Sunday, 23 February 2014

भूरेश्वर महादेव सिरमौर जिले के नाहन

भूरेश्वर महादेव

सिरमौर जिले के नाहन शिमला राजमार्ग पर सराहां नैनाटिक्कर के ठीक मध्य क्वागधार की ऊं ची  चोटी पर भाई-बहन के रूप में भूरेश्वर महादेव, विराजमान हैं। किवदंति है कि द्वापर में महाभारत के युद्ध को भगवान श्ांकर और पार्वती जी ने इसी स्थान से देखा था। लोक गाथा के अनुसार बाल्यकाल में मां के वियोग और सौतेली मां के दुर्व्यवहार से प्रताडि़त भाई-बहन पशुओं को चराने के लिए जंगल में इस शिवलिंग के आसपास रहते व शाम को पशुओं को घर ले आते थे। देवयोग से एकदिन भयंकर आंधी तूफान में गाय का एक बछड़ा कहीं जंगल में खो जाने के कारण सौतेली मां ने उसे ढूंढ लाने के लिए भाई को भेज दिया। हिमपात व अधिक ठंड के कारण बछड़े व भाई ने जंगल में ही प्राण त्याग दिए। दूसरे दिन जब बहन व बाप उन्हें ढूंढने के लिए जंगल में आए तो देखा कि दोनों ही बर्फ व ठंड के कारण पत्थर के रूप में समा गए। इधर बहन का विवाह एक काने व कोढ़ी से करने का निर्णय ले लिया गया। सौतले भाई ने सौतले होने के कारण जान बूझकर ऐसा किया, शर्त यह थी कि लगभग 20 किलोमीटर दूर स्थित दूसरी पहाड़ी से राणा गमोला जो काना व कोढ़ी व्यक्ति था, यदि तीर फेंककर पहाड़ी को पार कर ले तो उससे अपनी बहन का विवाह कर दिया जाएगा और यदि ऐसा न कर सके तथा उसका स्वयं का तीर पार हो जाए तो गमोला को अपनी बहन की शादी इससे करनी होगी। इस प्रकरण के बाद जब सौतेली बहन की डोली उस काने कोढ़ी के साथ विदा होने लगी तो अनिच्छापूर्वक उस शक्ति स्वरूपा ने जहां उसके भाई की मृत्यु हुई थी, उसी स्थान पर डोली से छलांग लगाकर अपनी इहलीला समाप्त कर दी। पारंपरिक रूप से आज भी ढोल-नगाड़ों व वाद्य यंत्रों सहित पुजारी व अन्य लोगों द्वारा टिक्करी पंजोली गांव से देवता की शोभा यात्रा निकाली जाती है। दुर्गम रास्ते से होते हुए यात्रा पहाड़ी के शिखर पर पहुंचती है, वहां पर उसी बछड़े पर दूध चढ़ाया जाता है, तथा ढांक के भंयकर मार्ग से देवता एक शिला विशेष जो मंदिर के पार्श्व भाग में तिरछी व अति भयंकर रूप में स्थित है, पर आरोहण करके दूध की धार डाली जाती है। वर्ष में दो देवशयिनी तथा देवप्रबोधिनी एकादशी को यह दृश्य देखने को मिलता है। कहते हैं कि यदि पुत्रहीन दंपति यहां आकर श्रद्धा से पुत्र कामना करें तो भूरेश्वर महादेव उसे अवश्य पूर्ण करते हैं। इस तरह भाई-बहन के प्रेम का प्रतीक यह प्राचीन मंदिर आज भी लाखों लोगों की आस्था का प्रमुख केंद्र बिंदु बना हुआ है। यहां प्रतिवर्ष कार्तिक मास की शुक्ल एकादशी को एक भव्य मेले का आयोजन किया जाता है जिसमें जिले के दूर-दराज से श्रद्धालु बड़ी संख्या में भाग लेते हैं। यहां से जिला मुख्यालय नाहन लगभग 30 किमी, सोलन 40 किमी दूर है। यह स्थान ऊंचाई पर होने के कारण यहां का वातावरण भी काफी साफ -सुथरा ,शुद्ध व सुहावना है। विशेषकर गर्मिंयों में श्रद्धालु भगवान शिव के दर्शनों के साथ-साथ सुहावने मौसम का लुत्फ  भी उठा सकते हैं।
राजेश कुमार जसवाल, पांवटा साहिब

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