RAVI SHARMA CHAMBA DPRO
शिव-शक्ति मंदिर
हमारी संस्कृति देवत्व प्रधान संस्कृति रही है। देवत्व यानि देनेवाली संस्कृति, समर्पण की संस्कृति। हिमाचल एक प्राकृतिक क्षेत्र है जिसके बारह जिलों में चंबा जिला अपनी प्राकृतिक छटा एवं देवी देवताओं के कारण सुप्रसिद्ध है। जब हम चंबा से भरमौर की ओर जाते हैं तो कल-कल करती रावी अपनी मधुर ध्वनि से सभी सैलानियों को अपनी और आकर्षित कर लेती है। चंबा से 45 किलोमीटर आगे चलते हुए लूना गांव से दाईं ओर आठ किलोमीटर की दूरी पर छतराड़ी गांव में माता शिवशक्ति का वास है। यह मंदिर लगभग 1400 वर्ष पुराना है अर्थात 7 वीं शताब्दी का है। इस मंदिर की उत्पत्ति के विषय में कहा जाता है कि यहां पर घना जंगल था। यहां पर गद्दी लोग अपने पशुओं को चराने मेढ़ी गांव से आया करते थे। आज मंदिर में जहां माता शक्ति की अष्टधातु मूर्ति रखी गई है, वहां एक पेड़ हुआ करता था, उसके नीचे माता की पिंडी विराजमान थी। एक गाय हर रोज आ कर वहां खड़ी हो जाती और उसके थन से अलौकिक शक्ति द्वारा स्वयं ही दूध निकलना शुरू हो जाता। इस बात का जब लोगों को पता चला तो उन्होंने माता शिव शक्ति की स्थापना की। उस समय क्षेत्र जागीरों के अधीन होता था और छतराड़ी जागीर राजा मेरुवर्मन के अधीन थी। शिव शक्ति मंदिर का निर्माण गुग्गा तरखाण ने एक हाथ तथा तीन औजारों से किया। कहा जाता है की गुग्गा तरखाण ने रुणकोठी का भव्य महल बनाया था किंतु रुणकोठी के राणा ने उसका एक हाथ काट दिया ताकि वह अन्य कोई सुंदर महल न बना सके। एक दिन गुग्गा तरखाण के स्वप्न में माता शिव शक्ति ने दर्शन दिए और कहा तुम्हें मेरे मंदिर का निर्माण करना है। इस पर गुग्गा तरखाण ने माता से कहा कि हे माता! मेरा तो एक ही हाथ है और मेरे पास मात्र तीन ही औजार हैं, मै भला कैसे मंदिर का निर्माण करूंगा तो माता ने उसे आश्वासन दिया कि तुम मंदिर का निर्माण कार्य आरंभ करो मैं तुम्हारे साथ हूं। गुग्गा ने हामी भरी और मंदिर के निर्माण कार्य में लग गया। शिवशक्ति मंदिर को बनने में कितना समय लगा इसका कोई प्रमाणिक उतर नहीं है। गुग्गा ने एक हाथ से लकड़ी के मंदिर का निर्माण किया। मंदिर की नक्काशी देखते ही बनती है। कहा जाता है कि जब मंदिर पूर्णत बन कर तैयार हो गया तो माता ने गुग्गा से वरदान मांगने को कहा, इस पर गुग्गा ने माता शिवशक्ति से अपनी मुक्ति मांगी। किवदंती के अनुसार गुग्गा ने मंदिर कार्य का अंत एक मोर बनाकर किया और आज जहां हवन कुंड है वहां अपने प्राणों की आहुति दी। मंदिर की देखभाल एवं रख- रखाव, मंदिर को खोलना आदि का कार्य कुंज्याल लोग जाति के ब्राह्मण होते हैं, वे करते हैं। यही लोग मंदिर की साफ सफाई भी करते हैं। मंदिर में बाजा बजाने वाला बजंत्री, एक निम्न जाति के लोग हैं। पुजारी ब्राह्मण यह मंदिर की पूजा तथा देवी को भोग आदि लगाते हैं। पहले मंदिर की पूजा एक ही जाति करती थी। किंतु जब इस जाति के घर पर कोई शुभ अशुभ हो जाता तो यह लोग पूजा नहीं कर सकते थे, इसलिए दूसरा गोत्र कलाण पूजा अर्चना करने लगा। माता शिव-शक्ति मंदिर की जमीन राजा ने माता के नाम दान की थी जिसे 1955 में पुजारियों ने अपने नाम कर लिया। बैसाखी से दीवाली तक पूजा तीन बार की जाती है तथा दीवाली से बैसाखी तक दो बार, मंगला आरती सवेरे माता की सेज उठाई जाती है। सेज के आसपास पड़े फूलों को हटाया जाता है। माता शक्ति का मुंह धुलवाया जाता है, मंदिर के घंटी एवं शंख ध्वनि से सारा मंदिर गुंजयमान हो जाता है। आरती के लिए पर्वतों की धूप का प्रयोग किया जाता है, जिसे गुग्गुल धूपकहा जाता है तत्पश्चात माता को भोग लगाया जाता है।
दिन की आरती- दिन की आरती के समय माता के खुले अंगो की पूजा की जाती है। माता के माथे पर तिलक लगाया जाता है तथा भोग लगाया जाता है।
रात्रि पूजा- गर्मियों में रात्रि पूजा 8 बजे तथा सर्दियों में 6 बजे की जाती है। रात्रि पूजा में माता को भोग लगाया जाता है तथा सोने के लिए सेज सजाई जाती है। रात्रि पूजा के बाद भोग और चढ़त पुजारी और कुंज्याले में बांट ली जाती है। माता शिवशक्ति को कनक के फूल का , घी और गुड़ का भोग तीन समय लगाया जाता है। भोग बनाते समय पवित्रता का विशेष ध्यान रखा जाता है। शिव शक्ति मंदिर छतराड़ी की प्रसिद्ध जातरे जन्माष्टमी के पंद्रह दिन उपरांत राधाष्टमी वाले दिन होती है। - शैलेजा शर्मा
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