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महीनों से पशुशाला में कैद महिला जीते जी भोग रही नरक
नगरोटा बगवां — जिस देश में नारी को पूज्य मानकर देवताओं के वास से जोड़ने की मान्यता है, उसी देश और वह भी देवभूमि के नाम से मशहूर हिमाचल प्रदेश में एक महिला पिछले कई महीनों से पशुशाला में कैद नारकीय जीवन जीने को मजबूर है। सारा जीवन अपने बच्चों की जिंदगी को संवारने में लगा चुकी नगरोटा बगवां की चंचला देवी (65) उम्र के इस पड़ाव में इस क्रद बेबस और लाचार है कि पशुशाला में कैद होकर आजादी की सांस को भी तरस गई है, जिस समाज में उसने इतनी उम्र बिताई वह भी इस महिला की लाचारी को देखकर मौन ओढे़ हुए है। चार रोज पहले जब सारी दुनिया मदर-डे मना रही थी और दुनिया भर की माताएं अपने लाड़लों का स्नेह पाकर गौरवान्वित हो रहीं थीं उस समय भी यह असहाय मां रोज की तरह टकटकी लगाकर किसी अपनों के इंतजार में एक झरोखे से निहारती रही। 65 वर्षीय चंचला देवी चार बच्चे होने के बावजूद पिछले कई महीनों से एक पशुशाला में कैद होकर नारकीय जीवन जीने को मजबूर है। ‘दिव्य हिमाचल’ की पड़ताल में यह सामने आया कि नगरोटा बगवां की दुर्गम ग्राम पंचायत खरट की यह महिला अपनी तीन बेटियों और एक बेटे की बेहतरीन परवरिश कर उन्हें मुकाम तक पहुंचाने में तो पूरी तरह कामयाब रही, लेकिन गरीबी और हालातों से लड़ते-लड़ते अपना संतुलन इस कद्र खो बैठी कि उसे कभी कभार दौरे पड़ने की बीमारी ने घेर लिया। इसी के चलते दो वर्ष पूर्व आग की चपेट में आ जाने से जहां वह अपनी दाईं बाजू गंवा बैठी, वहीं शरीर भी आंशिक रूप से असहज होकर रह गया है। महिला के इकलौते बेटे ने घर में बहू लाने के साथ ही मां के उपचार और सेवा की पूरी व्यवस्था तो की, लेकिन वक्त के थपेड़ों ने पुत्र को भी मां से इस कद्र दूर कर दिया कि पुत्र चाह कर भी मां के मुंह में दो घूंट पानी नहीं डाल सकता और न ही मजबूर मां अपने पुत्र का मुंह देख पा रही है। बूढी मां के और भी बुरे दिन तब शुरू हुए, जब दो माह पूर्व घरेलू परिस्थितियों से हार कर बहू ने घर में ही फंदा लगाकर जान दे दी, उधर पत्नी को मारने के आरोप ने मां के बेटे को सलाखों के पीछे पहुंचा दिया। अभी तक जमानत न होने की वजह से जहां बेटा पुलिस हिरासत में रातें गुजार रहा है, वहीं बूढ़ी मां उसी दिन से बेकसूर होते हुए भी पशुशाला में बंदी बनकर रह गई है। गांव के ही एक बुजुर्ग वार्ड पंच रघुनाथ, जो दूर के रिश्तेदार भी हैं, सुबह-शाम महिला की कोठरी में रोटी-पानी की व्यवस्था बनाए हुए हैं, जबकि शेष समय ताला लगी पशुशाला में बंद पड़े रहना चंचला की दिनचर्या है। दुखद तो यह है कि अस्थमा के मरीज रघुनाथ स्वयं अब बुढ़ापे तथा शारीरिक कमजोरी का हवाला देकर रोजाना किलोमीटर सफर तय करने के बाद महिला को रोटी-पानी का जुगाड़ आगे भी बनाए रखने में अपनी असमर्थता व्यक्त कर चुके हैं। संवेदनशून्य समाज की ओर से कोई सकारात्मक पहल न होने की वहज से इस बुजुर्ग महिला का क्या होगा। क्या जिंदगी के आखिरी पलों में एक बेटे को अपनी मां की सेवा का सौभाग्य प्राप्त होगा या फिर प्रशासनिक अमले की पहल से एक लाचार जिंदगी को किसी अक्षम या संस्थान में पनाह मिल पाएगी। उल्लेखनीय है कि पंचायत के उपप्रधान देश राज ने भी पिछले कई महीनों से महिला के पशुशाला में बंद होेने की पुष्टि की है तथा अब वह प्रशासन को भी इसकी सूचना देकर महिला के पुनर्वास के लिए सरकारी सहयोग की योजना बना रहे हैं।
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