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संकीरण कांडा को निकली शृंगा ऋषि की छड़ी
बंजार — बंजार क्षेत्र के पांच कोठी के आराध्य देवता शृंगा ऋषि की छड़ी अपने मूल स्थान चैंहणी से संकीरण कांडा के लिए अपने पूरे लाव लश्कर के साथ रवाना हो गई है। अपनी मनोकामना की पूर्ति व मुंडन की प्रक्रिया को अंजाम देने के लिए बंजार-आनी-कुल्लू व अन्य जगहों के हजारों श्रद्धालु लगभग 20 किलोमीटर की चढ़ाई चढ़ कर शृंगा ऋषि के दरबार संकीरण पहुंचेंगे। लगभग 13 हजार फुट की ऊंचाई पर स्थित इस देव टीले में प्रतिवर्ष ज्येष्ठ संक्रांति से एक दिन पहले देवता की छड़ी सहित देव हारियनों ने कूच किया। मंगलवार को देवता शृंगा ऋषि की छड़ी को चैंहणी गांव से देव कार्य विधि अनुसार अपने मूल स्थान से हजारों श्रद्धालुओं सहित संकीरण जोत के लिए रवाना हो गए। वहीं 14 मई सुबह चार बजे से श्रद्धालु देवता को बलि चढ़ाते हैं। मान्यता है कि जिसकी मनोकामना पूरी हुई है, वहीं संकीरण में बकरों की बलि चढ़ाएगा। शृंगा ऋषि की शरण में पुत्र प्राप्ति के लिए जाते हैं। गौरतलब है कि प्राचीनकाल में एक दंत कथा के अनुसार होरनगाड के पास ध्रीमला में शृंगा ऋषि ने एक पत्थर की मूर्ति के रूप में गवाले को आदेश दिया कि मुझे कहीं एकांत स्थान में पहुंचा दो समय के अनुसार गवाले ने पत्थर की पिंडी को संकीरण पहुंचा दिया, वहां से देवता बाग पहुंचे, जहां उनके हारियानों ने देवता की पूजा की। देवता की मान्यता चारों दिशाओं में फैल गई। तभी से हारियान प्रतिवर्ष ज्येष्ठ संक्रांति की पूर्व संध्या पर 11000 फुट की ऊंचाई पर स्थित देवता के मूल स्थान संकीरण जाते हैं। सराज घाटी की प्रसिद्ध संकीरण के लिए जब देवता की छड़ी की रवानगी हुई, तो उस में लोगों की आस्था को देखकर लोग काफी हैरान हो गए। मंगलवार को भारी बारिश होने के कारण लोग घर से बाहर निकलने में काफी सोच-विचार कर रहे थे, परंतु जैसे ही देवता शृंगा ऋषि की छड़ी वाध्य यंत्रों की गूंज पर चली, तो लोगों के मन में साहस की किरण जग गई और हाजरों की संख्या में आस्थावान लोग संकीरण के लिए चल पड़े। देव आस्था सारी मुसीबतें धरी की धरी रह गई।
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