पुराने मंदिर के अवशेष पर बना नीरथ मंदिर
नीरथ एक शिखर शैली का मंदिर है जो पुराने मंदिर के अवशेष के ऊपर बनाया गया है। वास्तु कला का अद्भुत प्रदर्शन इस मंदिर के निर्माण पर हुआ है…
नीरथ
नीरथ में सूर्य का मंदिर है जो 12वीं शताब्दी में बनाया गया था। नीरथ एक शिखर शैली का मंदिर है जो पुराने मंदिर के अवशेष के ऊपर बनाया गया है। वास्तु कला का अद्भुत प्रदर्शन इस मंदिर के निर्माण पर हुआ है। हालांकि वर्तमान में यह जर्जर हालत में है।
लिप्पा
बौद्ध धर्म का एक महत्त्वपूर्ण स्थान है। लामा देवरामा द्वारा यहां एक गोम्पा की स्थापना की गई थी। लामा देवरामा एक प्रसिद्ध ज्योतिषि थे, जो इस क्षेत्र में बहुत प्रसिद्ध थे। यहां गोम्पा में एक बड़ा पुस्तकालय है जिसमें कंजूर और तंजूर प्राचीन पाण्डुलिपियां भी रखी गई हैं।
मिंढाल
किलाड़ से 10 किलोमीटर दूर चन्द्रभागा नदी के किनारे मिंढाल गांव है। यहां देवी का प्रसिद्ध मंदिर है, जहां प्रतिवर्ष मेला लगता है। इस अवसर पर 100 से अधिक भेड़ों व बकरों की बलि दी जाती है। यहां काले पत्थर की बनी देवी की मूर्ति है। इसके बारे में कहा जाता है कि यह यहां जमीन से निकाली है।
नमग्या
नमग्या दुर्गपा संप्रदाय के लोगों का धार्मिक केंद्र है। यहां पर प्रसिद्ध लगांग बौद्ध मठ है। इस मंदिर में शा-शा देवी की मूर्ति स्थापित है। नमग्या के लोगों को नाइमा या जाड भी कहा जाता है जो तिब्बती भाषा से मिलती जलती बोली बोलते हैं। का इतिहास
असफल विद्रोह था 1857
कहते हैं 1858 के विद्रोह के फलस्वरूप भारत की शासन-प्रणाली में अनेक मौलिक और महत्त्वपूर्ण परिवर्तन हुए। कुछ विदेशी लेखकों के अनुसार 1857 की घटनाओं ने ब्रिटिश सरकार की तथा जनता की आत्मा को इस बुरी तरह झकझोर कर जगा दिया कि ईस्ट इंडिया कंपनी का अंत करना अनिवार्य हो गया, किंतु वस्तुतः कंपनी के समाप्त किए जाने का कारण 1857 का असफल विद्रोह मात्र नहीं था। कंपनी के विरुद्ध स्वयं ब्रिटेन में जनमत बहुत पहले से उभर रहा था और 1853 के चार्टर एक्ट से तो यह स्पष्ट हो ही गया था कि ब्रिटिश सरकार एक व्यापारी कंपनी के हाथों में इतने बड़े देश के साम्राज्य को अब अधिक लम्बे अरसे तक छोड़े रहने के लिए तैयार नहीं थी। वस्तुतः बात यह थी कि कंपनी के संचालक और साझेदार तो चाहते थे कि भारत के शासन, व्यापार और लूट-मार के माल पर अकेले उनका आधिपत्य बना रहे, किंतु इंग्लैंड में उनकी समृद्धि और ठाट-बाट को देखकर दूसरे लोगों को स्वाभाविक ही ईर्ष्या होती थी।
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