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शांता कुमार के जीवन का अंतरंग परिचय
राजनेताओं की जीवनियां वस्तुतः किसी काल खंड के रोचक दस्तावेज होती हैं। शांता कुमार राष्ट्रीय स्वयं संघ के प्रचारक- विस्तारक के रास्ते से होते हुए भाजपा के राष्ट्रीय नेता के रूप में समादृत हुए हैं। इन की छवि एक ईमानदार, उदार परंतु हठी नेता के रूप में रही है, ऐसा नेता जो कभी अपने सिद्धातों से समझौता नहीं करता। वरिष्ठ साहित्यकार सुशील कुमार फुल्ल पालमपुर में गत पचास वर्ष से विराजमान हैं और उन्होंने शांता कुमार को बहुत नजदीक से देखा है। दोनों साहित्यकार भी हैं, अतः इन की घनिष्ठता का सहज ही अनुमान लगाया जा सकता है। आलोंच्य ग्रंथ में शांता कुमार बनने की जटिल प्रक्रिया का उद्घाटन करने का प्रयास किया गया है। पुस्तक दो खंडों में विभाजित है अर्थात राजनेता शांता कुमार तथा साहित्यकार शांता कुमार। परिशष्ट में लोकवाणी साक्षात्कर तथा सूक्त वाक्य दिए गए हैं। शांता कुमार होने का अर्थ है एक प्रभावशाली व्यक्तित्व का धनी होना। सामाजिक कार्यकर्ता के रूप में एक प्रशासक के रूप में, एक मुख्यमंत्री के रूप में एक ऐसे व्यक्ति का आभास करवाते हैं, जो धारा के विरुद्ध चलने में सहज महसूस करता है। मौलिक अवधारणाओं के कारण शांता कुमार ने खूब ख्याति अर्जित की है। काम नहीं दाम नहीं की नीति के संदर्भ में पहल ली गई है। अनेक सृजनात्मक योजनाओं के माध्यम से रोजगार के अवसर जुटाने में भी शांता कुमार ने परिपक्व विचारधारा का परिचय दिया है। काम भी अपना और गांव भी अपना, वन लगाओ रोजी कमाओ, स्वजलधारा तथा अंत्योदय आदि परोपकारी योजनाओं के माध्यम से अनेक क्रांतिकारी कार्यक्रमों को लागू किया है। भारत के ग्रामीण विकास मंत्री के रूप में भी अनेक नई योजनाओं को जन्म दे कर शांता कुमार ने यश अर्जित किया है। लेखक ने औपन्यासिक शैली में राजनेता की रोचक जीवन यात्रा के साथ- साथ शांता कुमार के साहित्यिक अवदान का भी विस्तृत मूल्यांकन प्रस्तुत किया है। कहानी की अपेक्षा उपन्यास में राजनेता की अधिक गति रही है। मृगतृष्णा उपन्यास लेखक का मास्टर पीस है, जो राजनीतिक शतरंज को बखूबी उघाड़ता है। उल्लेखनीय है कि शांता कुमार ने अपने पहले पांच उपन्यास नाहन जेल में आपात स्थिति में ही लिखे थे। इन की महर्षि विवेकानंद की जीवनी भी अनन्यतम रचना है। कवि एवं संस्मरण लेखक के रूप में भी नेता जी की शैली रोचक एवं माधुर्य गुण से संपन्न है। जीवनकार प्रायः प्रशंसात्मक होने लगते हैं परंतु प्रस्तुत पुस्तक में लेखक ने संतुलन बनाते हुए सही स्थितियों को प्रस्तुत किया है तथा कमियों को भी रेखांकित करने का प्रयत्न किया है। यथास्थल यह भी दर्शाया है कि किस प्रकार स्थानीय लोग शांता के नियमानुसार शब्द से चिढ़ खाते हैं। ध्यातव्य है कि शांता कुमार ने मेडिकल कालेज में प्रवेश के लिए मुख्यमंत्री का डिस्क्रीशन कोटा ही खत्म कर दिया था। काले शीशे वाली कार में निकलने वाला मुख्यमंत्री आदि ऐसे अनेक प्रसंग पुस्तक को रोचक बनाते हैं। भारतीय राजनीति में हिमाचल के योगदान को समझने में भी यह पुस्तक उपयोगी सिद्ध होगी। पुस्तक पठनीय एवं संग्रहणीय है।
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