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सांस्कृतिक विरासत के प्रतीक हैं मेले
chavinder sharma
इसमें संदेह नहीं है कि जीवन में समृद्धि के जिस संदेश को प्रचार-प्रसार से भी हम दूसरे तक पहुंचाने में असमर्थ रहते हैं, उसी प्यार और समृद्धि का संदेश हम अपने सांस्कृतिक स्थानीय मेलों के जरिए बड़ी आसानी से दूसरे तक पहुंचा सकते हैं…
देवभूमि हिमाचल की वादियां अपने सौंदर्य आकर्षण के लिए तो विश्व विख्यात हैं ही, इसके साथ-साथ इसे मंदिरों व शक्तिपीठों की स्थली के रूप में भी प्रसिद्धि प्राप्त है। प्रदेश में वर्ष भर सैलानियों का आवागमन निरंतर जारी रहता है। नवरात्र, त्योहारों व मेलों में उमड़ता जन सैलाब यहां के पर्वों को चार चांद लगा देता है। पहाड़ी इलाकों में पर्वों की धूमधाम व मेलों का आगाज यहां प्रदेश की सांस्कृतिक विरासत से रू-ब-रू करवाता है। प्रदेश की सांस्कृतिक विरासत को बहुत हद तक मेलों व त्योहारों में निहित देखा जा सकता है, जहां पर हिमाचली पहनावे से लेकर परंपरागत वस्तुओं व पकवानों का दीदार हो जाता है। प्रदेश के अलग-अलग जिलों में मेलों व त्योहारों का महत्त्व स्थानीय घटना व इलाके विशेष की खासियत का पदार्पण करता है। जीवन मूल्यों की विशेष झलक से व्यक्ति सराबोर हो जाता है व आस्था की निर्मल धारा का विकास इन्हीं मेलों व त्योहारों से व्यक्ति ग्रहण करता है। आज विकास की धारा में जो क्रांतिकारी परिवर्तन आया है, उसके दर्शन इन विशेष आयोजनों में हमारे जीवन में बदलाव की स्थिति लाते हैं। परिवर्तन की इस अमिट धारा में आगाज पर इन मेलों में एक खासा आकर्षण पैदा हुआ है। उकताहट भरी जीवन की दौड़ में ये मेले व त्योहार एक हलका सा विराम लगाकर व्यक्ति को अपने में संजोने का प्रयत्न करते हैं। इन मेलों में हास्य मिश्रित कोलाहल व टमक की थाप और नगाड़ों के कंपन का मिला जुला असर हमारे अंग प्रत्यंग में सौम्य सिहरन और रोचकता का आभास करवाता है। वर्तमान समय में जिस तरह हम इंटरनेट, टीवी की वजह से अपने घरों तक ही सिमट कर रह गए हैं, ऐसे में मेलों का आगाज व हलचल से उत्पन्न कौतुहल हमें अवश्य रोचकता प्रदान करता है और यही रोचकता हमारे अंग प्रत्यंग में एक अद्भुत निखार की लहर पैदा कर जाती है। इन मेलों में संस्कृति के आदान-प्रदान हेतु बाहरी राज्यों से पर्यटकों व सैलानियों का आना-जाना बदस्तूर जारी रहता है। अधिकतर सैलानी वादियों की सुंदरता के साथ-साथ यहां पर्वों व मेलों में शिरकत करने के उद्देश्य से आते हैं, कुछेक व्यापारी, कारोबार की दृष्टि से भी यहां पदार्पण करते हैं। सैलानियों या व्यापारियों का उद्देश्य कुछ भी हो, परंतु बदले में हिमाचली झलक का अनुपम सौंदर्य भोलापन और पहाड़ी भाषा के माधुर्य को अपने में समाहित कर लोट-पोट हो जाते हैं। जहां इन मेलों व त्योहारों से हमें जीवन के असंख्य परिदृश्यों का अमिट साक्षात्कार होता है, वहीं हमें कई अनोखे एहसास सदा के लिए ओत-प्रोत कर जाते हैं। जहां मेलों में अन्य चीजों का आकर्षण होता है, वहीं दंगल का आयोजन मेले में अलग से भीड़ को आकर्षित कर जाता है। कुछ लूटपाट व ठगी में संलिप्त मेलों के स्वच्छ वातारण को कलुषित कर देते हैं तथा मेलों के औचित्य पर प्रश्न चिन्ह लगा देते हैं। मनचलों की युवतियों से छेड़छाड़ का उपक्रम भी इन मेलोें में दृष्टिगत हो जाता है, जिससे हमारी देवभूमि शर्मसार हो जाती है। मेलों के आनंद को भंग करने वालों के लिए पुलिस चौकी तो होती है, परंतु कभी-कभी अधिक भीड़ में उमड़ते जन सैलाब के कारण पुख्ता इंतजाम भी धरे के धरे रह जाते हैं, ऐसे में अधिक बलों व ज्यादा चौकसी की जरूरत है। हमें मेलों की समृद्धि से अपनी समृद्ध संस्कृति का प्रचार-प्रसार करने के लिए तत्पर रहना चाहिए। हमारे प्रदेश में वर्ष भर कहीं न कहीं मेलों का जमावड़ा बच्चों की खुशनुमा चहचहाहट, बांसुरियों की धुन के सुरीले स्वर व मिष्ठानों की खुशबू का नशा मदमस्त करता रहता है। इसमें संदेह नहीं है कि जीवन में समृद्धि के जिस संदेश को प्रचार-प्रसार से भी हम दूसरे तक पहुंचाने में असमर्थ रहते हैं, उसी प्यार और समृद्धि का संदेश हम अपने सांस्कृतिक स्थानीय मेलों के जरिए बड़ी आसानी से दूसरे तक पहुंचा सकते हैं। आस्था के प्रतीक इन मेलों का हर किसी को बेसब्री से इंतजार करते रहते हैं, बच्चे भी वर्ष भर अपने स्थानीय मेले की अमुक तारीख को मन में संजोए रखते हैं। भले ही आज मेलों के लिए सिमट रही जगह की कमी आड़े आने लगी है, परंतु फिर भी व्यवस्था के चलते मेला कमेटियां थोड़ी जगह में ही रौनक और सौंदर्य प्रदान करने में सफल रही हैं। मेले हमारी सांस्कृतिक विरासत के प्रतीकात्मक स्वरूप हैं, जिन्हें हमें वर्तमान परिस्थितियों में और भी ज्यादा समृद्ध करने के लिए प्रयासरत रहने की आवश्कता है।
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