शिव शक्ति मंदिर
शिव शक्ति मंदिर छतराड़ी की प्रसिद्ध जातरे जन्माष्टमी के पंद्रह दिन उपरांत राधाष्टमी वाले दिन होती है। राधाष्टमी के सात दिन पहले छतराड़ी गांव में बसे हुए शिवशक्ति के ब्लोड़ जो कि मंदिर में बाजे बजाने वाले लोग हैं, ढोल, पीतल की पौण ,माता का चिन्ह, बांसुरी भाण ,थाली ,छोटी सी ढोलक और तुरी वाद्ययंत्रों को बजाते हुए छतराड़ी से बहार के गांव की ओर निकल पड़ते है। जिस-जिस गांव में ब्लोड़ जाति है, वहां के ग्रामवासी पौऊल्ल, माता का चिंह पर लाल डोरी, फूलों का हार , गेहूं , मक्की की भेंट चढ़ा कर पूजा -अर्चना करते हैं। ब्लोड़ जाति के सदस्य सात दिन तक जमीन पर सोते हैं। बाल और दाड़ी नही कटवाते, हींग, मांस का सेवन नहीं करते। देवी की इस निमंत्रण सेवा के बदले आज भी ये लोग क्विंटल के हिसाब से अनाज और धन प्राप्त कर लेते है। इस दौरान बजने वाले ये सात वाद्य यंत्र अन्य अवसरों पर इकट्ठे नहीं बजाए जाते। इसके उपरांत मेला आरंभ हो जाता है। पहले दिन ब्लोड़ जाति की टोली बाउर नामक गांव में पहुंचती है। इस गांव के लोग एक मण,सोलह किलो टांड गेहूं की मोटी- मोटी घी लगी मीठी रोटियां, एक किल्टे में डाल कर ब्लोड़ जाति के साथ ऊंचे शिखर में स्थित गुणा नाग की और चलते है। रास्ते में टांड घोड़ी नामक चट्टान पर पहुंच कर शिखरों पर स्थित अन्य देवी देवताओं को वहीं से टांडे चड़ा दिए जाते है। टांड घोड़ी से थोड़ी दूर गुणआ नाग मंदिर है, वहां दोपहर के समय पहुंचते है, यहां पहुंच कर पूजा अर्चना करने के बाद देवताओं को चढ़ाए गए टांडों को मिल बांट कर दोपहर के भोजन के रूप में खा लिया जाता है। दूसरे दिन मरूर गांव मे घर -घर जा के माता शिवशक्ति के लिए भेंट प्राप्त की जाती है तथा शाम को प्यूहरा गांव में ठाकुरद्वारा मंदिर में जगराता होता है। तीसरे दिन रात को गाजे-बाजे के साथ ब्लोड़ सदस्य जगराते के लिए कुठेड आते है और यहां भी शिवमंदिर में चौथा दिन, व्रैनका, एकोडणु आदि गांव में घर-घर भेंट ली जाती है तथा रात को भनेर गांव में शिवमंदिर में ठहर जाता है। पांचवा दिन भनेर में भेंट ली जाती है फिर पांचवां जगराता मेडी नाग मंदिर में किया जाता है। छठा दिन मेडी गांव में भेंट ली जाती है। यह गांव देवी की उत्पति से पहले रसा- बसा हुआ था। इसका प्रमाण स्थानीय भाषा में इस गांव के नामकरण मेडी अर्थात पहला या मुखिया ही से हो जाता है। छठी रात को चामुंडा मंदिर पारोली में भी जगराता होता था अब केवल थोड़ी देर के लिए बाजे बजाए जाते है। सातवां दिन अंतिम निमंत्रण छतराड़ी गांव को दिया जाता है तथा माता शिव शक्ति मंदिर के प्रांगण में जगराता होता है। जब ब्लोड़ पर हमला किया गया तो इस पर कारधार ने अपनी आत्मसुरक्षा के लिए पौऊल्ल माता का चिंह को आगे कर दिया फर से गल्दाह का प्रहार होते ही पौण माता का चिंह कट गया और उसे खून की धारा बह निकली। सभी लोग भयभीत हो गए तांबे और चमड़े से ढकी हुई पौण से आखिर खून कैसे निकला। इस प्रहार को देवी प्रहार माना गया और ब्लोड़ जाति ने सात दिन की निमंत्रण अवधि में इस जाति को निमंत्रण देना बंद कर दिया। मेले शिव और शक्ति के नाम से होते हैं। मेलों का स्रोत पुराण है शिव और शक्ति की गाथा को जीवित रखने के लिए लोगों द्वारा यह मेले आरंभ किए गए। जन्माष्टमी के पंद्रह दिन बाद राधाष्टमी वाले दिन जातरे होती है। राधाष्टमी से एक दिन पहले मंदिर के कुछ पुजारी मणिमहेश में स्नान करते है तथा वहां के पवित्र जल को लाया जाता है । उस पानी से मंदिर में रखे सभी देवी -देवताओं को राधाष्टमी के दिन स्नान करवाया जाता है। मेले शुरू होने से पहले शिव की मूर्ति जो माता शक्ति के साथ विराजमान है उसे पालकी में बिठा कर झांकी निकाली जाती है। इस पालकी को पुजारी कंधा देते है, उसके कुछ समय बाद पुरुष वर्ग की टोली राक्षसों के मुखौटे पहन करके झांकी निकालती है। इस टोली में एक पुरुष राक्षसी का रूप धारण करता है जिसे चंद्रोली कहा जाता है। शोभा यात्रा को देखने दूर दराज से आए लोग जोर जोर से हल्ला गुल्ला करके चंद्रोली को छेड़ते हैं।
- शैलेजा शर्मा
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