Sunday, 23 February 2014

Devi Jayanti Kangra

भक्तों की मनोकामना पूर्ण करती है जयंती माता

कांगड़ा के साथ लगती पहाड़ी पर स्थित जयंती माता का मंदिर काफी प्राचीन है। जयंती माता मंदिर में हर वर्ष पंचभीष्म मेले लगते हैं। यह मेले हर साल कार्तिक मास की एकादशी से शुरू होते हैं। इस दौरान तुलसी को गमले में लगाकर उसे घर के  भीतर रखा जाता है और चारों ओर केले के पत्र लगाकर दीपक जलाया जाता है  …
कांगड़ा किला के बिल्कुल सामने 500 फुट की ऊंची पहाड़ी पर स्थित जयंती मां दुर्गा की छठी भुजा का एक रूप है। द्वापर युग में यह मंदिर यहां पर निर्मित हुआ था। जयंती मां जहां जीत का प्रतीक है, तो वहीं वह पाप नाशिनी भी हैं। शक्तिपीठ माता बज्रेश्वरी देवी मंदिर से करीब छः किलोमीटर दूर पहाड़ी पर स्थित जयंती माता का मंदिर भक्तों के लिए महत्वपूर्ण आस्था स्थली तो है ही, यह रोमांचक सफर का आनंद भी देता है। पुराना कांगड़ा के साथ लगती पहाड़ी पर स्थित जयंती माता का मंदिर काफी प्राचीन है। जयंती माता मंदिर में हर वर्ष पंचभीष्म मेले लगते हैं। पांच दिनों तक चलने वाले इस मेले में हजारों श्रद्धालु माता के चरणों में शीश नवाते हैं। कांगड़ा के आसपास के क्षेत्रों के साथ अन्य प्रदेशों के लोगों में भी जयंती माता के प्रति काफी आस्था है। बताया जाता है कि मंदिर के इतिहास से कांगड़ा का भी इतिहास जुड़ा है। पौराणिक कथाओं के अनुसार यहां पर पांडवों का भी वास कुछ समय तक रहा है। मंदिर में हर वर्ष पंचभीष्म मेलों का भी विशेष महत्व है। पंचभीष्म मेलों के दौरान इस क्षेत्र का नजारा ही कुछ और होता है। मंदिर में पांच दिनों तक चलने वाले इन मेलों में कांगड़ा ही नहीं बल्कि दूर दराज के क्षेत्रों से भी लाखों की संख्या में लोग यहां पर मां के दर्शनों के लिए उमड़ते हैं। बीते वक्त के साथ-साथ यहां पर बेहतर रास्ते का निर्माण भी करवाया गया है और अन्य सुविधाएं भी लोगों को उपलब्ध करवाई जाती हैं। कार्तिक मास की एकादशी में पंचभीष्म का पर्व विशेषकर महिलाओं के लिए खास है। महिलाएं पांच दिन तक व्रत रखती हैं और मात्र फलाहार पर ही निर्भर रहती हैं। तुलसी को गमले में लगाकर उसे घर के भीतर रखा जाता है और चारों ओर केले के पत्र लगाकर दीपक जलाया जाता है। उसके बाद पांचवें दिन पूजे हुए दीपक को बुझा दिया जाता है। इसी दीपक को पंचभीष्म के दिन सात साल तक जलाया जाता है। यह पर्व भीष्म पितामह की याद में होता है।
गांवों की कन्याएं पांच दिन तक सुहागगीत गाती हैं। जयंती माता मंदिर में पंच भीष्म के साथ -साथ मनोकामना पूर्ण करने वाली माता के नाम भी जाना जाता है। मंदिर में माथा टेकने स्थानीय भक्त ही नहीं, बल्कि देश के कोने-कोने से भी आते हैं।  महाभारत के युद्ध के समय युधिष्ठर को मां जयंती ने स्वप्न दिया था कि उनकी इस युद्ध में जीत होगी और यह भी निर्देश दिया था कि पांडव मां चामुंडा का आशीर्वाद लें। एक अन्य कथा के अनुसार जब इंद्र को राक्षस ने युद्ध में घेर लिया था तो तब मां जयंती ने मां चामुंडा का रूप धारण करके इंद्र की सहायता भी की थी। यह विख्यात है कि कोई पापी भी यहां पर जाता है तो मां के दरबार की यात्रा करके उसके पाप नष्ट होते हैं। मारकंडेय पुराण में भी मां जयंती को पापनाशनी कहा गया है। इतिहास बताता है कि यहां से  मोहम्मद गजनवी की सेनाओं ने तोपें पहुंचाकर नगरकोट के किले पर हमला भी किया था।किवदंतियों के अनुसार एक कहानी भी मां से जुड़ी हुई है। एक राजकुमारी मां की भक्त थी। जब राजकुमारी की शादी हुई और उसकी डोली उठने लगी तो कहार उसे उठा नहीं पाए। इसके बाद राजकुमारी ने कहा कि मां ने उसे स्वप्न दिया था कि वह उसे अपने साथ ले जाए। इसके बाद एक पिंडी को मां की पिंडी के साथ स्पर्श करके राजकुमारी अपने साथ ले गई और उसे अपने सुसराल में स्थापित किया। आज यह जगह चंडीगढ़ में हैं जहां जयंती माजरी गांव में मां जयंती का मंदिर बना हुआ है। जोकि लोगों की आस्था का प्रतीक है। पांडवों की स्मृति में जयंती मां के मंदिर में पंचभीष्म मेले भी होते हैं। कार्तिक महीने की एकादशी से पंचभीष्म मेले महाराजा सुषर्मा चंद्र के कार्यकाल से जयंती माता मंदिर में मनाए जा रहे हैं। पुराना कांगड़ा से जयंती माता मंदिर की सीढि़यों तक सड़क मार्ग से पहुंचा जा सकता है, इसके बाद लगभग चार किलोमीटर का पैदल रास्ता तय करके मंदिर में पहुंचते हैं।

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