Dr.Sitaram Thakur Kullu संस्कृत का पुण्यप्रवाह
कर्नाटक में मत्तूर नाम का एक गांव है, जहां संस्कृत भाषा ही बोली जाती है। केरल में तीसरी कक्षा से संस्कृत अनिवार्य रूप से पढ़ाई जाती है। हिमाचल प्रदेश में भी लोगों की इच्छा एवं राजानुग्रह से राज्य का अपना संस्कृत विश्वविद्यालय होना परमावश्यक है…
संस्कृत का अर्थ है कि ज्ञान प्रदान करने वाली अर्थात जिसमें निहित ज्ञान को आत्मसात करने से संस्कारों का प्रादुर्भाव और आत्मिक शांति मिलती है। संपूर्ण ज्ञान-विज्ञान का भंडार वेद, पुराण, उपनिषद्, दर्शन, धर्मशास्त्र आदि इसी संस्कृत भाषा में निबद्ध हैं। संस्कृत में निहित ज्ञान से ही संस्कृति सुदृढ़ बनती है और संस्कारों का उदय होकर प्रत्येक घर में शांति निवास करती है। इसी संस्कृत ज्ञान के कारण भारत सोेने की चिडि़या कहा जाता था। सांस्कृतिक दृष्टि से एकता स्थापना के उद्देश्य से संपूर्ण भारत में लौकिक व पारलौकिक धर्म-अनुष्ठान, जन्म से मृत्यु तक होने वाले षोडश संस्कार, यज्ञ आदि कर्म इसी भाषा में निबद्ध मंत्रों द्वारा किए जाते हैं। प्रायः बहुत सारी संस्थाओं के ध्येय वाक्य भी संस्कृत भाषा में हैं। संस्कृत में विज्ञान निहित है, हमारे ऋषि-मुनियों की दूरदर्शिता वर्तमान युग के वैज्ञानिकों के चिंतन से कई गुना अधिक थी। आज वैज्ञानिक चमत्कारों को देखकर लोग आश्चर्यचकित होते हैं, परंतु हमारे देश में प्राचीनकाल में ही पुष्पक-विमान, शून्य का आविष्कार, ब्रह्मास्त्र और आग्नेयास्त्र का आविष्कार हो चुका था। संगणक (कम्प्यूटर) में भी संस्कृत भाषा का प्रयोग अन्य भाषाओं की अपेक्षा अतिशीघ्र होता है। वर्तमान काल में व्यक्तिगत, पारिवारिक, सामाजिक, मानसिक, बौद्धिक व संवेगात्मक समस्याएं समाज में घर-घर में प्रस्फुटित हो रही हैं। चरित्रहीनता और भ्रष्टाचार निरंतर बढ़ रहा है। अतः कहा जा सकता है कि मानव मूल्यों व नैतिकता का निरंतर हृस हो रहा है। इन सबका उपचार संस्कृत में निहित ज्ञान को आत्मसात करने से ही हो सकता है। पाश्चात्य सभ्यता और भौतिकतावाद के अंधानुकरण से मानव की शांति नष्ट हो चुकी है। आत्मिक शांति एवं परमानंद की प्राप्ति के लिए संस्कृत ज्ञान अत्यंत आवश्यक है। प्रत्येक घर में दैनिक पूजा-पाठ मंत्र, स्तोत्रपाठ, गीता, रामायण व नीतिशास्त्र के श्लोकों का पारायण परमावश्यक है। हमारे देश में संस्कृत का विशाल साहित्य था, जिसको नालंदा व तक्षशिला के पुस्तकालयों में मुगलों द्वारा जला दिया गया। कितना साहित्य होगा, इसका अनुमान लगाया जा सकता है, क्योंकि छह महीने तक वह विशाल साहित्य जलता रहा। मैकाले ने अंग्रेजी शिक्षा पद्धति को जन्म दिया। उसने संस्कृत विद्यालयों, महाविद्यालयों से संस्कृत को हटाकर अंग्रेजी शिक्षा पद्धति प्रारंभ करवा दी थी। उसका चिंतन था कि किसी भी राष्ट्र को खत्म करने के लिए उस राष्ट्र की संस्कृति पर कुठाराघात किया जाए। उस समय से भारत में संस्कृत का बड़ा हृस हुआ। उसी के प्रभाव से आज भारत का हर नागरिक शरीर से तो भारत का है, परंतु मानसिक रूप से पाश्चात्य हो चुका है। आज अनेक संस्थाएं संस्कृत के प्रचार-प्रसार के लिए कार्य कर रही हैं। देश में संस्कृत के 16 विश्वविद्यालय हैं। 500 से अधिक संस्थाएं वेद पर काम कर रही हैं। केंद्रीय स्तर पर राष्ट्रीय संस्कृत संस्थान जो बहुपरिसरीय संस्कृत विश्वविद्यालय है, जिसके भारत में 12 परिसर हैं। प्रादेशिक स्तर पर विभिन्न संस्कृत अकादमियां, ‘संस्कृत भारती’ जैसे सामाजिक संगठन,संस्कृत के विकास के लिए कार्यरत हैं।
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