ANNITHISWEEK
नृत्य विविधता लिए नायाब कैरियर
नृत्य, आनंद के अभिव्यक्ति की आदिम भाषा है। प्राचीन काल से ही व्यक्ति खुशी के पलों में नृत्य के जरिए अपनी भावनाओं का इजहार करता रहा है। नृत्य को मंगलकारी भी माना जाता है। अमृत मंथन के पश्चात भगवान विष्णु ने मोहिनी का रूप धारण कर अपने लास्य नृत्य के द्वारा ही तीनों लोकों को राक्षसों से मुक्ति दिलाई थी…
नृत्य मानवीय अभिव्यक्तियों का एक रसमय प्रदर्शन है। यह एक सार्वभौम कला है, जिस का जन्म मानव जीवन के साथ ही हुआ है। बालक जन्म लेते ही रो कर अपने हाथ- पैर मार कर अपने भाव अभिव्यक्त करता है कि वह भूखा है। इन्हीं आंगिक क्रियाओं से नृत्य की उत्पत्ति हुई। यह कला देवी- देवताओं, दैत्य- दानवों, मनुष्यों एवं पशु- पक्षियों को अति प्रिय है। भारतीय पुराणों में यह दुष्टनाशक और ईश्वर प्राप्ति का साधन मानी गई है। अमृत मंथन के पश्चात जब दुष्ट राक्षसों को अमरत्व प्राप्त होने का संकट लगा, तो भगवान विष्णु ने मोहिनी का रूप धारण कर अपने लास्य नृत्य के द्वारा ही तीनों लोकों को राक्षसों से मुक्ति दिलाई थी।
परिभाषा
नृत्य की सामान्य सी परिभाषा यह है कि यह शरीर का संगीत से संबंध जोड़ने की एक प्रक्रिया है। यानी कि हाथ, पैर, मुख व शरीर संचालन का समन्वय। संगीत के साथ शरीर का समन्वय स्थापित होना ही नृत्य है।
इतिहास
भारतीय नृत्य का इतिहास बहुत प्राचीन है। नृत्य का प्राचीनतम ग्रंथ भरत मुनि का नाट्यशास्त्र है। नृत्य के आलेख वेदों में भी मिलते हैं, जिससे पता चलता है कि प्रागैतिहासिक काल में नृत्य की खोज हो चुकी थी। इतिहास की दृष्टि में सबसे पहले उपलब्ध साक्ष्य गुफाओं में प्राप्त आदिमानव के उकेरे चित्रों तथा हड़प्पा और मोहनजोदड़ो की खुदाई में प्राप्त मूर्तियां हैं, जिनके संबंध में पुरातत्त्ववेता उस समय नृत्य होने का दावा करते हैं। ऋगवेद के अनेक श्लोकों में नृत्य खब्द का प्रयोग हुआ है। संस्कृत के प्राचीन ग्रंथों जैसे कालिदास का अभिज्ञान शाकुंतलम्, मेघदूतम् और वात्स्यायन के कामसूत्र और मृच्छकटिकम् आदि में नृत्य आदि का विवरण हमारी भारतीय संस्कृति की लोकप्रियता को दर्शाता है।
व्यक्तिगत गुण क्या हों
नृत्य के क्षेत्र में कैरियर बनाने के लिए जिन व्यक्तिगत गुणों का होना आवश्यक है, उनमें सब से पहला तो स्वस्थ होना जरूरी है। इसके अलावा परिश्रम, दृढ़ निश्चय और असफलताओं कोे स्वीकार करने की क्षमता, आत्मविश्वास तथा महत्त्वाकांक्षा प्रमुख हैं।
भारतीय नृत्य के प्रकार
भारतीय नृत्य उतनी ही विविधता लिए हुए है, जितनी हमारी संस्कृति। इसे दो भागों में बांटा जा सकता है। शास्त्रीय नृत्य और लोकनृत्य। हाल ही में बालीवुड नृत्य की एक नई शैली लोकप्रिय होती जा रही है, जो भारतीए सिनेमा पर आधारित है। इस शैली में भारतीय शास्त्रीय नृत्य, भारतीय लोकनृत्य और पाश्चात्य शास्त्रीय और पाश्चात्य लोकनृत्य का समन्वय देखने को मिलता है। जिस तरह से भारत में कोस-कोस पर पानी और वाणी बदलती है, उसी तरह नृत्य शैलियों में भी विविधता है। प्रमुख भारतीयशास्त्रीय नृत्य हैं- कत्थक, ओडिसी, भरतनाट्यम, कुचीपुड़ी, मणिपुरी एवं कत्थकली। लोकनृत्यों में प्रांतों के अनेक स्थानीय नृत्य हैं- पंजाब का भांगड़ा-गिद्दा, हिमाचल की नाटी, असम का बिहु इत्यादि।
प्रमुख शिक्षण संस्थान
बनारस हिंदू यूनिवर्सिटी
महाराजा सायाजी राव यूनिवर्सिटी, बड़ौदा
गुजरात यूनिवर्सिटी
नालंदा नृत्य कला महाविद्यालय, बिहार
भारतीय विद्या भवन, बंगलूर
गवर्नमेंट म्यूजिक कालेज अगरतला, त्रिपुरा
रविंद्र भारती यूनिवर्सिटी कोलकाता, पश्चिम बंगाल
शैक्षणिक योग्यता
नृत्य के क्षेत्र में कैैरियर बनाने के लिए वैसे किसी विशेष शैक्षणिक योग्यता की आवश्यकता नहीं है। फिर भी इस क्षेत्र में जाने के लिए कम से कम दस जमा दो की शिक्षा अनिवार्य है। नृत्य के क्षेत्र में कैरियर के लिए सबसे जरूरी है कि आप की इस विषय में लगन होना बहुत जरूरी है, तभी आप इस क्षेत्र में आगे बढ़ सकते हैं।
खुशी का खुलासा है नृत्य
जब कोई खुश होता है, तो उस के मन में जो सबसे पहला ख्याल आता है, वह नृत्य ही है। हमारा कोई भी समारोह नृत्य- संगीत के बिना अधूरा माना जाता है। यही कहा जा सकता है कि नृत्य का संबंध समारोहों से है और नृत्य खुशी के खुलासे का सबसे बड़ा माध्यम है।
भारतीय नृत्य क्यों है अव्वल
वैश्विक बाजार और पश्चिम के अंधानुकरण के बावजूद भारतीय नृत्य आज भी विश्व पटल पर अपनी अलग पहचान बनाए हुए है। सिनेमा से लेकर टेलीविजन तक डिस्को और ब्रेक डांस से हो कर हिप्प-हॉप व सालस करते हुए बोनियम व माइकल जैक्सन से ले कर शकीरा और शबीना का हिंदोस्तानी रूपांतरण घर-घर पाया जा सकता है। कला की तुलना नहीं की जा सकती, पर फिर भी पाश्चात्य नृत्य के मुकाबले भारतीय नृत्य अव्वल इस लिए है क्योंकिभारतीय नृत्य आनंद प्रदान करता है जबकि पाश्चात्य नृत्य पल भर की मस्ती है। मस्ती से आनंद की भला क्या तुलना। पल भर की मस्ती देने वाला नृत्य अव्वल नहीं हो सकता। आनंद प्रदान करने की अपनी क्षमता के कारण ही भारतीय नृत्य अव्वल है।
असीमित आय
नृत्य के क्षेत्र में आय की कोई सीमा नहीं है। सरकारी क्षेत्र में अध्यापन करने पर 30-40 हजार रुपए महीना कमाया जा सकता है। अगर आप स्टेज शो करते हैं, तो यह कमाई एक महीने में लाखों में हो सकती है। फिल्म जगत में तो नृत्य का व्यवसाय करोड़ों में होता है। यानी नृत्य के क्षेत्र में पैसा और शोहरत दोनों हैं, बस जरूरत है मेहनत और लगन की।
भारतीय डाक टिकटों में नृत्य
समारोहों में तो नृत्य का महत्त्व है ही, पर डाक टिकटों पर हमारी भारतीय शैली के नृत्यों के चित्र यह दर्शाते हैं कि नृत्य को हमारे देश में कितना महत्त्व दिया जाता है कि ऐतिहासिक धरोहर कही जाने वाली डाक टिकटों पर भी इन्हें उकेरा गया है।
कैरियर विकल्प
नृत्य आज बहुत बड़ा उद्योग बन गया है। नृत्य में कैयिर के बहुत विकल्प माजूद हैं, जिन्हें चुन कर युवा अपना कैरियर बना सकते हैं। आज कल टीवी चैनलों पर विभिन्न रियलिटी शोज उभरते नर्तकों को मौका दे रहे हैं। इसके अलावा अध्यापन के क्षेत्र में भी कैरियर की संभावनाएं हैं। सरकारी क्षेत्र में स्कूल-कालेज में अवसर हैं, तो अपनी डांस अकादमी भी खोली जा सकता है।
धर्म और संस्कृति का सहचर नृत्य
भारतीय संस्कृति एवं धर्म आरंभ से ही मुख्यता धर्म से जुड़े रहे हैं। देवराज इंद्र का अच्छा नर्तक होना तथा स्वर्ग में अप्सराओं के अनवरत नृत्य की धारणा भारत के प्राचीन काल से नृत्य से जुड़ाव की ओर संकेत करता है। विश्वामित्र और मेनका का उदाहरण भी ऐसा ही है। इससे स्पष्ट है कि हम आरंभ से ही नृत्य कला को धर्म से जोड़ते रहे हैंं।
No comments:
Post a Comment