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चामुंडा देवी शक्तिपीठ
श्री चामुंडा नंदीकेश्वर धाम हिमाचल के प्रमुख शक्तिधामों में माना जाता है। यहां के नैसर्गिक प्राकृतिक सौंदर्य का शब्दों में वर्णन अति कठिन है। धौलाधार पर्वतमाला की गोद में, कांगड़ा घाटी की पहाड़ी ढलानों पर, झर-झर कर बहते कई प्राकृतिक चश्मों से घिरा, यह अति मान्यता प्राप्त पीठ पवित्र बाण गंगा के किनारे स्थित है…
हिमाचल प्रदेश को देव भूमि भी कहा जाता है। इसे देवताओं के घर के रूप में भी जाना जाता है। पूरे हिमाचल प्रदेश में 2000 से भी ज्यादा मंदिर हैं और इनमें से ज्यादातर आकर्षण के केंद्र बने हुए हैं। इन मंदिरो में से एक प्रमुख मंदिर चामुंडा देवी का है जो कि जिला कांगड़ा हिमाचल प्रदेश राज्य में स्थित है। श्री चामुंडा नंदीकेश्वर धाम हिमाचल के प्रमुख शक्तिधामों में माना जाता है। यहां के नैसर्गिक प्राकृतिक सौंदर्य का शब्दों में वर्णन अति कठिन है। धौलाधार पर्वतमाला की गोद में कांगड़ा घाटी की पहाड़ी ढलानों पर झर-झर कर बहते कई प्राकृतिक चश्मों से घिरा यह अति मान्यता प्राप्त पीठ पवित्र बाण गंगा के किनारे स्थित है।शिव तथा शक्ति के प्रभावशाली तेज से स्थापित यह मंदिर चिरकाल से मान्यता प्राप्त शक्ति स्थल है, जहां मां चामुंडा की पिंडी मूर्ति जो कि धरती से प्रगट हुई थी, पिंडी पर विराजमान है। श्री मार्कंडेय पुराण में वर्णित है कि देवासुर संग्राम में महाकाली के रुद्र स्वरूप देवी कौशिकी ने सर्वकल्याणकारी मां जगदंबा के आदेश पर महाबली असुर सम्राट शुंभ तथा निशुंभ के सेनापति चंड तथा मुंड का वध किया तथा महाकाली के उस रूप को चामुंडा का नाम दिया। चामुंडा देवी मंदिर शक्ति के 51 शक्ति पीठो में से एक है। मान्यता है कि यहां पर आने वाले श्रद्धालुओं की सभी मनोकामना पूर्ण होती है। चामुंडा देवी का मंदिर समुद्र तल से 1000 मी. की ऊंचाई पर स्थित है। यह धर्मशाला से 15 कि.मी. की दूरी पर है। यहां प्रकृति ने अपनी सुंदरता भरपूर मात्रा में प्रदान की है। चामुंडा देवी मंदिर बंकर नदी के किनारे पर बसा हुआ है। पर्यटकों के लिए यह एक पिकनिक स्पाट भी है। यहां का प्राकृतिक सौंदर्य लोगों को अपनी और आकर्षित करता है। चामुंडा देवी मंदिर मुख्यता माता काली को समर्पित है। माता काली शक्ति और संहार की देवी है। जब-जब धरती पर कोई संकट आया है, तब-तब माता ने दानवो का संहार किया है। असुर चंड-मुंड के संहार के कारण माता का नाम चामुंडा पड़ गया।
देवी की उत्पत्ति कथा - दुर्गा सप्तशती और देवी माहात्म्य के अनुसार देवताओं और असुरों के बीच में सौ वर्षों तक युद्ध चला था। इस युद्ध में असुरों की विजय हुई। असुरों का राजा महिषासुर स्वर्ग का राजा बन गया और देवता सामान्य मनुष्यों की भांति धरती पर विचरण करने लगे। देवताओं के ऊपर असुरों ने काफी अत्याचार किया। देवताओं ने विचार किया और वह भगवान विष्णु के पास गए। भगवान विष्णु ने उन्हें देवी की अराधना करने को कहा। देवताओं ने पूछा वो देवी कौन है जो कि हमारे कष्टों का निवारण करेगी। इसी योजना के फलस्वरूप त्रिदेवों ब्रह्मा, विष्णु और महेष तीनों के अंदर से एक दिव्य प्रकाश प्रकट हुआ जो देखते ही देखते एक स्त्री के रूप में पर्वितित हो गया। इस देवी को सभी देवी-देवताओं ने कुछ न कुछ भेट स्वरूप प्रदान किया। भगवान शंकर ने सिंह, भगवान विष्णु ने कमल, इंद्र ने घंटा तथा समुद्र ने कभी न मैली होने वाली माला प्रदान की। तभी सभी देवताओं ने देवी की आराधना की ताकि देवी प्रसन्न हो और उनके कष्टों का निवारण हो सके। देवी ने प्रसन्न होकर देवताओं को वरदान दे दिया और कहा मैं तुम्हारी रक्षा अवश्य करूंगी। इसी के फलस्वरूप देवी ने महिषासुर के साथ युद्ध प्रारंभ कर दिया। जिसमें देवी कि विजय हुई और तभी से देवी का नाम महिषासुर मर्दनी पड़ गया।
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