Wednesday, 26 February 2014

प्रदेश को प्रसिद्धि कानया आयाम दिया हैक्रिकेट ने

ANNITHISWEEK
प्रथम
पर्यटन के क्षेत्र में हिमाचल प्रदेश यूं तो विश्व प्रसिद्ध था ही, परन्तु विगत कुछ वर्षों से क्रिकेट ने प्रदेश को प्रसिद्धि का जो नया आयाम दिया है, उसके परिचय का कोई मोहताज नहीं है। धर्मशाला जैसी जगह देश-विदेश में यदि प्रसिद्ध हुई है, तो वह केवल क्रि केट की बदौलत। इस छोटे से कस्बे में आज अंतरराष्ट्रीय स्तर की क्रिकेट-प्रतियोगिताएं यदि सफलतापूर्वक संपन्न हो पा रही हैं, तो इसका श्रेय हिमाचल प्रदेश क्रिकेट संघ के अथक प्रयासों को दिया जाना चाहिए। संघ के प्रयासों एवं मेहनत की बदौलत प्रदेश में अंतरराष्ट्रीय स्तर के मैदानों का निर्माण संभव हो पाया है, जिससे यहां के क्रिकेट प्रेमियों को न केवल क्रिकेट मैच के ‘निकट- दर्शन’ हो पाए बल्कि अपने स्टार खिलाडि़यों से रू-ब-रू होने का अवसर भी प्राप्त हो सका,  जोकि भावी खिलाडि़यों को पनपने एवं प्रोत्साहित करने का काम करेगा।  जहां तक क्रिकेट संघ पर अनियमिताओं के आरोप का प्रश्न है, तो यह अभी तक केवल आरोप मात्र है। जिसकी जांच होना बाकी है। जांच एवं दोष सिद्धि का काम पुलिस एवं न्यायपालिका का है। केवल और केवल मात्र तभी क्रिकेट संघ के दोषी या निर्दोष होने की बात कही जानी चाहिए। वैसे भी प्रदेश में ऐसा एक भी मामला सामने नहीं आया, जिसमें किसी व्यक्ति ने यह आरोप लगाया हो कि क्रिकेट संघ ने जोर जबरदस्ती से उसकी भूमि हथियाई हो या भूमि अधिग्रहण करने के उपरांत उस व्यक्ति को उचित मुआवजा देने के लिए मना कर दिया हो। ऐसे में किसी को कलंकित करना क्या सही रहेगा। अकसर यह देखा जाता है कि जब सरकार बदलती है तो वर्तमान सरकार पूर्व सरकार की कमियां उजागर करने के चक्कर में अपना खून- पसीना एक कर देती है।
किरण बाला नूरपुर, कांगड़ा
अच्छे से अच्छा किया गया काम भी उसे फूटी आंख नहीं सुहाता। उसे तो सिर्फ बहाना चाहिए कि कब वह किसी को राजनीति का शिकार बनाए। वैसे भी दूध का धुला तो कोई भी नहीं होता। इतिहास इस बात का साक्षी है कि कभी-कभी अच्छे काम के लिए छोटे-मोटे झूठ का सहारा भी लेना पड़ सकता है। वैसे भी हमारे शास्त्रों में इस बात का उल्लेख है कि कुल की भलाई के लिए यदि एक व्यक्ति को छोड़ना पड़े तो भी उचित है।  अतः मात्र आरोप-प्रत्योरोप के आधार पर क्रिकेट संघ को दोषी करार देना किसी भी प्रकार से न तो तर्कसंगत होगा न न्यायसंगत।
द्वितीय
मैं यह नहीं समझ पा रहा हूं कि हिमाचल क्रिकेट संघ ने ऐसा क्या कर दिया, जिस पर इतना हंगामा हो गया। अंतरराष्ट्रीय स्तर का ग्राउंड और वहां पर अंतरराष्ट्रीय स्तर की आवास व्यवस्था का प्रबंध करने से आज शिमला और मनाली के बाद धर्मशाला का नाम भारत में ही नहीं, पूरे संसार में फिर उभर कर आ गया है। शिमला का अनाडेल, जहां से डुरंड फुटबाल की राष्ट्रीय प्रतियोगिता का आगाज हुआ था, आज तक शीर्ष पर टिका है। उसके बाद खेल के विकास के लिए क्रिकेट संघ द्वारा किए प्रयास ने धर्मशाला और प्रदेश को उस स्थान पर खड़ा कर दिया है, जिसका विकल्प आसानी से कई दशकों तक हिमाचल प्रदेश को नहीं मिल पाएगा। यह सब कुछ प्राप्त करने में एचपीसीए को अगर ठीक प्रकार से और सुचारू रूप से चलाने तथा नियमित करने के उद्देश्य से कंपनी का रूप दे दिया गया, तो उससे कौन सा आसमान टूट पड़ा। कैसे किया, क्या किया, कब किया, किसने किया, इसमें अब पड़ने की बजाय अच्छा है कि यह देखने का प्रयास करें कि इसमें बनाने वाले का व्यक्तिगत स्वार्थ, लाभ और अपना हित कितना है और उससे किसी को जानबूझ कर क्या और कितना नुकसान पहुंचाया गया है। हमारे यहां तो आज यह प्रथम धारणा बन गई है कि किसी के द्वारा किए गए किसी भी काम को, चाहे उसका परिणाम आज जनता, प्रदेश या देश के लिए कितना ही लाभकारी और सम्मानजनक क्यों न हो, सामने वाले को न तो भाता है, न ही रास आता है और न ही लाभकारी दिखाई देता है। बस दिखता है तो उसमें कमियां, खामियां और फलस्वरूप उसके प्रयास और काम की दाद देने के स्थान पर टांग घसीट कर उसे धूल चटाकर गिराने में अपनी शान और अपनी कामयाबी ही नहीं समझते बल्कि बुलंद आवाज में बदनाम करने और नुकसान पहुंचाने के उद्देश्य से कुछ भी कर बैठते हैं। यह सब मैं समझता हूं नकारात्मक सोच है। हर काम को जब कोई करता है उसमें हो सकता है कुछ कमियां भी रह गई हों। यह भी संभव है उस काम को करने में कुछ जरूरी नियमों को भी ताक पर रख दिया गया हो। अच्छा- बुरा फैसला करते समय करने वाले की नीयत और उस सब के होने वाले सुखद परिणाम को नजरअंदाज नहीं करना चाहिए, उसका रूप चाहे कंपनी हो या कुछ और। अगर अब इस काम को करने पर देश- प्रदेश का नाम रोशन होता हो तो इन छोटी- छोटी बातों को, गलतियों को उजागर करने की बजाय ठीक करने का प्रयत्न किया जाना चाहिए ।
रविंद्र सिंह शोघी, शिमला
तृतीय
मैं अपने स्व. नाना जी से एक कहावत बचपन में अकसर सुना करता था, ‘जिसका राज उसका तेज’, अर्थात सत्ता में मौजूदा सरकार कुछ भी करने में सक्षम होती है। उदाहरणार्थ केंद्रीय सूचना आयोग ने राजनीतिक पार्टियों को सूचना का अधिकार अधिनियम के दायरे में लाए जाने का आदेश पारित किया। दूसरी तरफ केंद सरकार ने केंद्रीय सूचना आयोग के अति उत्तम जनहित और पारदर्शिता के फैसले के विरुद्ध एक अध्यादेश ला करके उस फैसले/आदेश को बेजुबान कर दिया। भारतीय कानून व्यवस्था का मुख्य सिद्धांत यह है कि कोई भी व्यक्ति अपने ही प्रकरण में स्वयं न्यायाधीश नहीं हो सकता, लेकिन हमारे समस्त कानूनों की स्रोत हमारी विधायिकाएं अपने वेतन बढ़ाने के बिल, जब चाह हो पारित करके गरीब जनता के पैसे से खिलवाड़ करके सरेआम कानूनी व्यवस्था पर कालिख लगाती हैं। यहां पर बहस का विषय है, ‘क्या हिमाचल क्रिकेट संघ निर्दोष है?’ हिमाचल क्रिकेट संघ ही एक ऐसा संगठन है, जिसने धर्मगुरु दलाईलामा के नाम पर विश्वस्तर में धर्मशाला की गूंज का रुख बदल करके अंतरराष्ट्रीय स्तर के क्रिकेट स्टेडियम का नाम धर्मशाला से जोड़ करके हिमाचल के इतिहास में मिसाल कायम की है। संघ का कोई तो रहनुमा होगा और वह है पूर्व मुख्यमंत्री प्रेम कुमार धूमल के पुत्र अनुराग ठाकुर। 1960 में यानी अब से 53 वर्ष पूर्व हिमाचल प्रदेश क्रिकेट एसोसिएशन की बुनियाद पड़ी, 1984 में इसे बीसीसीआई से मान्यता प्राप्त हुई। मान्यता प्राप्ति के 16 वर्षों उपरांत सन् 2000 में संघ की बागडोर अनुराग ठाकुर के हाथों में आई। तब से लेकर हिमाचल क्रिकेट संघ ने दिन दोगुनी रात चौगुनी उन्नति की, जो कि क्रिकेट प्रेमियों के लिए खुशी का कारण है। अंतरराष्ट्रीय स्तर के मैच यहां हुए और परिणाम स्वरूप यहां की सड़कों की रूपरेखा भी बदली। अनुराग की रहनुमाई में ही शिमला में क्रिकेट अकादमी और गुम्मा (शिमला), नादौन और बिलासपुर (हिमाचल प्रदेश) में स्टेडियमों का निर्माण हुआ। खूबसूरती देखने के लिए खूबसूरत दिमाग के साथ अच्छी आंखों का होना आवश्यक होता है। एक पक्ष के पास इनमें अभाव है, इसलिए आज संघ पर ताबड़तोड़ हमले जारी हैं और संघ को कसूरवार बनाया जा रहा है। क्रिकेट संघ को कसूरवार इसलिए ठहराया जा रहा है क्योंकि कि अनुराग ठाकुर की रहनुमाई में क्रिकेट संघ ने छोटे से हिमाचल में अंतरराष्ट्रीय स्तर के आयाम स्थापित किए हैं। कोर्ट ने क्रिकेट स्टेडियम को सरकार के कब्जे से मुक्त करवा कर सभी खेल प्रेमियों की भावनाओं का सम्मान किया है।

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