Sunday, 23 February 2014

परमपवित्र स्थल बैजनाथ

श्रावणी जलाभिषेक का परमपवित्र स्थल बैजनाथ

यह ऐतिहासिक शिव मंदिर प्राचीन शिल्प एवं वास्तुकला का अनूठा व बेजोड़ नमूना है, जिसके भीतर शिवलिंग अर्द्धनारीश्वर के रूप में विद्यमान है तथा मंदिर के द्वार पर कलात्मक रूप से बनी नंदी बैल की मूर्ति शिल्प कला का एक अद्भुत नमूना है…
शिव पुराण के अनुसार श्रावण मास भगवान शिव की उपासना के लिए सबसे उपयुक्त समय माना जाता है तथा ऐसी मान्यता है कि श्रावण मास में पड़ने वाले सोमवार को व्रत रखने और इस दिन शिवलिंग पर किए गए जलाभिषेक एवं विल्बपत्र, धतूरा इत्यादि अर्पित करने से भोलेनाथ शीघ्र प्रसन्न होकर अपने भक्तों को मनोवांछित फल प्रदान करते हैं। शिव मंदिर बैजनाथ उत्तरी भारत का एक तीर्थाटन माना जाता है जिसका धार्मिक, ऐतिहासिक और पर्यटन की दृष्टि से बहुत महत्व है। श्रावण मास एंव शिवरात्रि महोत्सव में यह नगरी बम-बम भोले के उद्घोष से शिवमय बन जाती है। हर वर्ष इस मंदिर में श्रावण मास के दौरान पड़ने वाले सभी सोमवारों को मंदिर में पूजा अर्चना का विशेष महत्व माना जाता है तथा मंदिर समिति द्वारा श्रावण मास के सभी सोमवार को मेले के रूप में मनाया जाता है। मंदिर के साथ बहने वाली विनवा खड्ड पर बने खीर गंगा घाट में श्रावण मास में स्नान करने का विशेष महत्व है तथा मंदिर न्यास द्वारा खीर गंगा घाट का सुधार करके श्रद्धालुओं के स्नान की बेहतर व्यवस्था की गई है। उल्लेखनीय है कि यह ऐतिहासिक शिव मंदिर प्राचीन शिल्प एवं वास्तुकला का अनूठा व बेजोड़ नमूना है, जिसके भीतर शिवलिंग अर्द्धनारीश्वर के रूप में विद्यमान है तथा मंदिर के द्वार पर कलात्मक रूप से बनी नंदी बैल की मूर्ति शिल्प कला का एक अद्भुत नमूना है। एक जनश्रुति के अनुसार द्वापर युग में पांडवों के अज्ञात वास के दौरान इस मंदिर का निर्माण करवाया गया था परंतु कार्य पूर्ण नहीं हो पाया। स्थानीय लोगों के अनुसार इस मंदिर का शेष निर्माण कार्य आहुक एंव मनूक नाम के दो व्यापारियों ने पूर्ण किया था और तब से लेकर अब तक यह स्थल शिवधाम के नाम से उत्तरी भारत में विख्यात है। इस मंदिर में शिव लिंग स्थापित होने के बारे कई किवदंतियां प्रचलित हैं। जनश्रुति के अनुसार राम- रावण युद्ध के दौरान रावण ने शिव को प्रसन्न करने के लिए कैलाश पर्वत पर घोर तपस्या की थी और भगवान शिव से लंका चलने का वर मांगा ताकि युद्ध में विजय प्राप्त की जा सके। भगवान शिव ने प्रसन्न होकर रावण के साथ लंका एक पिंडी के रूप में चलने का वचन दिया और साथ में यह शर्त रखी कि वह इस पिंडी को कहीं जमीन पर न रखकर सीधा इसे लंका पहुंचाए। जैसे ही शिव की इस अलौकिक पिंडी को लेकर रावण लंका की ओर रवाना हुआ रास्ते में कोरग्राम (बैजनाथ) नामक स्थान पर रावण को लघुशंका महसूस हुई और उन्होंने वहां खड़े एक व्यक्ति को थोड़ी देर के लिए पिंडी सौंप दी। लघुशंका से निवृत होकर रावण ने देखा कि जिस व्यक्ति के हाथ में वह पिंडी दी थी वह ओझल हो चुके हैं और पिंडी जमीन में स्थापित हो चुकी थी। रावण ने स्थापित पिंडी को उठाने के काफी प्रयास किया परंतु सफ लता नहीं मिल पाई फिर उन्होंने इस स्थल पर घोर तपस्या की और अपने दस सिर की आहुतियां हवन कुंड में डालीं। तपस्या से प्रसन्न होकर रूद्र महादेव ने रावण के सभी सिर पुनः स्थापित कर दिए। इस वर्ष श्रावण मास में पड़ने वाले सभी चार सोमवार को इस शिवालय में मेले का आयोजन 22 जुलाई से 12 अगस्त तक पारंपरिक श्रद्धा एवं बड़े हर्षोल्लास के साथ किया जा रहा है।

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