epaper annithisweek.in
नई राह गढ़ती निर्मला
पहाड़ी प्रदेश हिमाचल मे युवतियों के लिए कब्बडी में मिसाल बन चुकी गिरिपार की तिकड़ी में शामिल एक खिलाड़ी निर्मला ने हौसलों की उड़ान को मजबूत करते हुए जिले की पहली महिला कब्बडी कोच बनने का गौरव हासिल किया है। कब्बडी में गजब की प्रतिभा व जुनून की धनी निर्मला ने कब्बडी कोच की ट्रेनिंग पूरी करने के बाद भी कब्बडी खेलना नही छोड़ा। नतीजा यह कि आज वह इंडिया कैंप के लिए भी सेलेक्ट हो चुकी है। अंतरराष्ट्रीय गोल्ड मेडलिस्ट प्रियंका नेगी व रितु नेगी के साथ एक ही बैच मे कब्बडी के क्षेत्र में आगे बढ़ते हुए बिलासपुर होस्टल पहुंची निर्मला ने क्षेत्र की बालाओं के लिए मिसाल कायम कर दी है कि लड़कियां सिर्फ घास व गोबर ढोने के लिए ही नहीं जन्मी बल्कि वे ऐसे क्षेत्र में भी आगे बढ़ सकती हैं, जिसे विशेषता पुरुषों की फील्ड कहा जाता था। आज इन्हीं का जुनून है कि गिरिपार में लड़कियां खाली समय में पुरुषों की गेम कही जाने वाली कब्बडी बड़े शौक से खेलती हैं। 30 मार्च, 1989 को क्षेत्र के सब काडर एरिया के कुहंठ गांव मे जगत सिंह व नागो देवी के घर जन्मी कब्बडी कोच निर्मला की प्रारंभिक पढ़ाई गांव में ही हुई। 8वीं की परीक्षा साथ लगते गांव टिम्बी से पास करने के बाद परिवार की माली हालत उसे आगे पढ़ने की इजाजत नहीं दे रही थी, परंतु बेटी के पढ़ाई के शौक को देखते हुए किसान पिता ने उसे आगे पढ़ाने का निर्णय लिया। पिता का यह निर्णय ही इस प्रतिभा के जीवन का टर्निंग प्वाइंट रहा। जमा दो तक की पढ़ाई पूरी करने के लिए शिलाई गई निर्मला को वहां कब्बडी खेलने का अवसर मिला। तत्कालीन दबंग व प्रसिद्ध पीईटी हीरा सिंह ठाकुर ने उसकी प्रतिभा परख कर उसे कब्बडी का पूरा ज्ञान दिया। निर्मला जब 12वीं में पढ़ती थी तो उसे बिलासपुर में आयोजित ट्रायल का मौका मिला, जहां से उसकी सिलेक्शन स्टेट होस्टल बिलासपुर के लिए हुई। निर्मला के मुताबिक कब्बडी में उसकी रुचि पहले से ही थी। जब वह 5वीं मे पढ़ती थी तो स्कूल में कब्बडी खेला करती थी। परन्तु शिलाई जाने के उपरांत व पीईटी हीरा सिंह ठाकुर की कोचिंग के बाद उसके खेल में निखार आया। बिलासपुर होस्टल में रहते हुए निर्मला ने अपनी ग्रेजुएशन पूरी की और इसी दौरान प्रदेश को अपनी प्रतिभा से दर्जनों मेडल दिलवाए। निर्मला ने राष्ट्रीय स्तर पर अपने कब्बडी हुनर का आगाज वर्ष 2005 में जूनियर नेशनल टूर्नामेंट खेलकर किया। वर्ष 2012-13 सत्र में कब्बडी कोच का डिप्लोमा पूर्ण कर चुकी निर्मला ने अभी तक करीब डेढ दर्जन सीनियर, जूनियर, बीच व वूमन नेशनल कब्बडी टूर्मामेंट खेले हैं, जिसमें वह प्रदश के लिए कई गोल्ड, सिल्वर व ब्रांज मेडल जीत चुकी हैं। निर्मला का इंडियन कब्बडी कैंप के लिए भी दो बार चयन हुआ, परंतु वजन कम होने के चलते उसका इंडिया टीम में सिलेक्शन नहीं हो पाया था। प्रदेश की तरफ से खेलते हुए निर्मला ने दिल्ली, चंडीगढ़, कर्नाटका, मुंबई, झारखंड, हरिद्वार, तमिलनाडु, मदुरै व उज्जैन आदि राज्यों में शानदार कब्बडी खेलते हुए प्रदेश की शान को चार चांद लगाए हैं। निर्मला इंडिया टीम में सिलेक्शन न होने से हताश नही हुई तथा अपने जैसे प्रतिभाशाली खिलाडि़यों को इंडिया टीम में पंहुचाने के सपने को लेकर कब्बडी कोच बनने का निर्णय लिया। यही नहीं, निर्मला ने कब्बडी खेलना नहीं छोड़ा और कब्बडी के प्रति लगन का फल उसे मिल गया और उसकी नेशनल कैंप के लिए सिलेक्शन हो गई। यह अलग बात है कि प्रदेश की झोली मे दर्जनो स्वर्ण, रजत व कांस्य पदक डाल चुकीं शिलाई क्षेत्र की निर्मला की प्रदेश सरकार कोई सुध नही ले रही है। एक वर्ष पूर्व बंगलूर से कब्बडी कोच का डिप्लोमा पूरा कर चुकी कुमारी निर्मला रोजगार की तलाश में दर- दर भटक रही है, लेकिन प्रदेश का नाम रोशन करने वाली इस बाला को अपने प्रदेश ने ही जैसे बेगाना कर दिया है!
छोटी सी मुलाकात
कब्बडी के क्षेत्र मे कैसे प्रवेश किया ?
क्षेत्र के मशहूर खिलाड़ी व पूर्व डीपीई हीरा सिंह ठाकुर के मार्गदर्शन से इस क्षेत्र में प्रवेश किया और यहां तक की यात्रा की।
पुरुषों के खेल कहे जाने वाले कबड्डी के खेल में प्रवेश करते समय परिवार के विरोध का सामना तो नही करना पड़ा ?
परिजन एक बार मना कर रहे थे परंतु मेरे शौक व जुनून के आगे उन्हें झुकना पड़ा।
अपने परिवार को कितना समय दे पाती हैं? ज्यादातर समय बाहर ही रही हूं आजकल इंडिया कैंप में हूं। कबड्डी कोचिंग पूरी करने के बाद काफ ी समय से घर पर रही और घर के काम में मां का पूरा हाथ बंटाया।
महिलाओं को क्या संदेश देना चाहेंगी।
पहाड़ की महिलाएं पहाड़ जैसी शक्तिशाली बनें। वे आत्म निर्भर बनें और हर फील्ड मे आगे बढ़कर पुरुषों की बराबरी कर प्रदेश के विकास में अपनी भागीदारी सुनिश्चित करें।
-दिनेश पुंडीर, पांवटा साहिब
No comments:
Post a Comment