भीमाकाली मंदिर
इस मंदिर को 51 शक्तिपीठों में भी गिना जाता है जहां पर देवी सती का बायां कान गिर गया था। इस लिहाज से ये मंदिर काफी महत्त्वपूर्ण माना जाता है। यह मंदिर बेहद सुंदर है …
हिमाचल प्रदेश की राजधानी शिमला से 180 किलोमीटर दूर सराहन में व्यास नदी के तट पर स्थित है भीमाकाली मंदिर, जो 51 शक्तिपीठों में से एक है। यह देवी तत्कालीन बुशहर राजवंश की कुलदेवी है जिसका पुराणों में उल्लेख मिलता है। यह मंदिर बेहद सुंदर है जहां कई देवताओं की मूर्ति को प्रर्दशित किया गया है। इस मंदिर को यादवों के शासन काल में बनवाया गया था। हर साल यहां बड़े स्तर पर काली पूजा की जाती है जिसमें लाखों लोग भाग लेते हैं। समुद्र तल से 2165 मीटर की ऊंचाई पर बसे सराहन गांव को प्रकृति ने पर्वतों की तलहटी में अत्यंत सुंदर ढंग से सुसज्जित किया है। सराहन को किन्नौर का प्रवेश द्वार भी कहा जाता है। यहां से 7 किलोमीटर नीचे सभी बाधाओं पर विजय पाकर लांघती और आगे बढ़ती सतलुज नदी है। इस नदी के दाहिनी ओर हिमाच्छादित श्रीखंड पर्वत शृंखला है। समुद्र तल से पर्वत की ऊंचाई 18500 फुट से अधिक है। माना जाता है कि यह पर्वत देवी लक्ष्मी के माता-पिता का निवास स्थान है। ठीक इस पर्वत के सामने सराहन के अमूल्य सांस्कृतिक वैभव का प्रतीक भीमाकाली मंदिर अद्वितीय छटा के साथ स्थित है। राजाओं का यह निजी मंदिर महल में बनवाया गया था जो अब एक सार्वजनिक स्थान है। मंदिर के परिसर में भगवान रघुनाथ, नरसिंह और पाताल भैरव, वीरभद्र के अन्य महत्त्वपूर्ण मंदिर भी हैं। लांकडा वीर को मां भगवती का गण माना जाता है। यह पवित्र मंदिर लगभग सभी ओर से सेबों के बागों से घिरा हुआ है और श्रीखंड की पृष्ठभूमि में इसका सौंदर्य देखते ही बनता है। इस मंदिर को शक्तिपीठों में भी गिना जाता है। जहां पर देवी सती का बायां कान गिर गया था। इस लिहाज से यह मंदिर काफी महत्त्वपूर्ण माना जाता है। शिमला से करीब 175 किलोमीटर पड़ती है ये जगह । आम प्रचलित हिल स्टेशनों के मुकाबले यहां पर काफी शांति और नैसर्गिक सुंदरता है। सराहन शहर को रामपुर बुशहर के राजाओं की प्राचीन राजधानी के रूप में भी जाना जाता है। मंदिर कई मंजिला है और सबसे उपर माता का विग्रह स्थापित है। यहां मंदिर में प्रवेश से पहले सिर पर टोपी अवश्य पहननी होती है। मंदिर में अपने साथ कुछ भी सामान नहीं ले जा सकते हैं । कहा जाता है कि आदि शक्ति तो एक ही है लेकिन अनेक प्रयोजनों से यह भिन्न-भिन्न रूपों और नामों में प्रकट होती है जिसका एक रूप भीमाकाली है। सराहन में एक ही स्थान पर भीमाकाली के दो मंदिर हैं। प्राचीन मंदिर किसी कारणवश टेढा हो गया है। इसी के साथ एक नया मंदिर पुराने मंदिर की शैली में बनाया गया है। यहां 1962 में देवी मूर्ति की स्थापना हुई। इस मंदिर परिसर में तीन प्रांगण आरोही क्रम से बने हैं जहां देवी शक्ति के अलग-अलग रूपों को मूर्ति के रूप में स्थापित किया गया है। देवी भीमा की अष्टधातु से बनी अष्टभुजा वाली मूर्ति सबसे ऊपर के प्रांगण में है। भीमाकाली मंदिर हिंदू और बौद्ध शैली में बना है जिसे लकड़ी और पत्थर की सहायता से तैयार किया गया है। पैगोडा आकार की छत वाले इस मंदिर में पहाड़ी शिल्पकारों की दक्षता देखने को मिलती है। द्वारों पर लकड़ी की सुंदर छिलाई करके हिंदू देवी-देवताओं के कलात्मक चित्र बनाए गए हैं। फूल-पत्तियां भी दर्शाए गए हैं। मंदिर की ओर जाते हुए जिन बडे़ -बड़े दरवाजों से गुजरना पड़ता है उन पर चांदी के बने उभरे रूप में कला के सुंदर नमूने देखे जा सकते हैं। भारत के अन्य भागों की तरह सराहन में भी देवी पूजा बड़ी धूमधाम से की जाती है। स्थानीय लोगों का कहना है कि भीमाकाली की प्राचीन मूर्ति पुराने मंदिर में ही है। हर कोई उसके दर्शन नहीं कर सकता।
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