Tuesday, 15 April 2014

टांकरी बचाने को उठाने होंगे कदम

annithisweek.in

टांकरी बचाने को उठाने होंगे कदम

—  सांस्कृतिक धरोहरों विशेषकर टांकरी लिपि को बचाने के लिए कदम उठाने होंगे। यह सुझाव अंतरराष्ट्रीय रौरिक आर्ट गैलरी नग्गर में आयोजित एकदिवसीय कार्यशाला के अवसर पर टांकरी विद्वानों की ओर से आया। आर्ट गैलरी प्रबंधन की ओर से आयोजित एकदिवसीय कार्यशाला में प्रसिद्ध टांकरी विद्वान खूबराम खुशदिल मुख्यातिथि के रूप में उपस्थित हुए। इस मौके पर एक प्रदर्शनी भी लगाई गई, जिसमें टांकरी में लिखी गई कई ऐतिहासिक बातें उजागर हुई हैं। खूबराम खुशदिल ने स्वयं इन टांकरी में लिखे दस्तावेजों को संजोया है, जिन्हें आर्ट गैलरी में प्रदर्शित किया गया। इसके बाद एक सामूहिक चर्चा भी की गई, जिसमें विशेष रूप से बुद्धिस्ट अध्ययन के विद्वान छेरिंग दोरजे भी उपस्थित रहे। साथ ही रौरिक मेमोरियल ट्रस्ट के भारतीय क्यूरेटर रमेश चंद्र व रशियन क्यूरेटर लरिसा सुरगीना मौजूद   रहीं। खूबराम खुशदिन ने बताया कि टांकरी लिपि 16वीं शताब्दी की है। हिंदू धर्म के महाभारत, रामचरितमानस व रामायण सहित गुरुग्रंथ साहिब आदि को टांकरी में ही लिखा गया था, जो आज भी उनके पास मौजूद हैं। उनका कहना है कि वह जल्द ही इन ग्रंथों का हिंदी में अनुवाद करके इनमें छिपे रहस्यों को उजागर करेंगे। उन्होंने कहा कि आज के समय में टांकरी की सुरक्षा करने की जरूरत है, ताकि आने वाली पीढ़ी तक भी यह लिपि पहुंच सके। इस अवसर पर भारतीय क्यूरेटर रमेश चंद्रा ने जानकारी देते हुए बताया कि पांडुलिपियों का वैज्ञानिक संरक्षण होना बहुत जरूरी है। उन्होंने बताया कि जून माह में टांकरी लिपि के देश भर के विद्वानों को यहां बुलाया जाएगा, जिससे टांकरी की और जानकारियां लोगों को प्राप्त हो सकें।

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