Thursday, 8 May 2014

काटे नहीं कटते दिन epaper annithisweek.in

फोन पर फीडबैक, परिवार से स्नेह के सहारे कट रहा वक्त

काटे नहीं कटते दिन
NEWSमंडी — संसदीय चुनाव के लिए मतदान खत्म होने के बाद अब नेताओं के लिए कुछ दिन आराम के निकल आए हैं। जहां नेताजी चुनाव के समय इतने व्यस्त थे कि 24 घंटे भी कम लगते थे, वहीं अब मतदान के परिणाम आने का इंतजार काटे नहीं कट रहा है। मंडी सीट से भाजपा प्रत्याशी रामस्वरूप शर्मा भी मतदान होने के बाद अपने घर पहुंच गए हैं। 25 मार्च को टिकट की घोषणा होने के बाद घर से निकले श्री शर्मा ने सात मई को मतदान पूर्ण होने के बाद पहली रात अपने घर में परिजनों के साथ बिताई। चुनाव की थकान को अब रामस्वरूप शर्मा अपने परिजनों के साथ मिटाने की कोशिश में लगे हुए हैं और उनका ज्यादातर समय फोन पर फीठबैक, अखबारों के विश्लेषण और लोगों से मिलने में कट रहा है।  गुरुवार को उन्होंने अपने पोते के साथ  काफी देर तक खेलकर चुनावी तनाव को कम किया। हालांकि मोबाइल की घंटी उनका पीछा नहीं छोड़ रही है। वोटिंग के बाद उन्होंने बुधवार रात को लंबी नींद लेने की योजना बनाई थी, लेकिन वह सुबह पौने पांच बजे ही उठ गए। उठकर उन्होंने गमलों को पानी दिया और फिर अपने कुत्ते को साथ लेकर सैर के लिए निकले। इसके बाद उन्होंने अखबारों के जरिए मतदान का आकलन किया। पूरे संसदीय क्षेत्र में अपने नेताओं व कार्यकर्ताओं को फोन किए और उनसे मतदान की फीडबैक ली। रामस्वरूप बताते हैं कि प्रचार के दिनों की तरह ही गुरुवार को भी उन्हें 12 बजे के करीब नाश्ता किया। यही नहीं, वह एक शादी समारोह में भी गए और वर-वधु को आशीर्वाद दिया। इसके बाद जोगिंद्रनगर स्थित अपने कार्यालय में भी कुछ देर के लिए समय बिताया। श्री शर्मा कहते हैं कि अब चुनाव प्रचार के दिनों की तरह भागमभाग नहीं है।
कैसे कट रहा है समय?
रामस्वरूपः चुनाव में पहले समय का पता ही नहीं चलता था। पूरा दिन और रात भी कम लगती थी। अब समय परिवार व लोगों के साथ और 16 मई के इंतजार में कट रहा है।
अब तनाव है या तनावमुक्त?
रामस्वरूपः पहले भी तनाव नहीं था, मुझमें तो जुनून था, जो कि कई वर्षों से रुका हुआ था। अब मन को तसल्ली है कि कुछ किया है। कोई तनाव नहीं है। बस 16 मई का इंतजार हो रहा है और मन सोच में डूबा है।
कितना मुश्किल है चुनाव लड़ना?
रामस्वरूपः चुनाव लड़ना आज की स्थिति में बहुत मुश्किल है, लेकिन जनमानस साथ हो, अच्छे मुद्दे हों, योजना स्पष्ट हो और मानसिकता स्पष्ट हो तो चुनाव लड़ना मुश्किल नहीं है। हर बार चुनाव में खर्च बढ़ रहा है। वर्किंग बदल रही है। चुनाव प्रचार व तकनीक का ज्यादा प्रयोग हो रहा है। झूठे वादों पर ज्यादा जोर होता जा रहा है।
क्या जनता की नब्ज पहले पता चल जाती है?
रामस्वरूपः जनता बोलती नहीं है, महसूस करवाती है और समय का इंतजार करती है। जो जनता की नब्ज पकड़ कर चुनाव लड़े, वही तो जीतता है।
कार्यकर्ता नकारात्मक फीडबैक भी देते हैं?
रामस्वरूप ः कार्यकर्ता दोनों तरह की फीडबैक देते हैं। उन्हें सुना जाना चाहिए। कई बार नेता इन फीडबैक को नहीं सुनते हैं। इस बार भी ऐसी कई फीडबैक आई थी। नेगेटिव फीडबैक सुनकर दुख नहीं होता था, लेकिन आक्रोश आता था।

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