ANNITHISWEEK.BLOGSPOT.COM उत्तराखंड त्रासदी से हिमाचल भी सीखे
प्रथम
इस प्रदेश को देवभूमि का नाम इसलिए दिया गया है, क्योंकि इसमें कई दैवीय शक्तियों का वास है। उनके द्वारा दिए गए आशीर्वाद से इसकी संपदा, सुंदरता, पर्यावरण तथा प्राकृतिक स्रोतों का भंडार हमको मिला है। इसके गगनचुंबी पर्वतीय शिखर, कल-कल करती नदियां तथा हरे-भरे जंगल इसकी सुंदरता को चार चांद लगा देते हैं। प्रदेश की सुंदरता का लुत्फ उठाने के लिए पर्यटक अपना रुख इस देवभूमि की ओर करने पर विवश हो जाते हैं। आज उत्तराखंड में आई जल सुनामी ने हमें चेतावनी अवश्य दी है। इस प्रदेश के प्राकृतिक संसाधनों से जो छेड़छाड़ हो रही है, उसका हिसाब हमें एक न एक दिन चुकाना अवश्य पड़ सकता है। इसलिए अगर ऐसी आपदाओं से बचना है तो कुछ बातों का ध्यान रखना होगा। आज बन रही बहुमंजिली इमारतें इस धरती को कुरेद-कुरेद कर इसकी पकड़ को ढीली कर दे रही हैं, जिससे संभवतः कुछ समय पश्चात भू-स्खलन और चट्टानों के खिसकने की नौबत आना अनिवार्य है। नदियों और खड्डों के किनारे अवैध खनन और अतिक्रमण पर रोक न होने से हम ऐसी जल सुनामी को अवश्य ही न्योता दे रहे हैं। हजारों पेड़ काटकर हम पर्यावरण को असंतुलित करने पर तुले हुए हैं,जिससे जमीन का खिसकना और ग्लोबल वार्मिंग को आमंत्रित कर रहे हैं। इस पर रोक लगना अत्यंत आवश्यक है। प्रकृति को पूजने पर ही वह सहायक है,उससे छेड़छाड़ का नतीजा उत्तराखंड में देख ही चुके हैं। पर्यावरण की कीमत पर होने वाला विकास अंततःऐसी आपदाओं को ही जन्म देता है। हमको विकास को नए सिरे से परिभाषित करना होगा।
डीएस गुलेरिया योल, कांगड़ा
द्वितीय
गत दिवस उत्तराखंड में हुई त्रासदी हिमाचल प्रदेश के लिए चेतावनी बनकर सामने आई है। यह सबको विदित ही है कि हिमाचल के कांगड़ा में सन 1905 में आए भूकंप में हजारों लोगों को मौत का मुंह देखना पड़ा और हिमाचल प्रदेश का अधिकांश क्षेत्र भूकंप के डेंजर जोन में है। इस कारण हिमाचल प्रदेश अन्य राज्यों की अपेक्षा प्राकृतिक आपदाओं की दृष्टि से अधिक संवेदनशील है। अतएव हिमाचल प्रदेश सरकार को उत्तराखंड त्रासदी से सबक लेकर उक्त आशंकित भूकंप की त्रासदी से निपटने के लिए मॉक ड्रिल शहरों तक ही सीमित नहीं रखना चाहिए, बल्कि इसका प्रशिक्षण गांव स्तर तक कर प्रत्येक नागरिक के लिए जागरूकता का स्तर बढ़ाना होगा। इसके अतिरिक्त स्कूल व कालेज स्तर पर ‘आपदा प्रबंधन’ को वोकेशनल कोर्स में शामिल करना अधिक व्यावहारिक होगा। ऐसे प्रलय से निपटने के लिए विभिन्न एनजीओ को भी सचेत करना होगा। विशेषकर राज्य में बन रहे भवनों को भूकंपरोधी बनाना अनिवार्य किया जाना चाहिए और ऐसा न करना दंडनीय अपराध माना जाना चाहिए। सरकार को प्रत्येक आबादी वाले इलाकों में वर्षा व बाढ़ के पानी के बहाव की दिशा का आंकलन कर ‘विस्तृत ड्रेनेज प्रणाली’ लागू करना होगा। इसके अलावा किसी भी आपदा से निपटने के लिए प्रत्येक जिला में चयनित स्थानों पर हेलिपैड की सुविधा सुनिश्चित हो। प्रशिक्षित डाक्टरों, नर्सिज व अन्य टेक्किल स्टाफ की प्रत्येक अस्पतालों में भरपूर तैनाती हो, ताकि ऐसी आपदा में लोगों को चिकित्सकीय सहायता के लिए तरसना न पड़े। सावधानी पहले बरतेंगे तभी सुरक्षित हैं, वरना पश्चाताप तय है।
सुभाष शर्मा कनलोग, शिमला
तृतीय
‘दूध का जला छाछ भी फूंक फूंक कर पीता है’ परंतु इस कहावत पर हिमाचल सरकार अमल करती नजर नहीं आ रही है। आज हम सब जिस तरह से अपने स्वार्थ के लिए पर्यावरण के साथ खिलवाड़ करते जा रहे हैं, उसके चलते रोजाना विश्व भर में कितनी आपदाएं हो रही हैं, जिसमें प्राकृतिक और मानवीय संसाधनों का भरपूर नुकसान हो रहा है। इन घटनाओं के कारणों से हम सब भलीभांति परिचित हैं, परंतु फिर भी इसको सुधारने के लिए कोई प्रयत्न नहीं कर रहे हैं। आज वह वक्त आ चुका है, जब हम सबको मिलकर इस पर गहरा चिंतन करना होगा और जल्द से जल्द कोई समाधान निकालना होगा, ताकि हम इस सुंदर संसार और मानव जाति को नष्ट होने से बचा सकें। उत्तराखंड में जिस भयंकर हिमालयन सुनामी ने अपना कहर दिखाया है, उसके कारणों से हम सब परिचित हैं और वो दिन दूर नहीं, जब इन्हीं कारणों के चलते देवभूमि हिमाचल प्रदेश को भी ऐसी त्रासदी का सामना करना पड़ सकता है। हिमाचल इस तरह की घटना का पहले भी सामना कर चुका है। वर्ष 2010 में सतलुज नदी में आई बाढ़ से रामपुर-किन्नौर क्षेत्र को भारी जान-माल का नुकसान झेलना पड़ता था, परंतु उस घटना से किसी ने कुछ भी नहीं सीखा और आज उत्तराखंड में फिर वैसी ही घटना ने अपना कहर दिखाया। आज हमें इस घटना से सबक सीखना चाहिए और हिमाचल में ऐसा न हो उसके लिए सख्त से सख्त कदम उठाने चाहिए और प्रदेश में दिन-प्रतिदिन बढ़ रहे प्रोजेक्टों पर रोक लगानी चाहिए। अब तो यह हर कोई जान गया है कि प्रकृति से छेड़छाड़ महंगी ही पड़ती है।
डा. ज्योति शर्मा सोलन
No comments:
Post a Comment