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प्रतिस्पर्धी बने राज्यों का विकास प्रारूप
( प्रो. एनके सिंह लेखक, एयरपोर्ट अथॉरिटी ऑफ इंडिया के पूर्व चेयरमैन हैं )
कुछ नेता ऐसा दावा कर रहे हैं कि गुजरात में कोई विकास नहीं हुआ है, लेकिन उनकी बातें झूठी हैं। इकोनामिक टाइम्स ने आंकड़ो का विस्तृत परीक्षण करके यह बताया है कि सामाजिक क्षेत्र में भी राज्य का प्रदर्शन संतोषजनक है। यह विमर्श कि यह मॉडल दूसरे राज्यों के लिए अच्छा नहीं है और इसे हर जगह नहीं लागू किया जा सकता, पूरी तरह मिथ्या है। मानवतावाद, सुशासन और आर्थिक सुधार गुजरात के सबक हैं। पूरे भारत में इसका अनुगमन किया जाना चाहिए…
आजकल सभी लोगों की जुबान पर विकास शब्द है। लेकिन यह शब्द तेजी से अपना अर्थ खोता जा रहा है क्योंकि कुछ लोग धन के वितरण, बिजली आपूर्ति व्यवस्था की मरम्मत अथवा सरकारी योजनाओं के दुष्प्रचार को ही विकास का नाम दे देते हैं। मैं दलगत राजनीति का हिस्सा बने बगैर इस शब्द के चारों ओर छाए हुए कुहासे को दूर करने की कोशिश करना चाहूंगा। किसी नलकूप की मरम्मत करना विकास नहीं है। यह निश्चित रूप से ही एक सेवा है। लेकिन लोगों और उद्योगों को चौबीसों घंटे निर्बाध बिजली की आपूर्ति करना विकास है। सबसिडी देकर बिजली की दरों को कम कर देने को भी विकास नहीं माना जा सकता। स्वतंत्रता के बाद व्यक्तिगत और दलगत पूर्वाग्रहों के कारण गरीबी और बेरोजगारी को दूर करने के लिए भारत ने विकास के समाजवादी प्रारूप को अपनाया था। इस विकास प्रारूप के कारण राज्य का नियंत्रण बढ़ गया और लोग अपनी प्रत्येक चीज के लिए सरकार पर निर्भर हो गए। एक सीमित समयावधि तक लाइसेंस और कोटे पर आधारित यह प्रारूप चलता रहा, लेकिन इसके कारण आम लोगों को प्रतिस्पर्धी कीमत और गुणवत्ता के उत्पाद उपलब्ध नहीं हो पा रहे थे। हम टिन बॉक्स की तरह लगने वाली कारों पर लंबे समय तक चलते रहे और एक फोन कनेक्शन को प्राप्त करने के लिए सालों दौड़ लगाते थे। तथाकथित आत्मनिर्भरता की इस कोठरी ने हमें भारी उद्योग और बड़े बांध दिए, लेकिन यह गरीबी को नहीं घटा सका और न ही अमीरी को बढ़ा सका। भारत हिंदू वृद्धि की दर से आगे बढ़ता रहा और इस मार्ग के अंतिम छोर पर भारत को अपना घाटा कम करने के लिए सोने के भंडार को गिरवी रखना पड़ा। इस समयावधि में पूरी दुनिया में भारी बदलाव आ चुका था। ब्रिटेन, जिसे हम अपना संदर्भ बिंदु मानते थे, में भी थैचर ने निजी सहभागिता के जरिए उदारवादी अर्थव्यवस्था का नया प्रारूप गढ़ने हेतु निजीकरण को बढ़ावा दिया। इसके कारण निजी उद्यमशीलता के सामूहिक प्रयासों से विकास का मार्ग प्रशस्त हुआ। मुक्त प्रतिस्पर्धा और व्यापार तथा उद्योग की सृजनात्मक वृद्धि इस प्रारूप का सार था। बीसवीं सदी के अंतिम दशक में नरसिम्हा राव ने उदारीकरण को बढ़ावा दिया और सरकारी नियंत्रण को सीमित किया। इसका श्रेय मनमोहन सिंह अथवा नरसिम्हा राव को नहीं दिया जा सकता क्योंकि उस समय आर्थिक स्वतंत्रता और प्रतिस्पर्धा की वैश्विक बयार बह रही थी और उससे बच पाना मुश्किल था। इसके कारण सोवियत संघ और अन्य देशों में समाजवाद का किला ढह गया। म्यांमार जैसे जिन देशों ने इस बहाव का हिस्सा बनना स्वीकार नहीं किया, वे अब भी विकास की आदिम और स्तब्धकारी दशा में बने हुए हैं। भारत ने कुछ सीमाओं के साथ खुली अर्थव्यवस्था को स्वीकार किया और अमरीका की तरह विशुद्ध पूंजीवादी मार्ग को स्वीकार नहीं किया। यह एक तरह से साम्यवाद ही था जिसे भौतिक वस्तुओं की प्राप्ति के लिए अपनाया गया था और जब डांवांडोल स्थिति वाले वित्तीय संस्थानों को अमरीका ने सहायता पहुंचाने की कोशिश की तो यह उसके लिए भी विनाशक साबित हुई। यह विशुद्ध पूंजीवाद का उदाहरण नहीं था। हमारे अर्द्ध-संघात्मक ढांचे में राज्यों को भी अपनी शैली में उदारवाद को बढ़ाने के रास्ते उपलब्ध हैं। पश्चिम बंगाल लंबे समय तक समाजवाद से चिपका रहा और इसी कारण विकास में पिछड़ गया। पिछले दस वर्षों में महाराष्ट्र और तमिलनाडु ने भी निवेश को आकर्षित किया है और विकास को गति प्रदान की है। सन् 2000 कर्नाटक के लिए बहुत लाभकारी साबित हुआ क्योंकि दो अंकों वाले वर्षों को रातोंरात चार अंक वाले वर्ष में बदलने के हजारों सॉफ्टवेयर इंजीनियरों की आवश्यकता पड़ी। इस क्रांति के कारण रोजगार के अवसर पैदा हुए और इन्फोसिस, विप्रो और टीसीएस जैसी विशालकाय कंपनियां, जो पूरी दुनिया में तेज सेवा देने के लिए जानी जाती हैं, का उद्भव हुआ। नरेंद्र मोदी ने पिछले दस वर्षों में निजी क्षेत्र में औद्योगिक निवेश को आकर्षित करके तथा अवसंरचना और कृषि विकास में उल्लेखनीय विकास करके गुजरात का कायाकल्प कर दिया है। सुशासन और पारदर्शिता को ध्येय मानने वाले यहां के नेतृत्व ने गुजरात को प्रमुख स्थान पर पहुंचा दिया है। राज्य में चौबीसों घंटे बिजली की निर्बाध आपूर्ति, रेगिस्तानों को भी पर्यटन स्थल के रूप में तबदील कर देना और अवसरंचना विकास जैसी उनकी उपलब्धियों के बारे में लोग जानते हैं। लेकिन उनकी सबसे बड़ी उपलब्धि कृषि क्षेत्र में है। 2000 में इसकी विकास दर 2.3 प्रतिशत थी, जो अब बढ़कर 9.8 प्रतिशत हो गई है। 54 प्रतिशत लोगों को रोजगार देने वाले इस क्षेत्र में यह उल्लेखनीय विकास हुआ है। गुजरात इस क्षेत्र में 3.3 प्रतिशत की औसत विकास दर के साथ शीर्ष पर है। उत्तर प्रदेश, बिहार और तमिलनाडु की यह विकास दर 3.3 प्रतिशत है। कुछ नेता ऐसा दावा कर रहे हैं कि गुजरात में कोई विकास नहीं हुआ है, लेकिन उनकी बातें झूठी हैं। इकोनामिक टाइम्स ने आंकड़ो का विस्तृत परीक्षण करके यह बताया है कि सामाजिक क्षेत्र में भी राज्य का प्रदर्शन संतोषजनक है। यह विमर्श कि यह मॉडल दूसरे राज्यों के लिए अच्छा नहीं है और इसे हर जगह नहीं लागू किया जा सकता, पूरी तरह मिथ्या है। मानवतावाद, सुशासन और आर्थिक सुधार गुजरात के सबक हैं। पूरे भारत में इसका अनुगमन किया जाना चाहिए। हमें सभी पार्टियों द्वारा समर्थित रेवड़ी बांटने के दृष्टिकोण को छोड़कर नरेंद्र मोदी के अपेक्षाकृत सकारात्मक विकास मॉडल को स्वीकार करना होगा।
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