सर्पदंश के भय से मुक्त कराती हैं नागिनी माता
कांगड़ा जिला की वर्ष भर मनाए जाने वाले असंख्य मेलों की श्रृंखला में सबसे लंबे समय अर्थात् दो मास तक मनाए जाने वाला प्रदेश का एक मात्र ‘मेला नागिनी माता’ है। यह मेला प्रति वर्ष श्रावण एवं भाद्रपद मास के प्रत्येक शनिवार को नागिनी माता के मंदिर, कोढ़ी-टीका में परंपरागत श्रद्धा एवं हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है। लोगों की मान्यता है कि मेले में नागिनी माता का आशीर्वाद प्राप्त करने से सांप इत्यादि विषैले कीड़ों के दंश का भय नहीं रहता है। नागिनी माता का प्राचीन एवं ऐतिहासिक मंदिर नूरपुर से लगभग 10 किलोमीटर दूर गांव भडवार के समीप कोढ़ी-टीका गांव में स्थित है। नागिनी माता जोकि मनसा माता का रूप मानी जाती है, के नाम पर हर वर्ष श्रावण एवं भाद्रपद मास में मेले लगते हैं। इन दोनों मास के दौरान इस वर्ष पड़ने वाले कुल नौ शनिवार मेले 20 जुलाई से 14 सितंबर, तक मनाए जा रहे है और इन मेलों की श्रृंखला में 3 अगस्त शनिवार को जिला स्तरीय मेले के रूप में मनाया जा रहा है। इस मंदिर के इतिहास बारे कई जनश्रुतियां प्रचलित हैं। मंदिर को लेकर जो भी दंतकथाएं हो, सत्यता जो भी हो, परंतु लोग श्रद्धाभाव से जहरीले जीवों, कीटों तथा सर्पदंश के इलाज के लिए आज भी बड़ी संख्या में इस मंदिर में पहुंचते हैं। मंदिर की स्थापना को लेकर प्रचलित एक दंतकथा के अनुसार वर्तमान में कोढ़ी टीका में स्थित माता नागिनी मंदिर पहले घने जंगलों से घिरा हुआ स्थान हुआ करता था। बताया जाता है कि इस जंगल में कोढ़ से ग्रसित एक वृद्ध रहा करता था और कु ष्ठ रोग से मुक्ति के लिए भगवान से निरंतर प्रार्थना करता था। उसकी साधना सफल होने पर उसे नागिनी माता के दर्शन हुए तथा उसे नाले में दूध की धारा बहती दिखाई दी। स्वप्न टूटने पर उसने दूध की धारा वास्तविक रूप में बहती देखी जोकि वर्तमान में मंदिर के साथ बहते नाले के रूप में है। माता के निर्देशानुसार उसने अपने शरीर पर मिट्टी सहित दूध का लेप किया और वह कोढ़ मुक्त हो गया। आज भी यह परिवार माता की सेवा करता है और माना जाता है कि उसके परिवार को माता की दिव्य शक्तियां प्राप्त हैं। इसी तरह एक अन्य कथा के अनुसार एक नामी सपेरे ने मंदिर में आकर धोखे से नागिनी माता को अपने पिटारे में डालकर बंदी बना लिया। नागिनी माता ने क्षेत्रीय राजा को दर्शन देकर अपनी मुक्ति के लिए प्रार्थना की। वह सपेरा कंडवाल के पास आकर जैसे ही इस स्थल पर रुका तो राजा ने नागिनी माता को सपेरे से मुक्त करवाया। तब से इस स्थल को विषमुक्त होने की मान्यता मिली और सर्पदंश से पीडि़त लोग अपने इलाज के लिए यहां आने लगे। मंदिर के पुजारी के अनुसार माता कई बार सुनहरी रंग के सर्परूप में मंदिर परिसर में दर्शन देती है, जिसे देखकर बड़े आनंद की अनुभूति होती है । जिला स्तरीय मेला घोषित होने के उपरांत उपमंडलाधिकारी नूरपुर की अध्यक्षता में मंदिर प्रबंधन समिति का गठन किया गया है, जिसके माध्यम से मंदिर के विशाल भवन के निर्माण के अतिरिक्त श्रद्धालुओं एवं सांप से पीडि़त व्यक्तियों के ठहरने हेतु धर्मशालाएं तथा एक सामुदायिक भवन का निर्माण करवाया गया है। श्रद्धालु माता के मंदिर की मिट्टी ‘जिसे शक्कर कहा जाता है’ को बड़ी श्रद्धा व विश्वास के साथ घर ले जाते हैं ताकि घर में सांप तथा अन्य विषैले जंतुओं के प्रवेश का भय न रहे। इसके अलावा इस मिट्टी का उपयोग चर्म रोग के लिए औषधि के रूप में भी किया जाता है। मेले के दौरान श्रद्धालु नागिनी माता को दूध, खीर, फल इत्यादि व्यंजन अर्पित करके इसकी पूजा अराधना करते है।
बाबू राम चौहान, धर्मशाला
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