बाबा बालक रूपी मंदिर
जनश्रुति है कि एक बार एक महात्मा मणिमहेश की यात्रा के दौरान इस स्थान पर तपस्या में लीन हो गए। मां पार्वती ने इसी स्थान पर महात्मा को दर्शन दिए। मां पार्वती के पीछे-पीछे चलकर जब महात्मा कैलाश पहुंचे तो भगवान शंकर ने महात्मा को बालक रूप में प्रकट होने का वरदान दिया…
हिमाचल प्रदेश विभिन्न संस्कृतियों का प्रदेश है। हिमाचल प्रदेश देवी-देवताओं की भूमि है और यहां पर कदम-कदम पर चमत्कार होते हैं। ऐसी ही एक अटूट आस्था का पावन स्थल है बाबा बालक रूपी मंदिर। मंडी व जिला कांगड़ा घाटी का प्रवेश द्वार जोगिंदरनगर जिसे कभी ‘सकरोटी’ नाम से संबोधित किया जाता था, का नाम बाद में राजा जोगिंदर सेन के नाम पर पड़ा। यहां से दो किलोमीटर दूर पश्चिम में जोगिंदर नगर दारट सड़क के दाईं तरफ बाबा बालक रूप का मंडप शैली का मंदिर अपनी ख्याति के लिए न केवल दूर-दूर तक मशहूर है, बल्कि अपनी प्राचीनता, महिमा व भव्यता के कारण अटूट आस्था का केंद्र है। बताया जाता है कि यह मंदिर करीब 4-5 सौ वर्ष पुराना है। जनश्रुति है कि एक बार एक महात्मा मणि महेश की यात्रा के दौरान इस स्थान पर तपस्या में लीन हो गए। मां पार्वती ने इसी स्थान पर महात्मा को दर्शन दिए। मां पार्वती के पीछे-पीछे चलकर जब महात्मा कैलाश पहुंचे तो भगवान शंकर ने महात्मा को बालक रूप में प्रकट होने का वरदान दिया। बाबा जी के भक्तों में मनोह गांव की एक भक्तिन भी थी, जो अपने गांव से हर रोज आलमपुर मंदिर में दूध चढ़ाने जाया करती थी। बुढ़ापे की अवस्था व लंबी दूरी ने जब उसके आने-जाने को असंभव बना दिया तो उसने अपनी असमर्थता आराध्य देव के सामने प्रकट की। कहा जाता है कि उस भक्तिन को बाबा जी ने स्वप्न में आदेश दिया था कि वह एक पिंडी वहां से छुआ कर ले जाए। जहां पर वह उस पिंडी को रख देगी, वहां पर बाबा बालक रूपी धाम होगा। भक्तिन ने बाबा द्वारा स्वप्न में बताई बात को गांठ बांध लिया और अपने गंतव्य की ओर चल पड़ी। भक्तिन ने रास्ते में कही विश्राम न किया और न ही पिंडी को भूमि में रखा। लेकिन जब उसने वर्तमान बालकरूपी गांव में कारणवश पिंडी को पत्थर पर रखा तो पिंडी अपनी जगह से बिल्कुल न हिली। फिर इसी स्थान पर बाबा बालक रूपी शिव महादेव स्थापित हो गए। इस मंदिर की ख्याति दूर-दूर तक फैल गई और जन समुदाय के अटूट आस्था का केंद्र बन गया। इस मंदिर के निर्माण में तत्कालीन मंडी के राजा सिद्धसेन का महत्त्वपूर्ण योगदान है। तांबे का बैल मंदिर के मुख्य द्वार के सामने स्थापित किया गया है। प्राकृतिक सौंदर्य से परिपूर्ण तथा शांत वातावरण में स्थित बाबा बालक रूपी मंदिर पूरे क्षेत्र में प्रसिद्ध है। श्रद्धालु दूर-दूर से मनौती मांगते तथा रबी और खरीफ की फसल का भोग लगाने आते हैं। बच्चों के मुंडन व यज्ञोपवीत संस्कार भी यहां करवाए जाते हैं। आषाढ़ व मार्गशीर्ष के हर शनिवार को यहां पर मेले लगते हैं। रात्रि को सारा वातावरण बाबा बालकरूप के जयकारों से गूंज उठता है और जागरण होता है। सुबह होने पर श्रद्धालु बाबा का आशीर्वाद ले करके अपने गंतव्य की ओर प्रस्थान करते हैं। दाद व ददरी होने पर बाबा जी की विभूति लगाने व तांबे के बैल में हल्दी का उबटन लगाने से निजात मिलती है।
-गोपाल राण, भराडू़ , जोगिंद्रनगर
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