रेणुकाजी मेला
शिवालिक पहाडिय़ों के आंचल और सिरमौर जिले की खूबसूरत वादियों में, नाहन से लगभग 40 किलोमीटर की दूरी पर स्थित, उत्तर भारत का प्रसिद्घ धार्मिक एवं पर्यटन स्थल है श्री रेणुका जी । नारी देह के आकार की प्राकृतिक झील यहां पर मौजूद है जिसे मां रेणुका जी की प्रतिछाया भी माना जाता है। इसी झील के किनारे मां श्री रेणुका जी व भगवान् परशुराम जी के भव्य मंदिर स्थित हैं। प्रतिवर्ष कार्तिक मास की शुक्ल पक्ष की दशमी से पूर्णिमा तक यहां मेले का आयोजन किया जाता है इस वर्ष इस मेले का प्रारंभ 12 नवंबर से हो चुका है और 17 नवंबर 2013 तक पारंपरिक रीति-रिवाज के साथ चलेगा। कथानक अनुसार प्राचीन काल मे आर्यव्रत में हैहयवंशी श्रत्रिय राज करते थे तथा भृगुवंशी ब्राह्मण उनके राज पुरोहित थे। इसी भृगुवंश के महर्षि ऋचिक के घर महर्षि जमदग्रि का जन्म हुआ। इनका विवाह इक्ष्वाकु कुल के ऋषि रेणु की कन्या रेणुका से हुआ। वैशाख शुक्ल पक्ष की तृतीया को मां रेणुका के गर्भ से भगवान परशुराम ने जन्म लिया। इन्हें भगवान विष्णु का छठा अवतार माना जाता है। महर्षि जमदग्निके पास कामधेनु गाय थी जिसे पाने के लिए सभी तत्कालीन राजा ऋषि लालायित थे। राजा अर्जुन ने वरदान मे भगवान दतात्रेय से एक हजार भुजाएं पाई थी, जिसके कारण वह सहस्त्रार्जुन कहलाए जाने लगे। एक दिन वह महर्षि जमदग्रि के पास कामधेनु मांगने पहुंच गए। महर्षि जमदग्रि ने सहस्त्रबाहु एवं उसके सैनिकों का खूब सत्कार किया तथा उन्हें समझाया कि कामधेनु गाय उसके पास कुबेर जी की अमानत थी, जिसे किसी को नहीं दिया जा सकता। यह सुनकर गुस्साए सहस्त्रबाहु ने महर्षि जमदग्रि की हत्या कर दी। यह सुनकर मां रेणुका शोकवश राम सरोवर मे कूद गई। राम सरोवर ने मां रेणुका की देह को ढकने का प्रयास किया जिससे इसका आकार स्त्री देह समान हो गया। उधर भगवान् परशुराम महेंद्र पर्वत पर तपस्या मे लीन थे, लेकिन योगशक्ति से उन्हें अपनी जननी एवं जनक के साथ हुए घटनाक्रम का अहसास हुआ और उनकी तपस्या भंग हो गई। परशुराम अति क्रोधित होकर सहस्त्रबाहु को ढूंढने निकल पड़े तथा उन्हें आमने-सामने युद्घ के लिए ललकारा। परमवीर भगवान् परशुराम ने सेना सहित सहस्त्रबाहु का वध कर दिया। तत्पश्चात् भगवान परशुराम ने अपनी योगशक्ति से पिता जमदग्रि तथा मां रेणुका को जीवित कर दिया। माता रेणुका ने वचन दिया कि वह प्रति वर्ष इस दिन कार्तिक मास की देवोत्थान एकादशी को अपने पुत्र भगवान् परशुराम को मिलने आया करेंगी। यह मेला मां रेणुका के वात्सल्य एवं पुत्र परशुराम की श्रद्घा का एक अनूठा आयोजन है। छः दिन तक चलने वाले इस मेले में आसपास के सभी ग्राम देवता अपनी-अपनी पालकी में सुसज्जित होकर मां-पुत्र के इस दिव्य मिलन में शामिल होते हैं। कई धार्मिक अनुष्ठान सांस्कृतिक कार्यक्रम, हवन, यज्ञ, प्रवचन एवं हर्षोल्लास इस मेले के अंग हैं। हिमाचल प्रदेश, उतरांचल, पंजाब तथा हरियाणा के लोगों की इसमे अटूट श्रद्घा है राज्य सरकार द्वारा इस मेले को अंतरराष्ट्रीय स्तर का मेला घोषित किया गया है तथा श्री रेणुका विकास बोर्ड द्वारा इस पावन स्थली को धार्मिक र्प्यटन के रूप में विकसित करने को सर्वोच्च प्राथमिकता दी जा रही है।
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