Wednesday, 26 February 2014

किलों और मंदिरों में बोलती है चित्रकला

ANNITHISWEEK NEWS MAGAZINE

किलों और मंदिरों में बोलती है चित्रकला

राजा संसार चंद का कला-प्रेमी होना पहाड़ी चित्रकला की विशिष्ट महत्त्वपूर्ण घटना थी। उनका निजी कला-प्रेम ही पहाड़ी चित्रकला को विशिष्ट स्थान देने में समर्थ रहा…       
नूरपुर के राजा वासुदेव का अकबर के शासनकाल में मुगलों से झगड़ा हो गया था,लेकिन अपनी पैतृक परंपरा के प्रतिकूल वासुदेव के पुत्र सूरजमल (1613-18) का जहांगीर के दरबार में आना-जाना शुरू हो गया। उसके बाद राजा जगत सिंह (1619-46) के मुगल बादशाह जहांगीर से अच्छे संबंध रहे। मुगल दरबार के संपर्क से उन्हें मुगलकालीन चितेरों की कलाकृतियां देखने का अवसर मिला। जगत सिंह ने मुगल शासक और सेना में अपनी सेवाओं के अनुकूल सम्मान व प्रतिष्ठा अर्जित की। कांगड़ा के किलों के अतिरिक्त मंदिरों की वास्तुकला भी कला-प्रेमी का  ध्यान आकर्षित करती है। आलमपुर का मंदिर (1747), गौरी शंकर का मंदिर टीहरा, राधाकृष्ण और नर्मदेश्वर का मंदिर सुजानपुर में देखा जा सकता है। सुजानपुर का मंदिर बैजनाथ में बने प्राचीन मंदिर के अनुकरण पर राजा घमंड चंद ने बनाया था। इन मंदिरों की भीतरी और बाहरी दीवारों पर अवध  मुगल शैली के अनुरूप अलंकरण और चित्रण है। नादौन में बहुत से मंदिर हैं जो अधिकांशतः मध्यकालीन हिंदू शैली के अपुरूप बने। राजा संसार चंद का कला-प्रेमी होना पहाड़ी चित्रकला की विशिष्ट महत्त्वपूर्ण घटना थी। उनका निजी कला-प्रेम ही पहाड़ी चित्रकला को विशिष्ट स्थान देने में समर्थ रहा। 

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