेश स्कूल शिक्षा बोर्ड द्वारा शिक्षा व संस्कृति के क्षेत्र में योगदान के लिए सम्मानित, 2005 में रोटरी क्लब धर्मशाला ने बेस्ट टीचर अवार्ड सम्मान साथ ही ‘दिव्य हिमाचल’ के हिमाचल दिस वीक द्वारा ‘टीचर ऑफ दि ईयर’ के रनरअप अवार्ड का सम्मान प्रदान किया गया है। शर्मा से शिक्षा प्राप्त करने के बाद छात्राएं संगीत के विषय में देश भर में नाम कमा रही हैं।
छोटी सी मुलाकात
utsavसंगीत के क्षेत्र में नए बच्चों को तराशने का  जज्बा कहां से आया?
सरस्वती मां के आशीवार्द से बच्चों को हर दो वर्ष के बाद तैयार करने की हिम्मत मिलती है। छात्राओं की दिन-रात की मेहनत से यह संभव हो पाता है। किसी चीज में अपना सौ प्रतिशत देने से हर लक्ष्य संभव हो जाता है।
महिला होने के नाते क्या परेशानी होती है?
बच्चों को संगीत सिखाने में दिन-रात मेहनत करने पड़ती है। घर में अपने बच्चों और पति को छोड़ कर प्रतियोगिताओं के लिए तैयार करना और उन्हें लेकर जाना मुश्किल जरूर है, लेकिन सरल कुछ भी नहीं होता उसे सरल बनाना पड़ता है।
अपनी सफलता का श्रेय किसे देना चाहेंगी?
अपने माता-पिता, पति सुरेश शर्मा और अपने साथी अध्यापकों, संस्थान सहित 16 वर्ष की तपस्या में हर छात्रा को।
प्रदेश में संगीत सिखाने को लेकर भविष्य का लक्ष्य?
संगीत की पहली किताब की पब्लिशर्ज से रॉयल्टी के बदले में हिमाचल के हर बच्चे के हाथ में पुस्तक पंहुचाने की रॉयल्टी रखी गई है, ताकि हर बच्चा उसकी अंगुली थाम कर सुर-संगीत में खुद को तराश सके।
प्रदेश की महिलाओं को क्या  संदेश?
हिमाचली महिलाएं किसी से कम नहीं हैं। जरूरत है अपनी क्षमता को पहचानने की और फिर लगातार आगे बढ़ने के लिए प्रयास करते रहें।
- नरेन कुमार, धर्मशाला

Friday, 25 April 2014

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Wednesday, 23 April 2014

शमशरी महादेव में सात साल बाद महायज्ञ

ANNITHISWEEK.IN   EPAPER

शमशरी महादेव में सात साल बाद महायज्ञ

आनी — आउटर सिराज क्षेत्र के आराध्य देवता शमशरी महादेव मंदिर में सात साल बाद महायज्ञ एवं शिवमहापुराण कथा के आयोजन को अंतिम रूप दे दिया गया। बुधवार को आयोजन समिति की विशेष  बैठक का आयोजन किया गया। महायज्ञ प्रचार समिति के प्रभारी शिवराज शर्मा ने बताया कि देवता शमशरी महादेव मंदिर शमशर में महायज्ञ एवं शिवमहापुराण कथा का आयोजन 25 मई से पांच जून तक होगा। महायज्ञ का शुभारंभ जलयात्रा से 25 मई सोमवार को प्रातः 11 बजे से किया जाएगा। जलयात्रा में 1100 सुहागिन महिलाएं देवता रथ एवं हर गांव, हर क्षेत्र के देवलुओं के साथ शमशर से आनी मुख्यालय तक नंगे पांव जलयात्रा पूरी करेंगी। 26 मई मंगलवार से हर रोज प्रातः सात से दस बजे तक संस्कृत मूलपाठ होंगे। हर शाम भजन संध्या में आउटर सिराज क्षेत्र के हर पंचायत व गांव के कलाकार शामिल होंगे। शिवमहापुराण कथा हर दिन 12 बजे से सायं तीन बजे तक सुनाई जाएगी। भारत के प्रसिद्ध कथा वाचक बृंदावन धाम मथुरा से आचार्य पंडित मनीष शंकर शास्री चतुर्वेद प्रवचन करेंगे। महायज्ञ एवं शिवमहापुरण कथा का समापन पांच जून गुरुवार को दोपहर 12 बजे पूर्णाहुति के साथ होगा। मंदिर कमेटी ने 11 दिनों तक हर रोज दोपहर तीन बजे भंडारे का आयोजन की व्यवस्था बनाई है। बैठक में एसडीएम नीरज गुप्ता, डीएसपी सुनील नेगी, लोक निर्माण विभाग के अधिकारी एमडी अकेला, सेसराम आजाद, कारदार संतोष ठाकुर, कमेटी प्रधान कर्म चंद ठाकुर, सचिव मस्त राम ठाकुर, प्रबंधक श्यामगिर, मूलचंद, महायज्ञ प्रचार समिति के सह प्रभारी दविंद्र शर्मा, चमन शर्मा, प्रधान आत्मा राम ठाकुर, तुलाराम, दीवान चंद शर्मा, तिलक राज, मोती राम, लगन दास, यशपाल ठाकुर, जीवन प्रकाश आदि सदस्य उपस्थित थे।

मथुरा के प्रसिद कथा वाचक पण्डित मनीष शंकर








पण्डित  मनीष शंकर शास्त्री  
anni thisweek . in
जय शमशरी महादेव
 आनी के महादेव मन्दिर शमशर में 7 साल बाद महायज्ञ और   शिव महापुराण कथा  आयोजन 25 मई  से 5 जून  2014  
कार्यक्रम
25 मई प्रातः 11 बजे जलयात्रा शमशर से आनी बाजार  तक    होगी
26 मई को शिवमहापुराण कथा प्रवचन हर रोज दोपहर 12 बजे से  3 बजे तक होगी
साडेतीन बजे आरती
हरदिन शाम 4 बजे भण्डारा भी दिया जायेगा
हर रात्रि बृंदाबन मथुरा के भजन गायक शिव कृष्ण राधा के गीत संगीत से आनी को भगतिमय करेंगे
मथुरा के प्रसिद कथा वाचक पण्डित मनीष शंकर शास्त्री अपनी मधुरवाणी से 11 दिनों तक शिव की महिमा का बर्णन करेंगे
आप सभी सादर आमत्रित है


सरस्वती विद्या मन्दिर स्कूल में पाण्डुलिपि की जानकारी

आनी 
की सरस्वती  विद्या मन्दिर स्कूल में  पाण्डुलिपि की जानकारी देते हुए हिमसंस्कृति के सर्वेक्ष्क 

Saturday, 19 April 2014

आनी में छात्रों को पांडुलिपि पर टिप्स

annithisweek.in  epaper

आनी में छात्रों को पांडुलिपि पर टिप्स

आनी — आनी मुख्यालय में स्थित हिमालयन माडल स्कूल में एकदिवसीय राष्ट्रीय पांडुलिपि मिशन के अंतर्गत स्कूली छात्र-छात्राओं को 200 साल पुरानी हस्तलिखित पुस्तकों की जानकारी दी गई। स्कूल में पांडुलिपियों की प्रदर्शनी लगाई गई। हिम संस्कृति के प्रबंधक दीवान राजा ने बताया कि हिमाचल प्रदेश के हर जिला में पांडुलिपियां सुरक्षित रखी गई हैं। आनी विधानसभा क्षेत्र में 20 हजार पांडुलिपियां खोजी गई हैं, जिन पर अध्ययन जारी है।  इसका अनुवाद प्रदेश के टांकरी विद्वान खूबराम खुशदिल द्वारा किया गया है। शनिवार को एकदिवसीय शिविर में स्कूली छात्रों को पांडुलिपियों की जानकारी दी गई।



Friday, 18 April 2014

भीमाकाली मंदिर मंडी

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भीमाकाली मंदिर मंडी

माता भीमाकाली को रामपुर बुशहर के राजाओं की आराध्या देवी माना जाता है और भीमाकाली देवी का प्रसिद्ध मंदिर और मुख्य मंदिर सराहन में ही माना जाता है …
भीमाकाली मंदिर मंडी हिमाचल प्रदेश के बारे में कहा जाता है कि इस जगह भगवान श्री कृष्ण ने बानासुर को मार डाला था। कृष्ण के बाद  उनके यादव अनुयायियों ने इस मंदिर को बनवाया था। माता भीमाकाली को रामपुर बुशहर के राजाओं की आराध्या देवी माना जाता है और भीमाकाली देवी का प्रसिद्ध मंदिर और मुख्य मंदिर सराहन में ही माना जाता है। इस मंदिर की महत्ता भी कम नही है और यहां हर साल काफी बडे़ स्तर पर काली देवी की पूजा की जाती है। मंदिर परिसर काफी सुंदर बनाया गया है और एक लंबे से रैंपस से चढ़कर हम दूसरी मंजिल और फिर तीसरी मंजिल पर पहुंचते हैं। सबसे ऊपर माता का मंदिर है। माता की मूर्ति का फोटो लेने की आज्ञा पंडित जी ने दे दी । वैसे यह मंदिर केवल भक्ति का ही केंद्र नही है, अपितु  यहां पर अच्छी खासी पिकनिक की जा सकती है। इसके लिए मंदिर परिसर में सुंदर फूलो के साथ- साथ झूले वगैरह भी लगे हुए हैं। अगर आप मंडी से होकर गुजर रहे हैं तो आपको 30 मिनट से ज्यादा नही लगेंगे इस सुंदर जगह को देखने में। वह भी मेन नेशनल हाई-वे से सिर्फ एक पुल पार करके मंदिर तक आने में। मंदिर व्यास नदी के किनारे बसा है और मंदिर संस्थान ने नदी के किनारे भी काफी सुंदरता से सजाया है नदी के किनारों को भी । वहां पर शेरों की और वन को जाते पांडवों की प्रतिमाएं लगाई गई हैं ।

आठ से सजेगा आनी मेला

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आठ से सजेगा आनी मेला

आनी  —  जिला स्तरीय आनी मेले का आयेजन आठ मई से 11 मई तक होगा। जिलास्तरीय आनी मेला पिछले 150 सालों से मनाया जा रहा हैं। जो कि देवता शमशरी महादेव के सानिध्य में मनाया जाता है। मेला कमेटी के अध्यक्ष विनोद चंदेल ने बताया कि मेले में देवता शमशरी महादेव, पनीनाग,  देहुरीनाग, विगुलीनाग, कुलक्षेत्र महादेव, कोट भझारी, व्यास ऋषि सहित देवी देवताओं को निमंत्रण भेजा गया है,जबकि मेलें का शुभारंभ एसडीएम आनी नीरज गुप्ता और मेले का समापन डीसी कुल्लू राकेश कंवर करेंगे। मेले को प्रचान संस्कृति के आधार पर आयोजन के लिए पहली बार शिवरात्रि गीत ंसंगीत,फाग कृष्णगीत, श्रीरामलीला के विशेष कलाकार हर सांस्कृतिक संध्या में हिमाचली पहाडी परंपरा के अुनसार कार्यक्रम प्रस्तुत करेंगे। इसके अलावा स्थानीय स्कूली बच्चों और महिलाओं के लिए मेहदीं, गीत ंसंगीत, हास्यनाटक, अतांक्षरी, कुर्सी दौड आदि प्रतियोगिताएं आयेजित की जाएगीं। जिलास्तरीय मेले में स्थानीय कलाकारों एवं प्रदेश के हर जिला के कलकारों को भी आमंत्रित किया गया है। स्थानीय कलाकार जो कार्यक्रम देना चाहे वे सांस्कृतिक कार्यक्रम प्रभारी एमडी अकेला से फोन नंबर पर संपर्क कर सकते है। शुक्रवार को समीक्षा बैठक की अध्यक्षता करते हुए एसडीएम ने कहा कि जिलास्तरीय आनी मेलें को पारंपारिक ढंग से मनाया जाएगा,जिसके लिए प्रबंधन कमेटीयों गठित कर ली गई है। जिलास्तरीय मेले में पहली बार देवताओं की भव्य जलेब शोभायात्रा नौ मई के दिन होगी, जिसमें सभी कारदार एवं देवलु शामिल होंगे।

Ban on Construction in Shimla

ANNITHISWEEK.IN  EPAPER
PRESS CLUB ANNI
SHIVRAJ SHARMA        9418081247
CHAVINDER SHARMA     9418131366
JITENDER GUPTA         9418036745
HARIKRISHAN SHARMA   9418700604
CHAMAN SHARMA        9816005456
YASHPAL THAKUR        8679600900
DEVINDER THAKUR       9459008900
 Ban on Construction in Shimla

“Once
 known as the Queen of Hills, Shimla is fast becoming an urban nightmare, because of haphazard construction,” states a report of the Environment Impact Assessment (EIA). The report has recommended complete ban on construction in the entire Shimla planning area to save the hill town from further degradation and denudation. A recent study of World Health Organization (WHO) concluded that there is sufficient evidence that outdoor pollution causes lung cancer (Group I) and air pollution is a leading environmental cause of cancer deaths across the globe.  It has identified 17 green belts which were notified on December 7, 2000 spread over an area of 414 hectares in Shimla town. The areas include Sanjauli, Dhali, New Shimla, Khalini, Kaithu, Chakkar and Ghora Chowki. Population pressure has caused rapid urbanization of the town that aggravates the environmental pressure on the entire eco-system of the hill region in Shimla, states the report. The matter was taken up by the Department of Environment in December last year. The study was conducted for the first time at the behest of the state Cabinet decision and assigned to the Society for Environment Protection and Sustainable Development of hill State. The report comes as a shock to those who have owned plots in these areas and the real estate developers who expected that the ban on construction would be lifted or relaxed. On the basis of this report, the state government will take a final decision whether to lift the ban or impose complete ban on construction activities in these belts. The state government may also allow partial relaxation in construction activities. Since long the environmentalists have been opposing construction activities in Shimla and its surroundings but there was also a demand from those who have owned plots in these areas and pressuring the government to allow them to construct houses.  Notably, a satellite imaging done in 2002 has revealed some startling facts. An examination of the 2002 satellite imagery of a majority of the localities in the town with the present situation in 2013 made some startling revelations. The report further mentions, “The spurt in construction has gobbled up vast stretches of lush green belts in and around the capital town and now, the concrete jungle is spreading its reach beyond peripheral areas.” The report highlights degradation of green belts by comparing 17 green belts with the rest of Shimla town. It has been noticed that the development in these 17 belts has been controlled because of the complete ban on construction in these areas. However, there is a drastic change in land use outside these green belts. A large number of structures have come up in these areas over the past 10 years. The EIA report has also recommended that eco-sensitive zones within the Shimla Planning Area be developed. It has been recommended that these should be free from human habitat and vehicular traffic along with creating walking zones. Another important recommendation is to enhance tree and vegetation cover for maintaining air quality in the area. Another recommendation is to undertake plantation on all open lands and plots, both government as well as private. It has also been suggested that private lands be taken over by a competent authority, rain-water harvesting structures be made mandatory and ensure that these are functional. The EIA has also kept in mind the seismic and hazard risk to the town in case of earthquake. It has also analysed and tested soil strength and air, water quality of Shimla and its surrounding area
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Himachal is famous

 annithisweek.in  Shivraj sharma  Chavinder sharma Chaman sharma
Himachal is famous not only for its beautiful landscapes and snow laden mountains, but also for its culture, paintings and jewellery. But sadly the modernization has taken a big toll on its culture and traditions. No doubt passion for jewellery is legendary as bride’s trousseau is considered incomplete without ornaments. But with the passage of time much has changed. Over the past few years changes have taken place in socio-economic cultural life. A shift in traditional values has resulted in their moving away from their centuries old life style and old customs of loading oneself with heavy silver jewellery. It is now replaced with light and designed gold jewellery. There was a time when women of Himachal adorn heavy necklaces weighing 500 gram to I kg, called Chandrahaar, made of silver. These necklaces were very popular in Sanor area of Mandi, Pabbar and Kurpin valley, in Bharmour and Chwara valley in Shimla some 60 to 70 years ago. These heavy ornaments made of 90% silver were also adorned by the women of Gujjar community in Kangra and Chamba districts. These extinct traditional necklaces are still available with some of the goldsmiths in Bilaspur, Mandi, Kullu and Chamba districts. Married women from Kinnaur district used to wear silver jewellery as heavy as 2 kg. However in past 50 years the weight of these ornaments has decreased considerably but design is still intact. Now the gold ornament named ‘trimani’ glorifies the beauty of every Kinnauri women. In Bilaspur, ornaments weighing 500 gram were prevalent 60 years ago. Women also used to wear Queen Victoria necklace, a bunch of long silver chains linked by engraved or enamelled silver plaques, in Bilaspur. These necklaces can still be purchased for about Rs. 80,000 in Bilaspur town. Women from affluent families of Baghal area and Bilaspur used to wear heavy chaks, an ornament used on the hair plait on the back of the head, made of silver and nose rings (locally called naths) weighing 10 tolas embedded with precious motifs about 60 years ago. Heavy necklaces with as much as containing 20 laces were popular in Kinnaur. Out of 20, four laces were of Red coral gem (locally called moonga) and in rest of laces engraved or enamelled silver plaques (called doroli) were linked. These ornaments are now considered antique and hence are pricey. Kinnauri women also used to wear lion faced bangles which weighed up to 100 tolas (itola = 10 gram). However smaller version of these (weighing 50 tolas) were also available in the market some years ago.  Women of the Gujjar community in Chamba adorn ornament named ‘Sihri’, a necklace with silver coins and precious gems integrated in it. Apart from this they too wear silver ‘taabiz’ and bangles weighing 20 tolas. Women of Mandi and Kullu area wears a necklace named ‘kandi ghara’. It contains 15 to 20 silver coins weighing about 20 tolas and in between these silver coins motifs are embedded. In Karsog area, Queen Victoria or George V necklace locally called ‘dhata’ or ‘kandi’ were popular. It weighs about 250 grams. Women of Chopal wear a silver ornament named ‘junti’. But it has also gone extinct now. Women of Jubbal and Rohru used to wear gold necklace named ‘galsiri’ weighing about 5 to 30 tolas. Women from Solan adorn ‘varaagar’ that too has gone extinct. Blue sapphire (Neelam) and motifs were embedded in it. Gems embedded ‘chandrahaar’ once popular in Solan too has gone extinct. Necklace called ‘Solan Tandira’ (weighing 20 tolas) with intricate carvings too have gone extinct. Similarly many other traditional ornaments like ‘chandraseni’ necklace of Hamirpur, ‘naulakha har’, ‘kamarband’ etc. have lost their existence and have become history now.