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राजकीय संस्कृत महाविद्यालय क्यारटू, ठियोग
संस्कृत महाविद्यालय क्यारटू के भवन को लोक निर्माण विभाग ने इस समय अनसेफ घोषित किया हुआ है। यहां पर कहने को तो आठ कमरे हैं, लेकिन उपयोग में मात्र चार कमरे ही आ रहे हैं जबकि चार अन्य में बैठना जान जोखिम में डालने के बराबर है…
ठियोग के मधान क्षेत्र के क्यारटू में राजकीय संस्कृत महाविद्यालय वैसे तो सरकारी उपेक्षा का शिकार है, लेकिन यहां पर बेहद कम सुविधाओं के चलते हुए बेहतर शिक्षा देने का प्रयास कालेज प्रशासन द्वारा किया जा रहा है।
स्थापना
सन् 1965 में इस कालेज का प्रदेश सरकार ने अधिग्रहण किया था, जबकि यह कालेज इससे पहले निजी हाथों में ही था।
भवन की स्थिति
संस्कृत महाविद्यालय, क्यारटू के भवन को लोक निर्माण विभाग के द्वारा इस समय अनसेफ घोषित किया हुआ है। यहां पर कहने को तो आठ कमरे हैं, लेकिन उपयोग में मात्र चार कमरे ही आ रहे हैं जबकि चार अन्य में बैठना जान जोखिम में डालने के बराबर है। इसके लिए प्रदेश सरकार से बार- बार आग्रह के बाद लोक निर्माण विभाग को इसके नए भवन के लिए एस्टीमेट तैयार किए जाने के आदेश हुए हैं, जिस पर विभाग कार्य कर रहा है।
छात्रों व शिक्षकों की संख्या
यहां पर 50 छात्र-छात्राएं हैं जबकि 6 प्राध्यापक तथा 6 गैर शिक्षक कर्मचारी अपनी सेवाएं दे रहे हैं।
यहां पर पढ़ाए जाने वाले विषय
संस्कृत महाविद्यालय क्यारटू में 12 विषय पढ़ाए जा रहे हैं और इनमें संस्कृत विषयों के अलावा अंग्रेजी, हिंदी, इतिहास, शारीरिक शिक्षा के अलावा म्यूजिक की भी यहां पर छात्र-छात्राएं शिक्षा ग्रहण कर रहे है।
खेलने के लिए मैदान
महाविद्यालय में खेलकूद के लिए मैदान तो है लेकिन यह नाममात्र ही है। हालांकि पंचायत की ओर से सड़क का निर्माण किया गया है, जिससे कि महाविद्यालय के लिए आने- जाने की सुविधा मिली है।
कम्प्यूटर लैब
महाविद्यालय में कम्प्यूटर लैब तो है, पर यहां पर इसके लिए अध्यापक नहीं है, जिससे कि छात्रों को यह सुविधा मिल सके।
क्या है खास
संस्कृत महाविद्यालय क्यारटू एकांत स्थान पर है जिससे कि यहां पर छात्रों को पढ़ाई के लिए अच्छा माहौल मिल रहा है और यहां से शिक्षा प्राप्त करने वाले छात्र हमेशा अव्वल रहते हैं।
प्रधानाचार्य का सौहार्दपूर्ण रवैया
यहां पर प्रधानाचार्य प्रवीण कुमार के सौहार्दपूर्ण रवये के चलते ही यहां पर शैक्षिणिक माहौल काफी अच्छा बना हुआ है।
Chavinder sharma 9418131366
शारीरिक शिक्षा का शानदार कैरियर
विश्वविद्यालयों और अन्य शिक्षण संस्थाओं ने भी खेल एवं शारीरिक शिक्षा को एक बेहतर पाठ्यक्रम के रूप में मान्यता देनी शुरू कर दी है। स्वास्थ्य के प्रति हमारे अंदर आई जागरूकता के कारण हम जिम, योग आदि के प्रति सजग हो रहे हैं और इनको अपना रहे हैं। ऐसे में योग जैसी प्राकृतिक पद्घतियों के विशेषज्ञों की भी आज काफी मांग है…
खेल एवं शारीरिक शिक्षा के क्षेत्र में बढ़ रही संभावनाओं को देखते हुए यह कैरियर की दृष्टि से एक बेहतर विकल्प साबित हो सकता है। देश के कुछ जाने-माने विश्वविद्यालयों ने इस तरह के नए पाठ्यक्रमों की शुरुआत की है। देशवासियों में स्वास्थ्य के प्रति जागरूकता ने शारीरिक शिक्षा और खेल के प्रति रुचि में बढ़ोतरी हुई है। विश्वविद्यालयों और अन्य शिक्षण संस्थाओं ने भी खेल एवं शारीरिक शिक्षा को एक बेहतर पाठ्यक्रम के रूप में मान्यता देनी शुरू कर दी है। आजकल स्वास्थ्य के प्रति हमारे अंदर आई जागरूकता के कारण हम जिम, योग आदि के प्रति सजग हो रहे हैं और इनको अपना रहे हैं। ऐसे में योग जैसी प्राकृतिक पद्घतियों के विशेषज्ञों की आज काफी मांग है। शारीरिक शिक्षा प्राथमिक एवं माध्यमिक शिक्षा के समय में पढ़ाया जाने वाला एक पाठ्यक्त्रम है। इस शिक्षा से तात्पर्य उन प्रक्रियाओं से है जो मनुष्य के शारीरिक विकास तथा कार्यों के समुचित संपादन में सहायक होती है।
परिचय
वर्तमान काल में शारीरिक शिक्षा के कार्यक्रम के अंतर्गत व्यायाम, खेलकूद, मनोरंजन आदि विषय आते हैं। साथ- साथ वैयक्तिक स्वास्थ्य तथा जनस्वाथ्य का भी इसमें स्थान है। कार्यक्रमों को निर्धारित करने के लिए शरीर रचना तथा शरीर क्रिया विज्ञान, मनोविज्ञान तथा समाज विज्ञान के सिद्धांतों से अधिकतम लाभ उठाया जाता है। वैयक्तिक रूप में शारीरिक शिक्षा का उद्देश्य शक्ति का विकास और नाड़ी स्नायु संबंधी कौशल की वृद्धि करना है तथा सामूहिक रूप में सामूहिकता की भावना को जागृत करना है।
इतिहास
संसार के सभी देशों में शारीरिक शिक्षा को महत्त्व दिया जाता रहा है। ईसा से 2500 वर्ष पहले चीन देशवासी बीमारियों को दूर भगाने के लिए व्यायाम में भाग लेते थे। ईरान में युवकों को घुड़सवारी, तीरंदाजी तथा सत्यप्रियता आदि की शिक्षा प्रशिक्षण केंद्रों में दी जाती थी। यूनान में खेलकूद की प्रतियोगिताओं का बड़ा महत्त्व होता था। शारीरिक शिक्षा से मानसिक शक्ति का विकास होता था। सौंदर्य में वृद्धि होती थी तथा रोगों का निवारण होता था। स्पार्टा में जगह जगह व्यायामशाला बनी हुई थी। रोम में शारीरिक शिक्षा, सैनिक शिक्षा तथा चारित्रिक शिक्षा में परस्पर घनिष्ट संबंध था और राष्ट्र की रक्षा करना इन सबका उद्देश्य था। पाश्चात्य देशों के धार्मिक विचारों में परिवर्तन होने के कारण तपस्या तथा शारीरिक यातनाओं पर बल दिया जाने लगा। किंतु आगे चलकर खेल- कूद, तैराकी, व्यायाम तथा अस्त्र-शस्त्र के अभ्यास में लोगों की अभिरुचि पुनः जगी। इस काल के माइकिल ई मांटेन, जेजे रूसो, जॉन लॉक तथा कमेनियस आदि शिक्षा शास्त्रियों ने शारीरिक शिक्षा पर जोर दिया।
भारत में अभ्युदय
भारतवर्ष में शारीरिक शिक्षा के क्षेत्र में भारतीय व्यायाम पद्धति का प्रमुख स्थान है। यह विश्व की सबसे पुरानी व्यायाम प्रणाली है। जिस समय यूनान, स्पार्टा ओर रोम में शारीरिक शिक्षा के झिलमिलाते हुए तारे का अभ्युदय हो रहा था उस समय भी भारतवर्ष में वैज्ञानिक आधार पर शारीरिक शिक्षा का ढांचा बन चुका था और उस ढांचे का प्रयोग भी हो रहा था। आश्रमों तथा गुरुकुलों में छात्रगण तथा अखाड़ों और व्यायामशालाओं में गृहस्थ जीवन के प्राणी उपयुक्त व्यायाम का अभ्यास करते थे। इन व्यायामों में दंड बैठक, मुगदर, गदा, नाल, धनुर्विद्या, मुष्टी,वज्रमुष्टी, आसन, प्राणायाम, भस्त्रिका प्राणायाम, सूर्य नमस्कार, नौली, नेती, धौती,वस्ती इत्यादि प्रक्रियाएं प्रमुख थीं।
विशेषता और विकास
भारतीय व्यायाम पद्धति में सबसे बड़ी विशेषता यह है कि इस पद्धति के द्वारा ध्यान को एकाग्र करना, चित्तवृत्ति का निरोध करना तथा स्मरण शक्ति आदि की वृद्धि करना सुगमतया संभव है। इसी विशेषता से आकर्षित होकर अन्य देशों में इन व्यायामों का बड़ी तीव्र गति से प्रचार और प्रसार हो रहा है। यही नहीं, कहीं- कहीं पर तो इन व्यायामों के विभिन्न अनुसंधान केंद्र स्थापित कर दिए गए हैं। मनोविज्ञान के युग का प्रारंभ होते ही शारीरिक शिक्षा के कार्यक्रम तथा संगठन में वैज्ञानिक दृष्टिकोण का समावेश हुआ। फलतः बच्चों की अभिरुचि, प्रवृत्ति, उम्र तथा क्षमता को ध्यान में रखकर शारीरिक शिक्षा के पाठों का निर्माण हुआ। शैशव काल में ड्रिल को हटाकर छोटे- छोटे यांत्रिक खेल तथा कसरतों पर अधिक बल दिया गया। इसके बाद जिम्नास्टिक्स की ओर युवकों को आकर्षित किया गया। सारी कसरतें संगीत की लय पर युवकों में अधिक सुखद और रुचिकर बनाने के प्रयास हुए। शारीरिक शिक्षा का क्षेत्र बहुत विस्तृत बना दिया गया। आज यह विषय अंतरराष्ट्रीय आदान- प्रदान का एक सुलभ साधन हो गया है।
अंतरराष्ट्रीय पहचान
सभी प्रगतिशील देशों में इस शिक्षा के कार्यक्रमों की अंतरराष्ट्रीय प्रतियोगिताओं तथा समारोहों की संख्या दिनोंदिन बढ़ती जा रही है। इस विषय में प्रशिक्षण देने के लिए शारीरिक शिक्षा महाविद्यालय खुले हैं जहां पर अध्यापक तथा अध्यापिकाएं प्रावधान के अनुसार तीन वर्ष दो वर्ष या एक वर्ष का प्रशिक्षण प्राप्त करते हैं। ये संस्थाएं समय- समय पर प्रादेशिक, राष्ट्रीय तथा अंतरराष्ट्रीय प्रतियोगिताएं भी आयोजित करती हैं। इन प्रतियोगिताओं में भाग लेने के लिए प्रतियोगियों को विशिष्ट प्रशिक्षण दिया जाता है। यही कारण है कि वैश्विक प्रतियोगिताओं में दिनोंदिन प्रगति होती जाती है।
प्रमुख शिक्षण संस्थान
हिमाचल प्रदेश यूनिवर्सिटी, शिमला गुरु नानकदेव यूनिवर्सिटी, अमृतसर लक्ष्मीबाई राष्ट्रीय शारीरिक संस्थान ग्वालियर(एशिया का एकमात्र डीम्ड विश्वविद्यालय) उस्मानिया विश्वविद्यालय, हैदराबाद कालेज ऑफ फिजिकल एजुकेशन पुणे, महाराष्ट्र इंदिरा गांधी इंस्टीच्यूट ऑफ फिजिकल एजुकेशन एंड स्पोर्ट्स साइंस, नई दिल्ली विवेकानंद रूरल एजुकेशन सोसायटी कालेज आफ फिजिकल एजुकेशन, रैचुर कर्नाटक वीएनएस कालेज ऑफ फिजिकल एजुकेशन एंड मैनेजमेंट, भोपाल(मप्र)
शैक्षणिक योग्यता और कोर्स
शारीरिक शिक्षा में प्राथमिक योग्यता दस जमा दो के बाद सीपीएड है। दस जमा दो के बाद ही शारीरिक शिक्षा में तीन वर्षीय डिग्री बीपीई होती है। स्नातकों के लिए एक वर्ष की बीपीएड डिग्री करवाई जाती है। स्नातक दो साल की एमपीएड भी कर सकते हैं।
प्रवेश परीक्षा एमपीएड
एमपीएड में प्रवेश हेतु लिखित परीक्षा आयोजित की जाती है, जिसमें बीपीएड और बीपीई स्तर के छात्र भाग लेते हैं जिन्हें खेल कूद से संबंधित सामान्य ज्ञान तथा अन्य गुणात्मक वस्तुनिष्ठ परक प्रश्न पूछे जाते हैं।
एमफिल- पीएचडी
प्रवेश परीक्षा के लिए एमपीएड, एमपीईडी स्तर के बहुउत्तरीय प्रश्न लिखित परीक्षा में पूछे जाते हैं, जिसमें अनुसंधान विधियां, प्रारंभिक सांख्यिकी, शारीरिक विज्ञान का अभ्यास, शारीरिक शिक्षा में मापन व मूल्यांकन, जैव यांत्रिकी तथा गति विज्ञान, शारीरिक शिक्षा का इतिहास प्रशिक्षण विधि तथा खेलकूद व क्रीड़ा से संबंधित सामान्य ज्ञान इत्यादि विषयों से सम्बंधित प्रश्न होते हैं।
वेतनमान
शारीरिक शिक्षा में कोर्स करने के बाद योग्यतानुसार स्कूल में दस हजार और अच्छे कोर्स करने के बाद कालेज में लगने पर 40 हजार तक आरंभिक वेतन मिलता है। इसके अलावा निजी क्षेत्र में हैल्थ क्लब और जिम्नेजियमों में भी आकर्षक वेतन पर इन्हें रखा जाता है।
भारतीय खेल प्राधिकरण
भारतीय खेल प्राधिकरण भारत के युवा कार्यक्रम एवं खेल मंत्रालय का महत्त्वपूर्ण अंग है । अपनी खेल प्रोत्साहन योजनाओं के माध्यम से भारतीय खेल प्राधिकरण युवाओं में प्रतिभा उत्पन्न करने और उसे निखारने का काम करता है।
शारीरिक शिक्षा का महत्त्व
छात्रों को शरीर के अंगों का ज्ञान, उनकी रचना और कार्यों का बोध कराने के लिए शारीरिक शिक्षा महत्त्वपूर्ण है। शरीर को स्वस्थ रखने के लिए विभिन्न प्रकार के खेल हैं, जैसे बालीबाल, फुटबाल, हाकी, बास्केटबाल, टेबल टेनिस, लान टेनिस,कबड्डी, खो-खो, बेडमिंटन, क्रिकेट, कैरमबोर्ड और शतरंज आदि। प्रत्येक स्कूल में एक शारीरिक शिक्षक उतना ही महत्त्वपूर्ण है जितना पढ़ाने वाला शिक्षक। शारीरिक शिक्षक से बालक का मानसिक विकास तो होता ही है साथ ही शारीरिक विकास भी सही गति से होता है। बच्चों को शिक्षा के साथ खेलकूद में भाग लेना चाहिए, जिससे उनके अंदर खेल के प्रति पूरा सम्मान उत्पन्न हो।
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