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स्वरों की सुरमयी रेखा
मंजिल पाने को सफर बहुत खूबसूरत है, मंजिल मिले इसकी इच्छा नहीं, क्योंकि अगर मंजिल मिल गई तो फिर पाने को क्या रहा…
देवभूमि हिमाचल की बेटी वाद्य संगीत प्रवक्ता रेखा शर्मा ने प्रदेश के चट्टानी पहाड़ों पर सुर-संगीत की धारा बहाई हैं। पिछले 16 वर्षों से हिमाचल की वादियों की सखा रहीं रेखा शर्मा ने संगीत को लेकर हिमाचल में एक नई जागरूकता पैदा की है। इतना ही नहीं रेखा शर्मा व उनके पति सुरेश शर्मा ने प्रदेश के हर बच्चे के हाथ में शिक्षा बोर्ड से मान्यता प्राप्त संगीत विषय की पहली पुस्तक सुर- संगीत थमाई। कन्या महाविद्यालय धर्मशाला की वाद्य संगीत प्रवक्ता रेखा शर्मा का जन्म पांच नवंबर 1967 को बंशीधर शर्मा व माता निर्मला शर्मा गांव कल्याणा घुमारवीं बिलासपुर में हुआ। उनके पिता प्रदेश के पहले विधि सचिव थे। पिता की अचानक मृत्यु हो जाने से उनके परिवार के सामने मुसीबतों का पहाड़ खड़ा हो गया। रेखा शर्मा ने नौवीं कक्षा में अपनी बड़ी बहन से संगीत की प्रेरणा लेकर इसमें पढ़ाई करना शुरू किया। उन्होंने कठोर परिश्रम व दृढ़ निश्चय से अपने गुरु संगीत प्रवक्ता मंजुला शर्मा, नंद लाल गर्ग, डा. इंद्राणी चक्रवर्ती व पंडित भीमसेन से सुर-संगीत की शिक्षा ग्रहण की। रेखा ने संगीत विषय में एमफिल करके वर्ष 1998 से गर्ल्ज स्कूल धर्मशाला में बतौर संगीत प्रवक्ता के रूप कार्य करना शुरू किया। उनके स्कूल में पंहुचने के बाद लगातार 16 वर्षों से गर्ल्ज स्कूल संगीत विषय की सभी प्रतियोगिताओं में पहला स्थान प्राप्त कर रहा है। अपने दिन और रात के रियाज के बाद उन्होंने छात्राओं के हाथ पकड़कर उन्हें सुर-संगीत का जौहरी बना दिया है। यहां तक की स्लम एरिया में रहने वाली छात्राएं भी संगीत की धुनों में सबको मंत्रमुगध होने पर मजबूर कर देती हैं। उनकी मेहनत के रंग का अंदाजा उनके सितार और तबलों में खून के रंगों को देखकर ही लगाया जा सकता है। प्रदेश में संगीत विषय की किताब न होने के मलाल से रेखा व उनके पति संगीत प्राध्यापक बीएड कालेज धर्मशाला सुरेश शर्मा ने अपनी पांच सालों की तपस्या के बाद संगीत विषय की जमा एक व जमा दो की पहली किताब हिमाचल के छात्रों के हाथ में थमाई है। देवभूमि के नंबर वन समाचार पत्र ‘दिव्य हिमाचल’ ने उनकी प्रतिभा को पहचानते हुए पांच सितंबर 2003 को कांगड़ा के सर्वश्रेष्ठ 10 अध्यापकों में स्थान दिया। जिला स्कूली खेलकूद परिषद से अवार्ड उन्हें दिया गया। प्रदेश स्कूल शिक्षा बोर्ड द्वारा शिक्षा व संस्कृति के क्षेत्र में योगदान के लिए सम्मानित, 2005 में रोटरी क्लब धर्मशाला ने बेस्ट टीचर अवार्ड सम्मान साथ ही ‘दिव्य हिमाचल’ के हिमाचल दिस वीक द्वारा ‘टीचर ऑफ दि ईयर’ के रनरअप अवार्ड का सम्मान प्रदान किया गया है। शर्मा से शिक्षा प्राप्त करने के बाद छात्राएं संगीत के विषय में देश भर में नाम कमा रही हैं।
छोटी सी मुलाकात
संगीत के क्षेत्र में नए बच्चों को तराशने का जज्बा कहां से आया?
सरस्वती मां के आशीवार्द से बच्चों को हर दो वर्ष के बाद तैयार करने की हिम्मत मिलती है। छात्राओं की दिन-रात की मेहनत से यह संभव हो पाता है। किसी चीज में अपना सौ प्रतिशत देने से हर लक्ष्य संभव हो जाता है।
महिला होने के नाते क्या परेशानी होती है?
बच्चों को संगीत सिखाने में दिन-रात मेहनत करने पड़ती है। घर में अपने बच्चों और पति को छोड़ कर प्रतियोगिताओं के लिए तैयार करना और उन्हें लेकर जाना मुश्किल जरूर है, लेकिन सरल कुछ भी नहीं होता उसे सरल बनाना पड़ता है।
अपनी सफलता का श्रेय किसे देना चाहेंगी?
अपने माता-पिता, पति सुरेश शर्मा और अपने साथी अध्यापकों, संस्थान सहित 16 वर्ष की तपस्या में हर छात्रा को।
प्रदेश में संगीत सिखाने को लेकर भविष्य का लक्ष्य?
संगीत की पहली किताब की पब्लिशर्ज से रॉयल्टी के बदले में हिमाचल के हर बच्चे के हाथ में पुस्तक पंहुचाने की रॉयल्टी रखी गई है, ताकि हर बच्चा उसकी अंगुली थाम कर सुर-संगीत में खुद को तराश सके।
प्रदेश की महिलाओं को क्या संदेश?
हिमाचली महिलाएं किसी से कम नहीं हैं। जरूरत है अपनी क्षमता को पहचानने की और फिर लगातार आगे बढ़ने के लिए प्रयास करते रहें।
- नरेन कुमार, धर्मशाला
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