Saturday, 29 March 2014

नववर्ष के विविध रूप

नववर्ष के विविध रूप

CHAVINDER SHARMA 9418131366
ANNITHISWEEK.IN
संपूर्ण भारत में नवसंतत्सर चैत्र मास के शुक्लपक्ष की प्रतिपदा से मनाया जाता है। हालांकि देश के विभिन्न भागों में इसे अलग-अलग नामों से पुकारा जाता है।  आंध्रप्रदेश में युगदि या उगादि तिथि कहकर इस सत्य की उद्घोषणा की जाती है। वीर विक्रमादित्य की विजय गाथा का वर्णन अरबी कवि जरहाम किनतोई ने अपनी पुस्तक शायर उल ओकुल में किया है। उन्होंने लिखा है वे लोग धन्य हैं जिन्होंने सम्राट विक्त्रमादित्य के समय जन्म लिया। सम्राट पृथ्वीराज के शासन काल तक विक्त्रमादित्य के अनुसार शासन व्यवस्था संचालित रही जो बाद में मुगल काल के दौरान हिजरी सन् का प्रारंभ हुआ। किंतु यह सर्वमान्य नहीं हो सका, क्योंकि ज्योतिषियों के अनुसार सूर्य सिद्धांत का मान गणित और त्योहारों की परिकल्पना सूर्य ग्रहण, चंद्र ग्रहण का गणित इसी शक संवत्सर से ही होता है। जिसमें एक दिन का भी अंतर नहीं होता। सिंधु प्रांत में नव संवत्सर को ‘चेटी चंडो’ चैत्र का चंद्र नाम से पुकारा जाता है जिसे सिंधी हर्षोल्लास से मनाते हैं। कश्मीर में यह पर्व नौरोज के नाम से मनाया जाता है जिसका उल्लेख पंडित जवाहरलाल नेहरू ने अपनी आत्मकथा में लिखा है कि वर्ष प्रतिपदा नौरोज यानी नवयूरोज अर्थात नया शुभ प्रभात जिसमें लड़के-लड़कियां नए वस्त्र पहनकर बड़े धूमधाम से मनाते हैं। हिंदू संस्कृति के अनुसार नव संवत्सर पर कलश स्थापना कर नौ दिन का व्रत रखकर मां दुर्गा की पूजा प्रारंभ कर नवमीं के दिन हवन कर मां भगवती से सुख-शांति तथा कल्याण की प्रार्थना की जाती है। जिसमें सभी लोग सात्विक भोजन व्रत उपवास, फलाहार कर नए भगवा झंडे तोरण द्वार पर बांधकर हर्षोल्लास से मनाते हैं। इस तरह भारतीय संस्कृति और जीवन का विक्रमी संवत्सर से गहरा संबंध है। इन दिनों में लोग तामसी भोजन, मांस मदिरा का त्याग भी कर देते हैं। गुड़ी पड़वा हिंदू नववर्ष के रूप में भारत में मनाया जाता है। इस दिन सूर्य, नीम पत्तियां,अर्घ्य, पूरनपोली, श्रीखंड और ध्वजा पूजन का विशेष महत्व होता है। माना जाता है कि चैत्र माह से हिंदूओं का नववर्ष आरंभ होता है।  सूर्योपासना के साथ आरोग्य, समृद्धि और पवित्र आचरण की कामना की जाती है। इस दिन घर-घर में विजय के प्रतीक स्वरूप गुड़ी सजाई जाती है। उसे नवीन वस्त्राभूषण पहना कर शकर से बनी आकृतियों की माला पहनाई जाती है। पूरनपोली और श्रीखंड का नैवेद्य चढ़ा कर नवदुर्गा, श्रीरामचंद्र जी एवं राम भक्त हनुमान की विशेष आराधना की जाती है। यूं तो पौराणिक रूप से इसका अलग महत्व है लेकिन प्राकृतिक रूप से इसे समझा जाए तो सूर्य ही सृष्टि के पालनहार हैं। अतः उनके प्रचंड तेज को सहने की क्षमता हम पृथ्वीवासियों में उत्पन्न हो ऐसी कामना के साथ सूर्य की अर्चना की जाती है। इस दिन सुंदरकांड, रामरक्षास्तोत्र और देवी भगवती के मंत्र जाप का खास महत्व है। यह संक्रमण काल की वेला होती है और ऐसे समय में शक्ति साधना स्वाभाविक ही है।

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