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दरकाली में देवताओं की फेर
रामपुर बुशहर — दुर्गम पंचायत दरकाली के मराला गांव में फेर का आयोजन किया गया। यह फेर देवता साहिब लक्ष्मी नारायण व दोगणु देवता की अगवाई में संपन्न हुआ। दोगणु देवता का जन्म स्थान मराला के मरालू परिवार में वर्षों पहले हुआ था। यहां से दोगणु देवता वर्षों पहले निकल गए, जिसके बाद लालसा में उनका स्थायी स्थान बना, जिसके बाद ग्रामीणों ने लालसा में दोगणु देवता मंदिर का निर्माण किया, जिसके बाद समय-समय पर दोगणु देवता अपने जन्म स्थान पर आते रहते हैं, लेकिन इस बार काफी समय के बाद उनका मराला गांव आना हुआ है। शुक्रवार को दोगणु देवता दरकाली मंदिर पहुंचे, जहां पर लक्ष्मी नारायण देवता ने उनका स्वागत किया। इसके बाद दोनों देवता मराला गांव के लिए निकले। शुक्रवार देर शाम मराला गांव में दोनों देवताओं को जोरदार स्वागत किया गया। यहां पर देर रात तक देव मिलन व नाच-गान चलता रहा। इसके बाद रविवार सुबह करीब सात बजे से शुरू हुआ फेर का क्रम दोपहर तक चला। सबसे पहले दोगणु देवता के जन्म स्थान पर पूजा अर्जना की गई। करीब एक घंटे तक चली पूजा के बाद दोगणु देवता और लक्ष्मी नारायण देवता फेर के लिए निकले। दोनों देवताओं के साथ सैकड़ों की तादाद में देवलु मौजूद रहे। सभी ने हाथ में बंदूकें व अन्य हथियार उठा रखे थे। साथ ही सभी नाचते-गाते फेर के लिए निकले। दोनों देवताओं ने पूरे मराला गांव की प्रक्रिमा की, जिसके बाद फिर से दोनों देवता वहीं पर पहुंचे जहां से फेर शुरू हुआ था। इस पूरे कार्यक्रम को देखने के लिए बड़ी संख्या में महिलाएं भी मौजूद रहीं। मराला गांव के बुजुर्गों का कहना है कि इस तरह का फेर काफी वर्षों पहले आयोजित हुआ था, जब वह भी बच्चे थे, जिसके बाद अब मराला गांव में फेर आयोजित हुआ। फेर की मंदिर पहुंचने के बाद शिखा फेर आयोजित हुआ। इस दौरान मंदिर की छत पर आधा दर्जन पंडित बैठे ओर उन्होंने मंदिर की पूजा की। बड़ी संख्या में ग्रामीण इस शिखा फेर के साक्षी बने। करीब एक घंटे तक तक चले इस शिखा फेर में जहां मंदिर की छत पर मंत्रोच्चारण का क्रम चला, वहीं मंदिर प्रांगण में दोनों देवताओं ने इस शिखा फेर को सफल बनाने के लिए अपनी उपस्थिति दर्शाई। सुबह जब फेर शुरू हुआ तो देवताओं के साथ आए पुजारियों ने अपने अपने मुंह के आर-पार लोहे की छड़ डाल दी। इसे देखकर हर कोई हैरान था। इन पुजारियों ने करीब छह घंटे तक इस लोहे की छड़ को अपने मुंह में रखा, जिसके बाद मंदिर पहुंचने पर सभी पुजारियों ने इन बामंणो को देवता के समक्ष निकाला।
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