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पत्रकारिता के प्रथम पुरुष हैं देवर्षि नारद
देवर्षि सूचनाओं का उपयोग लोककल्याण को सुनिश्चित करने के लिए करते हैं। वह सूचनाओं के बेहतरीन प्रबंधक हैं और इस बात को अच्छी तरह जानते हैं कि किसी सूचना को सम्प्रेषित करने का सबसे उचित समय क्या है? वह सूचनाओं का उल्लेख ऐसे प्रसंगो और संदर्भों में करते हैं जो उनको मनोवांछित निष्कर्ष देने में सक्षम हों। हिंदू शास्त्रों के अनुसार नारद को ब्रह्मा के मानस पुत्रों में से एक माना जाता है। ये भगवान विष्णु के अनन्य भक्तों में से एक माने जाते है। ये स्वयं वैष्णव हैं और वैष्णवों के परमाचार्य तथा मार्गदर्शक हैं। ये प्रत्येक युग में भगवान की भक्ति और उनकी महिमा का विस्तार करते हुए लोक-कल्याण के लिए सर्वदा सर्वत्र विचरण किया करते हैं। भक्ति तथा संकीर्तन के ये आद्य-आचार्य हैं। इनकी वीणा भगवन जप ‘महती’ के नाम से विख्यात है। उससे ‘नारायण-नारायण’ की ध्वनि निकलती रहती हैं…
देवर्षि नारद की पहचान एक भक्त के साथ-साथ एक लोकहितकारी सम्प्रेषक के रूप में भी है। देवर्षि सूचनाओं का उपयोग लोककल्याण को सुनिश्चित करने के लिए करते हैं। वह सूचनाओं के बेहतरीन प्रबंधक हैं और इस बात को अच्छी तरह जानते हैं कि किसी सूचना को सम्प्रेषित करने का सबसे उचित समय क्या है? वह सूचनाओं का उल्लेख ऐसे प्रसंगो और संदर्भों में करते हैं जो उनको मनोवांछित निष्कर्ष देने में सक्षम हों। हिंदू शास्त्रों के अनुसार नारद को ब्रह्मा के मानस पुत्रों में से एक माना जाता है। ये भगवान विष्णु के अनन्य भक्तों में से एक माने जाते है। ये स्वयं वैष्णव हैं और वैष्णवों के परमाचार्य तथा मार्गदर्शक हैं। ये प्रत्येक युग में भगवान की भक्ति और उनकी महिमा का विस्तार करते हुए लोक-कल्याण के लिए सर्वदा सर्वत्र विचरण किया करते हैं। भक्ति तथा संकीर्तन के ये आद्य-आचार्य हैं। इनकी वीणा भगवन जप ‘महती’ के नाम से विख्यात है। उससे ‘नारायण-नारायण’ की ध्वनि निकलती रहती है। इनकी गति अव्याहत है। ये ब्रह्म-मुहूर्त में सभी जीवों की गति देखते हैं और अजर-अमर हैं। भगवद-भक्ति की स्थापना तथा प्रचार के लिए ही इनका आविर्भाव हुआ है। उन्होंने कठिन तपस्या से ब्रह्मर्षि पद प्राप्त किया है। देवर्षि नारद धर्म के प्रचार तथा लोक-कल्याण हेतु सदैव प्रयत्नशील रहते हैं। इसी कारण सभी युगों में, सब लोकों में, समस्त विद्याओं में, समाज के सभी वर्गो में नारदजी का सदा से प्रवेश रहा है। मात्र देवताओं ने ही नहीं, वरन् दानवों ने भी उन्हें सदैव आदर दिया है। समय-समय पर सभी ने उनसे परामर्श लिया है।
नारद के कार्य
* भृगु कन्या लक्ष्मी का विवाह विष्णु के साथ करवाया।
* इंद्र को समझा बुझाकर उर्वशी का पुरुरवा के साथ परिणय सूत्र कराया।
* महादेव द्वारा जलंधर का विनाश करवाया।
* कंस को आकाशवाणी का अर्थ समझाया ।
* वाल्मीकि को रामायण की रचना करने की प्रेरणा दी।
* व्यास जी से भागवत की रचना करवायी।
* प्रह्लाद और ध्रुव को उपदेश देकर महान भक्त बनाया।
* बृहस्पति और शुकदेव जैसों को उपदेश दिया और उनकी शंकाओं का समाधान किया।
* इंद्र, चंद्र, विष्णु, शंकर, युधिष्ठिर, राम, कृष्ण आदि को उपदेश देकर कर्तव्याभिमुख किया।
देवर्षि नारद व्यास, वाल्मीकि तथा महाज्ञानी शुकदेव आदि के गुरु हैं। श्रीमद्भागवत, जो भक्ति, ज्ञान एवं वैराग्य का परमोपदेशक ग्रंथ-रत्न है तथा रामायण, जो मर्यादा-पुरुषोत्तम भगवान श्रीराम के पावन, आदर्श चरित्र से परिपूर्ण है, देवर्षि नारदजी की कृपा से ही हमें प्राप्त हो सकें हैं। इन्होंने ही प्रह्लाद, ध्रुव, राजा अम्बरीष आदि महान भक्तों को भक्ति मार्ग में प्रवृत्त किया। ये भागवत धर्म के परम-गूढ़ रहस्य को जानने वाले- ब्रह्मा, शंकर, सनत्कुमार, महर्षि कपिल, स्वयंभुव मनु आदि बारह आचार्यों में अन्यतम हैं।
नारद का व्यक्तित्व
नारद श्रुति – स्मृति, इतिहास, पुराण, व्याकरण, वेदांग, संगीत, खगोल-भूगोल, ज्योतिष, योग आदि अनेक शास्त्रों में पारंगत थे। नारद आत्मज्ञानी, नैष्ठिक ब्रह्मचारी, त्रिकालज्ञानी, वीणा द्वारा निरंतर प्रभु भक्ति के प्रचारक, दक्ष, मेधावी, निर्भय, विनयशील, जितेन्द्रिय, सत्यवादी, स्थितप्रज्ञ, तपस्वी, चारों पुरुषार्थ के ज्ञाता, परमयोगी, सूर्य के समान, त्रिलोकी पर्यटक, वायु के समान , वश में किए हुए मन वाले नीतिज्ञ, अप्रमादी,देव, मनुष्य, राक्षस सभी लोकों में सम्मान पाने वाले हैं।
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