Saturday, 10 May 2014

कुंजम दर्रा न खुला

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कुंजम दर्रा न खुला तो करेंगे आंदोलन

काजा — चिल चिलाती गर्मी में स्वर्ग लोक की अनुभूति करवाने वाले ठंडे रेगिस्तान में सुकून के कुछ पल गुजारने के अरमान अभी पूरे नहीं हो सकेंगे। देश-विदेश के पर्यटकों को बर्फीले रेगिस्तान स्पीति में इन दिनों स्वर्ग लोक के यथार्थ को अंगीकृत करने के लिए अभी लंबा इंतजार करना पड़ सकता है। गौरतलब है कि कुंजम दर्रा यातायात के लिए खुलते ही देश-विदेश के पर्यटकों के काफिले बर्फ के इस रेगिस्तान का रुख कर लेते हैं और इसके साथ पर्यटन व पर्वतारोहण की साहसिक गतिविधियां एकदम यौवन पर आती हैं। पर्यटकों की टोलियां जब दस्तक देती हैं तो लोसर किब्बर, कोमिक, ताबो, काजा, लालुंग, कीह, डेमुल, ढंखर, कुंगरी, मुद व रंगरीक सरीखे इस रेगिस्तान के खूबसूरत पर्यटन स्थलों में बहार आ जाती है, लेकिन इस बार उनके मन की मुराद जल्दी पूरी होने की संभावना भी कम ही बताई गई है। कुंजम के कपाट ही जल्दी नहीं खुलेंगे, तो पर्यटन की बहार कैसे आ सकती है, जिसका नुकसान स्पीति के होटल कारोबारियों के अलावा व्यापारियों को भी चुकाना पड़ेगा। लिहाजा बीआरओ की तंद्रा तोड़ने के लिए उन्होंने संघर्ष की राह पकड़ ली है। लोगों का कहना है कि बीआरओ जानबूझ कर लेटलतीफी की रणनीति पर काम कर रहा है। अगर ऐसा न होता तो लोसर से आगे कुंजम की ओर डेढ़ किलोमीटर सड़क को ही खोलने में 20 दिन न लगते। मंडलाध्यक्ष स्पीति पलजोर, सतपाल महाजन, दिनेश कपिल व विनोद कुमार सहित कई व्यापारियों का कहना है कि दर्रे को खोलने का दारोमदार जब पीडब्ल्यूडी के पास था तो इस तरह की परिस्थितियां पहले कभी पैदा नहीं हुई हैं।

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