Sunday, 23 February 2014

Haripurdhar ki devi mata Bhangyani

मां भंगयाणी मंदिर, हरिपुरधार

हरिपुरधार का असली आकर्षण है मुख्य बाजार से दो किमी दूर शक्तिशालिनी देवी भंगयाणी माता का मंदिर। लगभग 140 सीढ़ी चढ़ कर आप मंदिर के प्रांगण में पहुंचते हैं…
जिला सिरमौर के हरिपुरधार में स्थित मां भंगयाणी मंदिर समुद्रतल से आठ हजार की ऊंचाई पर बना है। यह मंदिर उत्तरी भारत का प्रसिद्ध मंदिर है। यह मंदिर कई दशकों से श्रद्धालुओं की आस्था का केंद्र बना हुआ है। वैसे तो यहां वर्ष भर भक्तों का आगमन रहता है, परंतु नवरात्रों और संक्रांति में भक्तों की ज्यादा श्रद्धा रहती है। इसका पौराणिक इतिहास श्रीगुल महादेव की दिल्ली यात्रा से जुड़ा है। वैसे तो हरिपुरधार जाने के चार रास्ते हैं। पहले संगड़ाह 26 किमी जाना होता है, यहां तक सड़क की हालत इतनी अच्छी नहीं रहती, सड़क पर ट्रैफिक ज्यादा नहीं होता है। बर्फीली पहाड़ी रास्तों की ऊंचाइयों पर फैली हरियाली जैसे आपको ही साथ ले लेती है। गहरी खाइयां, विभिन्न किस्म के वृक्ष, पक्षियों की चहचहाट, आकर्षक पत्थरों व नीले आसमान के सान्निध्य में थोड़ी देर रूक कर लगता है ऐसा सकून फिर कहां मिलेगा। बुरांश, कैल, देवदार के दरख्तों की साफ. सुथरी, स्वास्थ्वर्धक हवा को जीवनसात करते हुए आप हरिपुरधार पहुंचते हैं। यहां एक छोटा पहाड़ी कस्बा है। ठहरने और खाने-पीने की बेहतर व्यवस्था यहां है। हरिपुरधार का असली आकर्षण मुख्य बाजार से दो किमी दूर शक्तिशालिनी देवी भंगयाणी माता का मंदिर है। लगभग 140 सीढ़ी चढ़कर आप मंदिर के प्रांगण में पहुंचते हैं। ऊंचाई होने के कारण ठंड का भी अहसास होने लगता है। हरिपुरधार शिमला से भी ज्यादा ऊंचाई पर है। दक्षिणी हिमाचल की सबसे ऊंची चोटी चूढ़धार यहां से दिखती है। आठ घंटे ट्रेकिंग कर वहां पहुंचा जा सकता है। यह स्थल भगवान शिव की तपस्थली व उनके बारह निवासों में से एक मानी जाती है। लोक कथाओं में प्रचलित शिरगुल महादेव की वीरगाथा के अनुसार जब वह सैकड़ो हाटियों, हाट लगाने वाले के दल के साथ दिल्ली गए, तो उनकी दिव्य शक्ति युक्त लीला से दिल्ली वाले आश्चर्यचकित रह गए। जहां तत्कालीन शासक ने उन्हें उनकी दिव्यशक्तियों के कारण चमडे़ की बेडि़यों में बांध बंदी बना लिया था और दरबार में कार्यरत माता भंगयाणी ने श्रीगुल को आजाद करने में सहायता की थी। इस कारण श्रीगुल ने माता भंगयाणी को अपनी धर्म बहन बनाया और हरिपुरधार में स्थान प्रदान कर सर्वशक्तिमान का वरदान दिया। आपार प्राकृतिक सुंदरता के मध्य बना यह मंदिर आस्था का प्रमुख स्थल है। हरिपुरधार शिमला से वाया सोलन, राजगढ़ एक सौ पचास किलोमीटर दूर है, जबकि चंडीगढ़ से 175 किलोमीटर है। हरिपुरधार के लिए देहरादून से भी यात्रा की जा सकती है।

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