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जिलास्तरीय आनी मेला 7 मई 2015 से 10 मई 2014
आनी मेले का इतिहास
हिमाचल प्रदेश के विभिन्न भागों में मनाए जाने वाले मेले और लोक उत्सव हमारी समृद्ध संस्कृति की पहचान हैं। ये मेले और उत्सव हमारी इस समृद्ध लोक संस्कृति को संजोये रखने में महत्वपूर्ण भूमिका अदा करते हैं। आनी का जिला स्तरीय मेला भी आउटर सिराज क्षेत्र का प्रमुख लोक उत्सव है, जो प्रतिवर्ष बैसाख के 25 प्रविष्टे से शुरू होता है। चार दिन तक चलने वाला यह लोकनृत्य उत्सव हमें आउटर सिराज की लोकसंस्कृति के संपूर्ण दर्शन कराता है।
आनी पूर्व समय से ही एक महत्वपूर्ण केंद्र रहा है जहां सांगरी रियासत के तत्कालीन राजा ने तथा उसके बाद उनके पुत्र राजा रघुवीर सिंह ने भी कई सालों तक शासन किया। आनी मेले से संबंधित एक महत्वपूर्ण कहानी जुड़ी हुई है। बुजुर्गों के अनुसार राजा हीरा सिंह के शासनकाल में भयंकर सूखा और अकाल पड़ा। सैकडो लोग गंभीर बीमारी की चपेट में आ गए। जनता में त्राहि-त्राहि मच गई। पीडि़त लोगों ने राजा हीरा सिंह के दरवार में गुहार लगाई। विद्वानों से विचार-विमर्श के बाद राजा को लगा कि उन्हें क्षेत्र के बडे देवता शमशरी महादेव की शरण में जाना चाहिए। तब राजा ने भूखे पेट व नंगे पांव चलकर शमशरी महादेव के मंदिर में हाजिरी भरी और आनी क्षेत्र की जनता के लिए गुहार लगाई।
राजा ने यह संकल्प भी लिया कि जब तक शमशरी महादेव उनकी फरियाद नहीं सुनेंगे वह अन्न जल ग्रहण नही करेंगे। आखिर राजा के इस प्रण से देवता प्रसन्न हो गए और क्षेत्र में भारी बारिश हुई। इसके साथ ही क्षेत्र में सूखा, अकाल और बीमारी समाप्त हो गई। पूरा इलाका अन्न-धन से परिपूर्ण हो गया। राजा ने प्रसन्न हो कर देवता शमशरी महादेव को अपने बेहड़े में स्थान दिया। उसी याद में 25 बैसाख को आनी मेले की शुरूआत की गई। तब से लेकर यह मेला हर साल धूमधाम से आयोजित किया जा रहा है।
जिलास्तरीय आनी मेला 7 मई 2015 से 10 मई 2014
आनी मेले का इतिहास
हिमाचल प्रदेश के विभिन्न भागों में मनाए जाने वाले मेले और लोक उत्सव हमारी समृद्ध संस्कृति की पहचान हैं। ये मेले और उत्सव हमारी इस समृद्ध लोक संस्कृति को संजोये रखने में महत्वपूर्ण भूमिका अदा करते हैं। आनी का जिला स्तरीय मेला भी आउटर सिराज क्षेत्र का प्रमुख लोक उत्सव है, जो प्रतिवर्ष बैसाख के 25 प्रविष्टे से शुरू होता है। चार दिन तक चलने वाला यह लोकनृत्य उत्सव हमें आउटर सिराज की लोकसंस्कृति के संपूर्ण दर्शन कराता है।
आनी पूर्व समय से ही एक महत्वपूर्ण केंद्र रहा है जहां सांगरी रियासत के तत्कालीन राजा ने तथा उसके बाद उनके पुत्र राजा रघुवीर सिंह ने भी कई सालों तक शासन किया। आनी मेले से संबंधित एक महत्वपूर्ण कहानी जुड़ी हुई है। बुजुर्गों के अनुसार राजा हीरा सिंह के शासनकाल में भयंकर सूखा और अकाल पड़ा। सैकडो लोग गंभीर बीमारी की चपेट में आ गए। जनता में त्राहि-त्राहि मच गई। पीडि़त लोगों ने राजा हीरा सिंह के दरवार में गुहार लगाई। विद्वानों से विचार-विमर्श के बाद राजा को लगा कि उन्हें क्षेत्र के बडे देवता शमशरी महादेव की शरण में जाना चाहिए। तब राजा ने भूखे पेट व नंगे पांव चलकर शमशरी महादेव के मंदिर में हाजिरी भरी और आनी क्षेत्र की जनता के लिए गुहार लगाई।
राजा ने यह संकल्प भी लिया कि जब तक शमशरी महादेव उनकी फरियाद नहीं सुनेंगे वह अन्न जल ग्रहण नही करेंगे। आखिर राजा के इस प्रण से देवता प्रसन्न हो गए और क्षेत्र में भारी बारिश हुई। इसके साथ ही क्षेत्र में सूखा, अकाल और बीमारी समाप्त हो गई। पूरा इलाका अन्न-धन से परिपूर्ण हो गया। राजा ने प्रसन्न हो कर देवता शमशरी महादेव को अपने बेहड़े में स्थान दिया। उसी याद में 25 बैसाख को आनी मेले की शुरूआत की गई। तब से लेकर यह मेला हर साल धूमधाम से आयोजित किया जा रहा है।
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