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देव संस्कृति के संरक्षण की जरूरत
( सुरेंद्र ठाकुर लेखक, ठियोग, शिमला से हैं )
प्रदेश के ग्रामीण मंदिरों की व्यवस्था इतनी चिंताजनक है, यदि सरकार एवं जागरूक समाज द्वारा इस ओर विशेष ध्यान नहीं दिया गया तो हिमाचल की सदियों पुरानी देव संस्कृति की जानकारी आने वाली पीढि़यों को इतिहास की पुस्तकों में मिलेगी…
हिमाचल प्रदेश की गौरवमय देव संस्कृति के कारण हिमाचल को देवभूमि के नाम से जाना जाता है। हिमाचल के देवी-देवताओं का प्रदेश के सामाजिक सौहार्द में विशेष योगदान है। इसके अलावा धार्मिक पर्यटन प्रदेश की अर्थव्यवस्था में महत्त्वपूर्ण भूमिका अदा करता है। हिमाचल के मंदिरों में आने वाले श्रद्धालु न केवल प्रदेश के मंदिरों में करोड़ों का चढ़ावा देकर जाते हैं, अपितु स्थानीय जनता को रोजगार के अवसर भी पैदा करते हैं। हिमाचल के शक्तिपीठ एवं बड़े मंदिर हालांकि स्थानीय प्रशासन के साथ मिलकर मंदिर कमेटियों का गठन करते हैं और इन कमेटियों द्वारा मंदिरों एवं श्रद्धालुओं की सुविधाओं के लिए अनेक योजनाएं बनाई जाती हैं। सरकार एवं प्रशासन के ये मामूली प्रयास देव संस्कृति को बचाने के लिए काफी नहीं हैं। सरकार एवं प्रशासन को चाहिए कि वे एक ऐसी ठोस एवं कारगर नीति बनाएं, ताकि गौरवमय देव संस्कृति को बचाने के साथ-साथ हिमाचल की आर्थिकी को भी सुदृढ़ किया जा सके। हिमाचल की देव संस्कृति को बचाने के लिए जहां पर विशेष ध्यान देने की आवश्यकता है, वह है हिमाचल के ग्रामीण मंदिर। प्रदेश के ग्रामीण मंदिरों की व्यवस्था इतनी चिंताजनक है, यदि सरकार एवं जागरूक समाज द्वारा इस ओर विशेष ध्यान नहीं दिया गया तो हिमाचल की सदियों पुरानी देव संस्कृति की जानकारी आने वाली पीढि़यों को इतिहास की पुस्तकों में मिलेगी। हिमाचल के ग्रामीण देवी-देवता करोड़ों की संपत्ति के मालिक हैं। इन ग्रामीण मंदिरों में करोड़ों की संपत्ति की व्यवस्था का जिम्मा कुछ परिवार पुश्तैनी आधार पर संभालते हैं, जिसमें पारदर्शिता का पूरी तरह अभाव होता है। सरकार को चाहिए कि इन मंदिर कमेटियों को अपनी नकदी एवं संपत्तियों में पारदर्शिता लाने हेतु प्रोत्साहित करें और यदि संभव हो तो स्थानीय स्तर पर खातों का ऑडिट किया जाना चाहिए। देव समाज के कारदारों एवं मंदिर कमेटियों को यह बात समझनी चाहिए। मंदिरों के खातों की पारदर्शिता जनता की देव समाज के प्रति आस्था को मजबूत करेगी। हिमाचल के देवी-देवता एक ओर तो करोड़ों की संपत्ति के मालिक हैं, तो दूसरी ओर अभी तक अधिकतर मंदिरों में बैंकों में नकदी रखने का प्रचलन नहीं है। सरकार एवं प्रशासन को चाहिए कि इन ग्रामीण मंदिर कमेटियों को अपनी नकदी बैंकों में रखने हेतु प्रोत्साहित करें, जिससे लोगों की आस्था के लाखों रुपए का उपयोग राष्ट्र के विकास में होगा और मंदिरों में होने वाली चोरियों एवं अग्निकांडों से भी संपत्तियों एवं नकदी की रक्षा हो पाएगी। इसके अलावा ग्रामीण मंदिरों में कई ऐसी दुर्लभ मूर्तियां, सिक्के एवं अन्य वस्तुएं हैं, जिसकी कीमत का अंदाजा शायद इन मंदिर कमेटियों एवं स्थानीय जनता को भी नहीं है, जिसके कारण ये मंदिर चोरों के निशाने पर रहते हैं। मंदिरों में आए दिन होने वाली चोरी की घटनाओं से करोड़ों की संपत्ति की लूट के साथ-साथ जनता की देव समाज के प्रति आस्था पर भी कुठाराघात होता है। सरकार एवं प्रशासन को चाहिए कि स्थानीय मंदिर कमेटियों के साथ मिलकर इन कीमती एवं दुर्लभ संपत्तियों की सुरक्षा की व्यवस्था करें। मंदिरों में सीसीटीवी कैमरे लगाए जाएं और संभव हो तो मंदिरों की सुरक्षा का जिम्मा होमगार्ड या अन्य किसी सुरक्षा एजेंसी को दिया जाए। हिमाचल के अधिकतर मंदिरों के पास फंडों की अधिकता है, परंतु इन मंदिर कमेटियों के पास इन फंडों को खर्च करने की कोई कारगर योजना नहीं होती, जिसके कारण लाखों रुपए व्यर्थ के आडंबरों पर खर्च कर लिए जाते हैं। मंदिर कमेटियों को चाहिए कि अपने कोष का उपयोग सामाजिक कार्यों एवं पिछड़े व गरीब लोगों के उत्थान पर खर्च करें। इससे न केवल लोगों की आस्था में वृद्धि होगी, अपितु धर्म का मूल उद्देश्य भी चरितार्थ होगा। हिमाचल की देव संस्कृति का हजारों वर्षों का गौरवमय इतिहास है, हमारी थोड़ी सी चूक इसके भविष्य पर संकट खड़ा कर सकती है। अतः इसके लिए गंभीर प्रयास किए जाने आवश्यक हैं, पर यह तभी संभव है यदि प्रशासन का सहयोग एवं जागरूक समाज का निरंतर प्रयास जारी रहे। प्रदेश के मंदिर आस्था और आर्थिकी का सामजस्य बिठाते हैं, तो इनके प्रति सब को अपनी जिम्मेदारी निभानी चाहिए।
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