हे ग्राम देवता नमस्कार!
भारत गांवों में बसता है और गांवों की आस्था ग्राम देवता में बसती हैं। गांव के किसी भी घर में यदि कोई शुभ कार्यक्रम होता है तो सबसे पहले ग्राम देवता का ही आशीर्वाद लिया जाता है। इसके अतिरिक्त गांव के महत्वपूर्ण सामाजिक-सांस्कृतिक आयोजन भी ग्राम देवता के प्रांगण में होते हैं। विवाह में सबसे पहले ग्राम देवता को ही निमंत्रित किया जाता है और अकाल जैसी स्थितियों से छुटकारा पाने के लिए भी ग्राम देवता को प्रसन्न करने की कोशिश की जाती है। गांवों का संबंध खेती से होता है,इसलिए अच्छी फसल के लिए भी ग्राम देवता से सहयोग मांगा जाता है और अच्छी फसल होने पर उन्हें अन्न अर्पण कर अपनी कृतज्ञता ज्ञापित की जाती है। डॉ. ओपर्ट, डाल्टन और हैविट ने ग्राम देवताकी विशिष्टताओं का उल्लेख विस्तार से किया है कि ‘ग्राम देवताओं की पूजा से गांव, माता-महामारी, पशुरोग, अकाल, अग्नि-दुर्घटना, बाढ़, असमय मृत्यु, सर्पदंश, वन्य-पशु आक्रमण की आशंका से मुक्त होकर संपन्नता और खुशहाली का जीवन व्यतीत करता है। ग्राम देवता खोई हुई वस्तु की प्राप्ति और पशु चोरी का पता करने जैसे दैनंदिन जीवन के तात्कालिक तथा स्पष्ट और सहज लक्ष्य के लिए व्यक्तिगत स्तर पर पूजे जाते हैं। ग्राम देवता पहाड़, नदी-नाला, तालाब, जंगल, वृक्ष के अतिरिक्त गांव की सीमा पर, मार्ग में अथवा ग्राम के मध्य में स्थापित होते हैं। पुरानी बस्ती पर, विशेषकर नदी-नालों के किनारे बसे गांवों में अथवा गांव से संलग्न उजाड़-वीरान टीला होता है जिसे ‘डीह’ कहा जाता है। इन स्थानों पर ग्रामदेवता की उपस्थिति मानकर उनकी पूजा की जाती है। डीह, डिहवार या डिहारिन देव के रूप में मान्य क्षेत्रों को पवित्र मानने के कारण, इस क्षेत्र के आसपास शुद्धता का ध्यान रखा जाता है। पेड़ काटने की मनाही होती है तथा यहां से गुरजते हुए पगड़ी और पनही उतार लेने की सावधानी बरती जाती है। परा-शक्ति और ग्रामीणों के बीच की एक श्रद्धापूर्ण संबंध होता है। ग्राम देवता के रूप में अधिकांश गांवों में देवी के रूप की पूजा होती है। इसके अतिरिक्त विभिन्न देवों के रूप में सीतबावा, बरमबावा, भैरोबावा, मुडि़याबावा, अघोरीबावा, कलुआबावा आदि की भी पूजा गांवों में होती है। आधुनिकता के वर्तमान दौर में ग्राम देवताओं की रूप-स्वरूप से सम्बद्ध होकर हम भारतीय आस्था के मूल रूप से परिचित हो सकते हैं।
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